केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर पुनर्विचार और वापस लेने की मांग की जिसमें घोड़ा व्यापारी हसन अली समेत काले धन से जुड़े सभी मामलों की जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया गया था.
सरकार ने उस आदेश की समीक्षा और पूरी तरह वापस लेने की मांग की है जिसमें उसे विदेश में जमा काले धन के मुद्दे पर जांच में धीमी गति के लिए अदालत की ओर से फटकार भी लगी थी. सूत्रों ने कहा कि फैसले को वापस लेने की मांग करने का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि इससे केंद्र को एक खुली अदालत में अपनी दलीलें आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा.
पुनरीक्षा याचिकाओं पर चैंबर में विचार किया जाता है जिसमें वकील भी मौजूद नहीं होते. सूत्रों के मुताबिक चार जुलाई को दिये गये आदेश को वापस लेने की अर्जी अलग से दाखिल की गयी है जिसमें केंद्र ने दलील दी है कि न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस.एस. निज्जर की पीठ ने उसके रुख को पूरी तरह सुने बिना फैसला सुनाया था.
केंद्र ने कहा कि पीठ ने तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम की दलीलों पर पूरी तरह विचार नहीं किया और काले धन के मुद्दे में जांच की निगरानी व तहकीकात के लिए उठाये गये कदमों को अनदेखा कर दिया.
सूत्रों ने कहा कि फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में जाने का निर्णय बंद कमरे में हुई एक बैठक में लिया गया है जिसमें वित्त और गृह मंत्रालयों के आला अधिकारियों ने एटार्नी जनरल जी.ई. वाहनवती और अन्य अतिरिक्त सालिसिटर जनरलों समेत शीर्ष विधि अधिकारियों के साथ अदालती आदेश पर विचार विमर्श किया.
सरकार ने चार जुलाई के अदालत के फैसले के पहले 20 पैराग्राफों में शीर्ष अदालत की टिप्पणियों पर आपत्ति उठाई है जिसमें पूर्व न्यायाधीशों न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी और एम.बी. शाह को एसआईटी का क्रमश: अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है. सरकार ने कहा कि पीठ ने पहले 20 पैराग्राफ गोपाल सुब्रमण्यम की ओर से बिना दलीलों के लिखे हैं. सुब्रमण्यम ने उसके बाद इस्तीफा दे दिया था.
पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि धन पैदा करना और इसे छुपा कर रखना सरकार की नरमी का स्तर उजागर करता है. पीठ ने विदेशी बैंकों में जमा अघोषित धन पर चिंता जताते हुए अपने आदेश में कहा था, ‘इस तरह के धन की मात्रा अपराध को रोकने और कर वसूलने, दोनों ही मामलों में सरकार की कमजोरी का सरसरी तौर पर संकेतक है.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि देश से विदेशी बैंकों में जा रहा बेहिसाब धन सरकार की संवैधानिक नजरिये से मामलों से नहीं निपट पाने की असमर्थता को झलकाता है. पीठ ने कहा कि काले धन के मुद्दे को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है और यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसी संपदा देश में वापस लाने के लिए हरसंभव प्रयास करे और विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले लोगों को दंड दे.