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आदर्श मामले में सीबीआई को अदालत की फटकार

बॉम्‍बे उच्च न्यायालय ने आदर्श हाउसिंग घोटाले में प्राथमिकी दर्ज करने में ‘देरी’ को लेकर मंगलवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो की कड़ी खिंचाई की और उसे दो सप्ताह के भीतर इस संबंध में अपना फैसला करने को कहा.

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बॉम्‍बे उच्च न्यायालय ने आदर्श हाउसिंग घोटाले में प्राथमिकी दर्ज करने में ‘देरी’ को लेकर मंगलवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो की कड़ी खिंचाई की और उसे दो सप्ताह के भीतर इस संबंध में अपना फैसला करने को कहा. उधर महाराष्ट्र सरकार ने केन्द्रीय एजेंसी से इस मामले की जांच कराए जाने का विरोध किया है.

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अदालत ने इसके साथ ही दो सप्ताह बाद अगली सुनवाई पर सीबीआई के संयुक्त निदेशक को उसके समक्ष पेश होने के लिए समन जारी किए जाने का भी निर्देश दिया. आदर्श मामले में एक याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश बी एच मार्लापल्ले और यू डी साल्वी की खंडपीठ ने कहा, ‘सीबीआई द्वारा मामले की प्रारंभिक जांच शुरू किए दो माह से अधिक का समय हो चुका है. आपने (सीबीआई) अब तक एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की.’

न्यायाधीश मार्लापल्ले ने कहा, ‘हम यह समझने में विफल रहे हैं कि एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों हो रही है. मीडिया रिपोर्टों में एक तरह से सीबीआई की प्राथमिकी का मसौदा तक आ चुका है और उसमें सभी आरोपियों के नामों का खुलासा किया गया है.’ {mospagebreak}

उधर, राज्य के गृह मंत्रालय ने अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा है कि आदर्श मामले में जो मुद्दे उठाए गए हैं वे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और केन्द्र सरकार का ‘बहुत अधिक लेना देना नहीं’ है. हलफनामे में कहा गया है, ‘इस प्रकार की जांच को किसी अन्य एजेंसी या सीबीआई को सौंपना एक अतिवादी उपाय है और बेहद दुर्लभ स्थिति में ऐसा किया जाता है.’

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इसमें साथ ही कहा गया है कि जांच को सीबीआई को सौंपने में कोई न्यायोचित आधार नहीं है. आदर्श हाउसिंग घोटाले में यह याचिका कार्यकर्ता सिमप्रीत सिंह द्वारा दाखिल की गयी थी जिसमें कहा गया है कि चूंकि सीबीआई और राज्य का भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) जांच में शामिल है, ऐसे में यह न्यायिक क्षेत्राधिकार का सवाल पैदा कर सकता है जिससे ‘जांच बाधित हो सकती है.’

याचिका के अनुसार, तीन पूर्व मुख्यमंत्री कथित रूप से इस घोटाले में शामिल हैं, और ऐसे में एसीबी पर प्रभावी तरीके से जांच नहीं करने का दबाव हो सकता है और इसलिए पूरी जांच सीबीआई के हवाले की जानी चाहिए. अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल डेरियस खम्बाटा ने सीबीआई का पक्ष रखते हुए जांच पूरी करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा और कहा, ‘यह एक संवेदनशील मसला है जिसमें बड़े नाम शामिल हैं. एजेंसी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती.’ {mospagebreak}

अदालत ने हालांकि एजेंसी को दो सप्ताह से अधिक का समय देने से इनकार कर दिया और सीबीआई के क्षेत्रीय निदेशक को अदालत में पेश होने का आदेश दिया. गृह मंत्रालय द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया है, ‘आदर्श मामले में, जो मुद्दे उठे हैं वे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. केन्द्र सरकार का इस मामले से कोई अधिक लेना देना नहीं है. इसलिए, सीबीआई को जांच सौंपने का कोई न्यायोचित आधार नहीं है.’

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इसमें आगे कहा गया है, ‘यह अनुमान लगा लेना कि एसीबी राज्य की एजेंसी होने के नाते जांच करने में सक्षम नहीं है या इसमें केन्द्र सरकार के अधिकारियों की कथित संलिप्तता के मद्देनजर आरोपों की जांच करने में उसे दिक्कत होगी, ये सब पूरी तरह गलत अवधारणा है.’

हलफनामा कहता है, ‘याचिकाकर्ता ने पूरी तरह इस तथ्य की अनदेखी की है कि यह अपराध की प्रकृति है जो महत्वपूर्ण है न कि अपराधी की पहचान.’ इसमें साथ ही कहा गया है कि जांच करने में एसीबी की क्षमता पर शंका जाहिर करने वाली याचिकाकर्ता की याचिका में कोई दम नहीं है.

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