छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के स्थानीय अदालत ने पीपूल्स यूनियन फार सिविल लिबरटीज के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव विनायक सेन, नक्सली नेता नारायण सान्याल और कलकत्ता के व्यवसायी पियूष गूहा को सरकार के विरुद्ध राजद्रोह करने का षड़यंत्र करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
रायपुर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बीपी वर्मा की अदालत ने आज सेन, सान्याल और गूहा को भारतीय दंड विधान की धारा 124 (क), सहपठित 120 बी के तहत आजीवन कारावास और पांच हजार रुपये का अर्थ दंड, छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम 2005 की धारा 8 (1) के तहत दो वर्ष का सश्रम कारावास और एक हजार रुपये का अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (2) के तहत एक वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (3) के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (5) के तहत पांच वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड तथा विधि विरूध्द क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967 की धारा 39(2) के तहत पांच वर्ष का सश्रम कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है.
अदालत ने इसके साथ ही नक्सली नेता नारायण सान्याल को विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967 की धारा 20 के तहत 10 साल सश्रम कारावास और दो हजार रुपये अर्थदंड की भी सजा सुनाई है. सभी धाराओं में मिली सजाएं साथ साथ चलेंगी.
अदालत ने कहा है कि अभियुक्तों के भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के विरुद्ध युद्ध करने, युद्ध करने का प्रयत्न करने या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करने, विधि विरूध्द संगम का सदस्य बने रहने, उसकी बैठकों में भाग लेने, अभिदाय करने या उसके प्रयोजनों के लिए अभिदाय प्राप्त करने या याचना करने या ऐसे संगम की क्रियाकलापों में किसी प्रकार से सहायता करने ऐसी संपत्ति धारण करने, जो आतंकवाद करने से उत्पन्न हुई या अभिप्राप्त की गई या आतंकवादी कोष के माध्यम से अर्जित की गई, के तथ्य स्थापित नहीं होते हैं. इसी प्रकार अभियुक्तों पियूष गुहा तथा विनायक सेन के आतंकवादी कार्य में संलग्न आतंकवादी गिरोह अथवा आतंकवादी संगठन के सदस्य रहने, आतंकवादी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध करने के तथ्य भी स्थापित नहीं होते हैं.
अदालत ने भोजन अवकाश से पहले जैसे ही विनायक सेन, गुहा और नारायण सान्याल को दोषी करार दिया वैसे ही विनायक सेन के परिजनों और पीयूसीएल के कार्यकर्ताओं के चेहरे पर मायूसी छा गई. सेन की पत्नी इलिना सेन, उनकी बेटियां और भाई दिपंकर सेन अदालत परिसर में ही उपस्थित थे और उन्होंने इस फैसले के खिलाफ में उच्च न्यायालय जाने की बात कही है.
विनायक सेन को अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने की जानकारी के बाद सेन के भाई दीपंकर सेन स्वयं पर काबू नहीं रख सके और उनके आंख से आंसू गिरने लगे. दीपंकर को इलिना सेन और पीयूसीएल के कार्यकर्ताओं ने समझाने की कोशिश की तब वे शांत हुए.
भोजन अवकाश के बाद तीनों अभियुक्तों के दंड के प्रश्न पर सुनवाई की गई. विशेष लोक अभियोजक टीसी पंड्या ने अभियुक्तों को अधिकतम सजा देने की मांग की. छत्तीसगढ़ पुलिस ने कलकत्ता के व्यवसायी गुहा को नक्सलियों का सहयोग करने के आरोप में छह मई वर्ष 2007 को रायपुर से तथा पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव विनायक सेन को 14 मई 2007 को गिरफ्तार किया था. आंध्रप्रदेश की पुलिस ने नक्सली नेता नारायण सान्याल को तीन जनवरी 2006 को भद्राचलम से गिरफ्तार किया था.
25 मई वर्ष 2009 को उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने पर विनायक सेन रिहा हो गए थे. जबकि सान्याल और गुहा अभी जेल में हैं.