बिहार में करीब सात वर्षों से सत्ता में साझेदार बीजेपी और जनता दल (युनाइटेड) में इन दिनों बयानों की 'तलवारबाजी' चल रही है, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन खुद ही सवालों से घिरने लगा है. राजनीति के जानकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को यहां बुलाने के मुद्दे को तकरार की मुख्य वजह मानते हैं.
गुजरात में मोदी के खिलाफ प्रचार करेंगे नीतीश!
राजनीति के जानकारों का कहना है कि बीजेपी नेताओं को भी यह सवाल घेरने लगा है कि बिहार में छोटे भाई की भूमिका में अब तक रही बीजेपी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आखिरी झटका कभी भी दे सकते हैं. दूसरा प्रश्न है कि अगर बीजेपी लोकसभा चुनाव के पूर्व मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे तो नीतीश का 'धर्मनिरपेक्ष खेमा' किधर जाएगा.
यही दो ऐसे कारण हैं जो गठबंधन धर्म के विरोध में नेताओं को बयानबाजी करने को विवश कर रहे हैं और दो दलों के इस गठबंधन में गांठें दिखनी लगी हैं। बिहार में नीतीश के नेतृत्व में चल रही सरकार को हालांकि इससे फिलहाल कोई खतरा नहीं है.
नीतीश की सूनामी में बह गए लालू-पासवान
राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि एक-दूसरे को निशाने पर लेकर बयानबाजी करना भले ही गठबंधन धर्म के विरुद्ध हो, परंतु बिहार में सरकार को कोई खतरा नहीं है. वह कहते हैं कि गठबंधन के दोनों दल बिहार में लोकसभा की सभी सीटों पर लड़ने का दावा कर अपनी मजबूती का अहसास करा रहे हैं तथा अपने कार्यकर्ताओं की पीठ थपथपा रहे हैं.
वह कहते हैं कि सत्ता सुख भोगने वाला गठबंधन इतनी जल्दी नहीं टूटता. चुनाव से पहले ये नौबत तब आ सकती है जब किसी बेहतर सत्ता समीकरण का लोभ प्रबल हो जाए. वैसे यह कहना जल्दबाजी होगा कि संकट है. वह कहते हैं कि एक-दो मौकों को छोड़ दिया जाए तो दोनों दलों के बड़े नेता बयानबाजी से दूर रहे हैं.
नरेंद्र मोदी का नीतीश कुमार पर पलटवार
प्रेक्षकों का मानना है कि नीतीश भले ही कई मौकों पर खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग बता रहे हों, लेकिन उनके मन में भी महत्वकांक्षा हिलोरें मार रही है. नीतीश भी जानते हैं कि यह तभी संभव है, जब उनकी पहचान बीजेपी के सहयोगी के रूप में नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष छवि वाले नेता के रूप में बने.
पटना के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकार गंगा प्रसाद कहते हैं कि नीतीश चतुर राजनीतिज्ञ हैं. विकास पुरुष के रूप में छवि बनते ही वह मोदी से परहेज दिखाने की कोशिश में हैं. कई बार तीखे तेवर अपनाकर वह जता चुके हैं कि मोदी को बिहार बुलाया जाना उन्हें कतई मंजूर नहीं है. पिछले दिनों वह कह चुके हैं कि किसी धर्मनिरपेक्ष छवि वाले व्यक्ति को ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए. उनकी इस बात से भाजपा के कान खड़े हो गए थे.
नीतीश और मोदी में कौन बनेगा प्रधानमंत्री?
प्रसाद कहते हैं कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी एक बड़ा वर्ग मोदी को पसंद करता है. इसलिए कुछ बीजेपी नेता मोदी के पक्ष में हवा बनाने में जुटे हुए हैं. प्रसाद का मानना है कि अगर बीजेपी मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करती है, तो लोकसभा चुनाव में गठबंधन के दोनों दल बीजेपी और जनता दल (युनाइटेड) अलग-अलग चुनाव लड़ने की बात कह सकते हैं.
सूत्रों के अनुसार, जद (यु) के थिंकटैंक को बीजेपी का समर्पण-भाव मजबूरी में ही सही, परंतु खुलकर तलवारबाजी करने से रोकता रहा है. यही कारण है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने भी अपने दल के प्रवक्तओं को गठबंधन धर्म का पालन करते हुए अनाप-शनाप बयानबाजी से दूर रहने की सलाह दी थी.
राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि बिहार की राजनीति गुजरात के विधानसभा चुनाव परिणाम पर बहुत हद तक निर्भर करेगी और तभी जद (यु) के रुख का पता चल पाएगा.
बीजेपी के नेता और बिहार के मंत्री अश्विनी चौबे कहते हैं कि बिहार में गठबंधन की सरकार अच्छी गति से चल रही है. वहीं, जद (यु) के प्रवक्ता संजय सिंह भी मानते हैं कि बयानबाजी पर अधिक ध्यान देने की जरूरत नहीं है. सरकार एक तय कार्यक्रम के अनुसार चल रही है.
बहरहाल, जद (यु) के नेताओं का यह बयान कि बिहार में एक ही मोदी (उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी) काफी हैं, दूसरे मोदी को बुलाने की क्या जरूरत है, राजनीति के हाल के परिदृश्य को बयां कर रहा है.