दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी की एक तिहाई ब्लूलाइन बसों के परमिट बढ़ाने संबंधी बस आपरेटरों की याचिका को खारिज कर दिया. दिल्ली सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि ब्लूलाइन बसों के हट जाने के बाद भी उनकी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली लोगों के लिए पूरी तरह सक्षम है.
वरिष्ठ अधिवक्ता केटी तुलसी ने कहा, ‘(परिवहन) विभाग का मानना है कि अगर सभी ब्लूलाइन बसें सड़कों से हट जाती है फिर भी उनकी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की वर्तमान क्षमता जरूरत से ज्यादा है.’ उन्होंने कहा कि इन ‘किलर’ बसों को दिल्ली की सड़कों से हटाना बहुत जरूरी है क्योंकि वे पैदल चलने वालों की सुरक्षा के लिये खतरा हैं जिससे इन लोगों के मौलिक अधिकार का हनन होता है.
अधिवक्ता ने कहा, ‘अनुमानित कुल जनसंख्या एक करोड़ 80 लाख के मुकाबले परिवहन के सभी साधनों की कुल क्षमता करीब एक करोड़ 47 लाख की है, जनसंख्या का एक तिहाई हिस्सा बुजुर्ग या महिलाएं या बच्चों के रूप में रोज यात्रा नहीं करने वालों का है.’
अधिवक्ता तुलसी ने कहा कि डीटीसी करीब 220 और बसें अपने बेड़े में शामिल करेगी जिससे 67 लाख और यात्रियों को लाने-ले जाने की क्षमता बढेगी. ब्लूलाइन संचालकों ने सरकार के कदम का विरोध करते हुये कहा कि दुर्घटना की संख्या में कमी आयी है.
न्यायमूर्ति ए के सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने ब्लूलाइन बस संचालक संघ की बसों को हटाने पर रोक संबंधी अपील को खारिज कर दिया. संघ ने ब्लूलाइन बसों के परमिटों की अवधि बढाने की मांग की थी.
संघ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद निगम ने सुनवाई के अंत में अपील की कि परमिट की मियाद का विस्तार किया जाए जिसे पीठ ने अस्वीकार कर दिया.
राज्य सरकार ने ब्लूलाइन बसों की वजह से राहगीरों के मन में व्याप्त भय और इस कारण उनके मूल अधिकारों के हनन की दलील देते हुए इन्हें बंद करने का फैसला किया है.