scorecardresearch
 

भोपाल गैस त्रासदी: सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की याचिका खारिज

भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों को कठोर सजा देने के समर्थन में अभियान चलाने वाले लोगों को एक प्रकार से झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया. यह याचिका शीर्ष न्यायालय के पूर्व में दिये गये फैसले के विरूद्ध दायर की गयी थी जिसमें आरोपियों के खिलाफ आरोपों को हल्का किया गया था.

Advertisement
X
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

Advertisement

भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों को कठोर सजा देने के समर्थन में अभियान चलाने वाले लोगों को एक प्रकार से झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया. यह याचिका शीर्ष न्यायालय के पूर्व में दिये गये फैसले के विरूद्ध दायर की गयी थी जिसमें आरोपियों के खिलाफ आरोपों को हल्का किया गया था.

प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह कहकर उम्मीद की एक किरण छोड़ दी है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ सत्र अदालत में लंबित कार्यवाही पर उसके आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यूनियन कार्बाइड इंडिया के अध्यक्ष केशुब महिन्द्रा सहित आरोपियों को दो साल की सजा सुनायी थी.

पीठ ने कहा कि सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार इस बात का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रहे कि 14 साल के अंतराल के बाद उपचारात्मक याचिका क्यों दायर की गयी.

Advertisement

पीठ ने यह आदेश सर्वसम्मति से दिया। पीठ में न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर, आर वी रवीन्द्रन, बी सुदर्शन रेड्डी और आफताब आलम शामिल हैं.

सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार ने यह उपचारात्मक याचिका समाज में इस फैसले को लेकर व्यापक विरोध बढ़ने के बाद दायर की थी. समाज में कई लोगों का मानना है कि दिसंबर 1984 में हुई इस त्रासदी में काफी कम सजा दी गयी क्योंकि इसमें घातक गैस रिसाव के कारण 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान गयी और हजारों लोग हमेशा के लिए प्रभावित हो गये.

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एच एच अहमदी की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने 1996 में आरोपियों के खिलाफ लगाये गये आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग दो से हटा कर 304 (ए) में तब्दील कर दिये थे. पहली धारा में अधिकतम दस साल के कारावास की सजा थी जबकि बदली गयी धारा में अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है. सीबीआई और मप्र सरकार ने भोपाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ सत्र अदालत में समीक्षा याचिका दायर कर रखी है. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले के विभिन्न आरोपियों को दो साल की जेल की सजा सुनायी है.

सीबीआई चाहती थी कि शीर्ष न्यायालय अपना 14 साल पुराना वह फैसला वापस ले जिसमें आरोपियों के खिलाफ आरोपों को हल्का कर दिया गया था. आरोपियों के खिलाफ केवल लापरवाही के अपराध का मुकदमा चलाया गया.

Advertisement

अपनी याचिका में सीबीआई ने कहा कि विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी के आरोपियों के खिलाफ लापरवाही के कारण हुई मौत के आरोप की बजाय गैर इरादतन हत्या के आरोप को बहाल किया जाना चाहिए.

मध्य प्रदेश सरकार ने भी उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए सितंबर 1996 के फैसले की समीक्षा के सीबीआई के अनुरोध का समर्थन किया. 1996 के फैसले के अनुसार आरोपियों के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मुकदमा चला जिसमें महिन्द्रा और छह अन्य को सात जून 2010 को महज दो साल की जेल की सजा सुनायी गयी.

जो अन्य लोग हल्की सजा पाकर बच गये उनमें यूसीआईएल के तत्कालीन प्रबंध निदेशक विजय गोखले, उसके उपाध्यक्ष किशोर कामदार, वर्क्‍स मेनेजर जे एन मुकुंद, उत्पादन प्रबंधक एस पी चौधरी, संयंत्र अधीक्षक के वी शेट्टी और उत्पादन सहायक एस आई कुरैशी शामिल हैं.

शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल 31 अगस्त को तय किया था कि वह अपने उस पूर्व फैसले की फिर से समीक्षा करेगा जिसके कारण सातों दोषियों को दो साल के कारावास की हल्की सजा मिली थी. इस फैसले के कारण पूरे देश में आलोचनाओं के स्वर तेज हो गये थे. इन आलोचनाओं को देखते हुए सरकार ने मंत्रियों का एक समूह गठित किया था. साथ ही गैस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों को हल्की सजा देने के फैसले के खिलाफ उपचारात्मक याचिका दायर की गयी.

Advertisement

इससे पूर्व, सीबीआई की ओर से पेश होते हुए अटार्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने अदालत से अनुरोध किया कि वह अपने 1996 के आदेश की समीक्षा करे. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी ने उपचारात्मक याचिका दायर करने का निर्णय उन तथ्यों के आधार पर किया जो हमारी अंतर आत्मा को कचोटते हैं.

शीर्ष न्यायालय से उसके पूर्व निर्णय की समीक्षा का अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि न्याय करना हमारा दायित्व है तथा यह जनहित में किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसमें कई मूल्य शामिल हैं तथा यह दुलर्भतम स्थिति है.

मामले में हस्तक्षेप करने वाले 81 वर्षीय प्रोफेसर रामास्वामी आर अय्यर की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने सीबीआई पर घड़ियाली आंसू बहाने का आरोप लगाया. उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वह सरकार से उन सूचनाओं का खुलासा करने को कहे कि उसने पीड़ितों के मुआवजे के लिए यूनियन कार्बाइड के साथ कैसे बाचतीत की थी. उन्होंने यह भी कहा कि नेताओं एवं नौकरशाहों ने इस पूरे मुद्दे को गड्डमड्ड कर दिया है.

Advertisement
Advertisement