नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी योजनाएं अक्सर दम तोड़ती नजर आती हैं, लेकिन बिहार में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का इलाज सरकारी खर्च पर कराने की राज्य सरकार की योजना खूब सफल हो रही है. सीमावर्ती क्षेत्रों में हालांकि यह विफल नजर आ रही है.
नक्सल प्रभावित औरंगाबाद, गया, जमुई, रोहतास सहित कई इलाकों में योजना सफल रही, हालांकि किशनगंज, पूर्वी चम्पारण, अररिया, बांका जैसे सीमावर्ती जिलों में यह योजना अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं रही.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष 22 मार्च से शुरू हुई इस योजना के तहत अररिया में स्वास्थ्य कॉर्ड देने के लिए 28 शिविर लगाए गए, लेकिन योजना की सफलता का प्रतिशत केवल 1.13 रहा. यहां 12,01,041 बच्चों को स्वास्थ्य कॉर्ड देने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक 13,590 बच्चों को ही कार्ड दिया जा सका है.
किशनगंज में भी अब तक 1.81 प्रतिशत बच्चों को ही योजना में शामिल किया जा सका है. इसी तरह बांका में अब तक लक्ष्य के मुकाबले में 6.48 प्रतिशत और पूर्वी चम्पारण में 3.15 प्रतिशत बच्चों को ही स्वास्थ्य कार्ड मुहैया कराया जा सका है.
मुख्यमंत्री के गृह जिला नालंदा में इस योजना की सफलता 80 प्रतिशत के ऊपर है. नालंदा में 5,03,081 बच्चों को स्वास्थ्य कॉर्ड देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें से 4,04,434 बच्चों को ही अब तक कार्ड उपलब्ध कराया गया है. नक्सल प्रभावित रोहतास जिले में इस योजना की सफलता 54 प्रतिशत से अधिक है तो बक्सर में लक्ष्य के मुकाबले 67 प्रतिशत सफलता मिली है.
स्वास्थ्य विभाग ने योजना की धीमी सफलता का कारण बच्चों के शिविरों में नहीं पहुंचने तथा सरकारी स्कूलों में छात्रों की कम उपस्थिति को बताया है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सचिव अमरजीत सिन्हा ने कहा कि लक्ष्य पूरा करने की पूरी कोशिश की जा रही है.
यह योजना राज्य के सभी करीब 11,000 स्वास्थ्य केंद्रों तथा उप केंद्रों के साथ-साथ राज्य के करीब 70,000 प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में प्रारम्भ की गई है. योजना के तहत बच्चों का इलाज पहले प्राथमिक स्वास्थ्य उप केंद्र में होगा और वहां से बाहर भेजे जाने की स्थिति में उनका इलाज देश के जाने माने अस्पतालों में कराया जाएगा.