बिहार में विपक्ष के आलोचनाओं के घेरे में आये नीतीश सरकार के नगर विकास और आवास मंत्री ने विरोधियों के दबाव के आगे झुकने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस मामले में अदालत के आदेश का पालन करेंगे तथा इस्तीफा नहीं देंगे.
इस्तीफे की संभावना से इनकार करते हुए नगर विकास और आवास मंत्री प्रेम कुमार ने कहा, ‘मैं किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं. कानून अपना काम करेगा. अदालत ने जो फैसला किया है मैं उसका सम्मान करूंगा.’ विपक्षी दलों ने मांग की है कि स्थानीय अदालत द्वारा फरार घोषित कुमार से मुख्यमंत्री को इस्तीफा ले लेना चाहिए.
मंत्री ने कहा, ‘मेरे खिलाफ केवल एक राजनीतिक मुकदमा किया गया है. वह भी पूर्ववर्ती लालू प्रसाद सरकार के इशारे पर यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है. इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.’ गया के कोतवाली थाना में सात दिसंबर 1991 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए प्रेम कुमार द्वारा दायर की गयी फौजदारी रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने बीते 9 मार्च को पूरक शपथपत्र दायर करने को कहा था.
पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शैलेश कुमार सिन्हा की एकल पीठ ने मंत्री के वकीलों की याचिका के बाद पूरक शपथ पत्र दायर करने को कहा था. अपनी याचिका में मंत्री ने कहा था कि पथराव करने वाले जुलूस में मंत्री शामिल नहीं थे. प्रेम कुमार के खिलाफ आरोप है कि भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया था वह उसमें शामिल थे. वह उस समय विपक्ष के नेता थे और पुलिस के साथ उनकी झड़प भी हुई थी.
इससे पहले नीतीश सरकार में सहकारिता विभाग के भाजपा मंत्री रामाधार सिंह को विपक्ष के दबाव में 18 मई को इस्तीफा देना पड़ा था. औरंगाबाद की एक स्थानीय अदालत ने सिंह को 15 वर्षों से फरार घोषित कर रखा था.
बहरहाल, मुख्यमंत्री नीतीश ने प्रेम कुमार के मामले को रामाधार प्रकरण से अलग बताते हुए संवाददाताओं से कहा, ‘नगर विकास और आवास मंत्री की पटना उच्च न्यायालय में दायर याचिका के बाद अदालत ने इस मामले पर रोक लगा रखी है. अदालत का स्थगनादेश जारी हुआ है.’ इसी मामले में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा, ‘कुमार को अपने पद से इस्तीफा देने की दरकार नहीं है. इस मामले को उठाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि पटना उच्च न्यायालय ने मामले को स्थगित कर दिया है.’ भाजपा मंत्री का बचाव करते हुए मोदी ने संवाददाताओं से कहा कि मीडिया के कुछ लोग बिना मतलब इस प्रकरण को सनसनीखेज बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि 23 जनवरी 1996 में कुमार को गया के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने फरार घोषित किया था, जिस पर वह पटना उच्च न्यायालय से 2010 में स्थगनादेश ले चुके हैं.
लोजपा ने इस मामले में प्रेम कुमार को अविलंब राजग सरकार से हटाने की मांग की थी. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने कहा कि गया के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने 15 वर्ष पहले कुमार को फरार घोषित किया था.
पारस ने कहा था, ‘मंत्री इस मामले में न सिर्फ फरार घोषित है बल्कि उन्होंने बीते विधानसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग के समक्ष दाखिल शपथ पत्र में इस मामले को छुपाया था. प्रेम कुमार के खिलाफ आइपीसी की धारा 147, 323, 337 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया था.’ लोजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि प्रेम कुमार के खिलाफ लगे आरोप को गंभीर बताया था और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उन्हें अविलंब बख्रास्त करने की मांग की थी.
भाजपा के प्रदेश डाक्टर सीपी ठाकुर ने कहा कि वह इस मामले में सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करेंगे और जरूरी कदम उठायेंगे.