ब्रितानिया शासन को झकझोर कर रख देने वाले शहीद ए आजम भगत सिंह को देश के लिए कुर्बान हो जाने की प्रेरणा अपने परिवार से मिली थी.
भगत सिंह आजादी के आहुति यज्ञ में कूदने वाले अपने परिवार के अकेले व्यक्ति नहीं थे, बल्कि उनके परिवार का हर सदस्य भारत मां की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए अपने-अपने तरीके से लड़ रहा था.
शहीद ए आजम के पौत्र (भतीजे बाबर सिंह संधु के पुत्र) यादविंदर सिंह के अनुसार भगत सिंह के पिता किशन सिंह, चाचा सवरण सिंह और चाचा अजीत सिंह अलग-अलग मोर्चे के जरिए अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे.
भगत सिंह पर असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से पहले महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था, लेकिन चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से भगत सिंह का मन काफी दुखी हुआ और वे क्रांतिकारी विचारधारा की ओर मुड़ गए.
यादविंदर ने बताया कि भगत सिंह अपने चाचा सवरण सिंह और चाचा अजीत सिंह से भी काफी प्रभावित थे. सवरण सिंह को अंग्रेजों ने काले पानी की सजा सुनाई थी. वहां टीबी की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया.ब्रितानिया शासन को झकझोर कर रख देने वाले शहीद ए आजम भगत सिंह को देश के लिए कुर्बान हो जाने की प्रेरणा अपने परिवार से मिली थी.{mospagebreak}
शहीद ए आजम के दूसरे चाचा अजीत सिंह ने किसानों से लगान वसूले जाने के खिलाफ ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन चलाया था. इसका देश के किसानों पर गहरा असर पड़ा और वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए. इस आंदोलन से अंग्रेज इस कदर भयभीत हो उठे कि उन्होंने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया. इसके बाद अजीत सिंह ने अफगानिस्तान ईरान इटली और जर्मनी आदि देशों से भी आजादी की लड़ाई को जारी रखा.
यादविंदर ने कहा कि भगत सिंह का मानना था कि देश जल्द आजाद होगा और उनके चाचा अजीत सिंह वापस लौटेंगे. उनका सपना सच साबित हुआ और अजीत सिंह स्वदेश वापस आ गए. उन्होंने कहा कि अजीत सिंह वापस तो आ गए लेकिन भारत के बंटवारे ने उन्हें इतना तोड़ दिया कि वे इससे उबर नहीं पाए.
ऐसा माना जाता है कि अजीत सिंह ने देश के विभाजन के विरोध में हीरा चाट लिया था, जिससे पारे का विष उनके शरीर में फैल गया और उनकी जान नहीं बच सकी. इस घटना के वक्त अजीत सिंह डलहौजी में थे.
(23 मार्च को शहदत दिवस पर विशेष)