मई 2012 में गोवा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह माह पहले मुख्यमंत्री दिगंबर कामत भले ही उसे भंग करने की सिफारिश करने की सोच रहे हों. पर ऐसा बहुत जल्द नहीं होगा. अवैध खनन के कारोबार में शहरी विकास मंत्री जोएकिम अलेमाओ और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष शिरोडकर के नाम सामने आने से कामत पर आंच आने लगी है कि वे उनका बचाव कर रहे हैं.
विपक्षी भाजपा का आरोप है कि इसमें खुद कामत का भी हाथ है; हालांकि उनका कहना है कि न तो वे और न ही उनका कोई रिश्तेदार इसमें शामिल है. लेकिन खनन की वजह से पर्यावरण को इस कदर नुक्सान हो रहा है कि राज्य में सालाना 120 इंच बारिश दर्ज होने के बावजूद उसे पानी के संकट से जूझ्ना पड़ रहा है.
बर्बादी का आलम हर जगह देखा जा सकता है. मसलन, मारगाओ रेलवे स्टेशन से घंटे भर की यात्रा करने पर दिखता है कि दक्षिण गोवा में कोलोंबा के नेत्रावली वन्यजीव अभयारण्य के रास्ते पर लगे नीम के पेड़ गायब हो गए हैं. लौह अयस्क के खनन के लिए खोदे गए गड्ढों की वजह से मिट्टी के विशालकाय ढेर जमा हो गए हैं.
सालाना 18,000 करोड़ रु. के वैध कारोबार के साथ खनन ने यहां के पर्यावरण को खासा तबाह कर दिया है. गोवा में देश के लोहे और मैग्नेशियम का 20 फीसदी भंडार है. वर्ष 2005 में चीन की ओर से कम ग्रेड वाले अयस्क का आयात शुरू किए जाने के बाद गोवा से होने वाले इसके निर्यात में आठ गुना वृद्धि हो चुकी है.
ऐसे में हैरत नहीं कि देश के कु ल भूभाग में महज 0.1 फीसदी की हिस्सेदारी करने वाले गोवा में देश भर में दिए गए कुल 536 खनन के पट्टों में से 117 अकेले यहीं हैं. ये खदानें प्रदेश के 259 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हैं, लेकिन पट्टेवाले क्षेत्रों से बाहर बड़े पैमाने पर अवैध खुदाई हो रही है. उसमें भी सर्वाधिक खुदाई ऐसे उम्दा वन क्षेत्रों में हो रही है, जो पर्यावरण के लिहाज से बहुत नाजुक हैं.
भाजपा का आरोप है कि बीते पांच साल में 10,000 करोड़ रु. की रॉयल्टी का नुक्सान हो चुका है. दरअसल, सस्ते उत्खनन ने गोवा में खनन को मुनाफे के सौदे में बदल दिया है. यहां किसी भी खदान का पट्टा महज एक बार दिए जाने वाले 5,000 रु. के शुल्क में हासिल किया जा सकता है. यहां महज 50 रु. में एक टन लौह अयस्क की खुदाई हो जाती है.
इसके परिष्करण और शुद्धिकरण में 500 रु. के लगभग खर्च बैठता है और ढुलाई पर 200 रु. प्रति टन खर्च होते हैं. 270 रु. की रॉयल्टी और 20 फीसदी के सीमा शुल्क के साथ प्रति टन खर्च तकरीबन 2,500 रु. बैठता है. और एक टन लौह अयस्क के निर्यात से 180 डॉलर यानी 7,920 रु. मिलते हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसिनोग्राफी (एनआइओ) के लिए खनिज अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने वाले गोवा के राजेंद्र काकोडकर कहते हैं कि पिछले आठ साल के दौरान लौह अयस्क की कीमतें आठ गुना बढ़ीं तो इससे होने वाला मुनाफा पचास गुना बढ़ गया है. सचमुच भारत में किसी वैध कारोबार के संचालन में 75 फीसदी मुनाफे की गुंजाइश की कोई मिसाल नहीं है.
विधानसभा में कामत की दी गई जानकारी के मुताबिक, गोवा से अयस्क का निर्यात सन् 2000 में 140 लाख टन से बढ़कर 2009-10 के दौरान 460 लाख टन हो गया. ये रॉयल्टी के भुगतान पर आधारित अस्थायी आंकड़े हैं. काकोडकर बताते हैं कि आंकड़ा इससे अधिक हो सकता है. उनका अंदाज है कि 2009-10 के दौरान यह 640 लाख टन होना चाहिए.
कर्नाटक के उलट, जहां निकाले गए 70 फीसदी अयस्क का संसाधन सरकारी नियंत्रण वाले सार्वजनिक उपक्रमों के हाथ में है, गोवा में सारा कारोबार निजी कंपनियों के जरिए होता है, जिन पर महज कुछ परिवारों का प्रभुत्व है. खनिज कारोबार के 83 फीसदी हिस्से पर चार शीर्ष खनिज संचालकों-सीसा गोवा, सलगावकरस, टिंबलोस और चौगुलेज-का कब्जा है.
पर खनिज कारोबारियों के वित्तीय आंकड़ों की जानकारी सार्वजनिक तौर पर किसी को नहीं है. सीसा गोवा अकव्ली कंपनी है, जिसकी सालाना रिपोर्ट उपलब्ध है. 2009-10 के दौरान इसने 140 लाख टन लौह अयस्क की बिक्री करके 3,445 करोड़ रु. का कर पूर्व मुनाफा कमाया. इस तरह उसे प्रति टन 2,500 रु. का मुनाफा हुआ.
खनिज कारोबार में गैरकानूनी तौर-तरीके राजनीतिकों, वन अधिकारियों, पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मिलीभगत के बिना मुमकिन नहीं हैं. यहां के नेता उत्खनन से सीधे जुड़े हुए हैं. विपक्ष के नेता मनोहर पर्रीकर का कहना है कि कामत, स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे और अलेमाओ की खनिज कारोबार में सीधी दिलचस्पी है. वैसे, कामत और राणे ने इस आरोप का खंडन किया है. कामत ने इंडिया टुडे से कहा कि न तो वे खुद और न ही उनका कोई रिश्तेदार खनिज कारोबार से जुड़ा है. राणे ने कहा कि वे 'बेबुनियाद' आरोप लगाने के लिए पर्रीकर पर मुकदमा ठोकेंगे. अलेमाओ ने स्पष्ट किया कि वे ठेकेदार हैं, खनिज कारोबारी नहीं हैं. शिरोडकर का कहना है कि उनका मुख्य कारोबार तो परिवहन कंपनी का है.
कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े ने, जिन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा और दूसरे लोगों के खिलाफ अवैध उत्खनन को लेकर गंभीर रूप से उंगली उठाई थी, 26 सितंबर को पणजी में कहा कि कर्नाटक के खनिज कारोबारियों की गोवा के अधिकारियों के साथ सांठगांठ थी ताकि वे अवैध तरीके से निकाले गए अयस्क को राज्य के बंदरगाहों के जरिए बाहर ले जा सकें. उन्होंने कहा, ''यहां सांठगांठ है. हमें पता नहीं कि इस अवैध कारोबार में कौन-कौन अधिकारी शामिल हैं. इसकी जांच करना गोवा सरकार का काम है.''
यह अवैध कारोबार मंजूर मात्रा से अधिक अयस्क के उत्खनन से शुरू होता है. कामत मानते हैं कि प्रदेश सरकार के पास ऐसा तंत्र नहीं है, जिससे पता लग सके कि ट्रकों में निर्धारित सीमा से अधिक अयस्क लदा है. पर्यावरणविद् क्लॉड अल्वारेस आरोप लगाते हैं कि खनिज विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी कभी मुआयना नहीं करते.
लौह अयस्क के निर्यात को लेकर खनिज कारोबारियों, प्रदेश खनिज विभाग और मारमगाओ बंदरगाह के अधिकारियों के मुहैया कराए गए आंकड़ों में भारी असमानताएं हैं. भाजपा का दावा है कि पिछले तीन साल में अकेले सत्तारी और सांगुएम तालुकों में 66 खनिज पट्टों से 6,100 करोड़ रु. मूल्य के 150 लाख टन लौह अयस्क का अवैध उत्खनन किया गया.
1987 में संसद ने गोवा, दमन और दिउ खनन रियायतें कानून पारित करके वे रियायतें खत्म कर दी थीं, जो पुर्तगाली प्रशासन खनिज कारोबारियों को दिया करता था. खनिज कारोबारियों ने इस अधिनियम को पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. यह मामला अभी 13 सदस्यीय पीठ के पास लंबित है. सिर्फ 500 खदानों को चालू रखने की इजाजत दी गई थी. खनिज कारोबारियों को 21 नवंबर, 1988 से पहले अपनी खदानों को नियमित करने और पट्टे को 10 साल के लिए बढ़ाने के लिए आवेदन देने को कहा गया था.
आज सिर्फ 336 खदानें ही वैध हैं. अल्वारेस का आरोप है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय ने पर्यावरण संबंधी आकलन कभी गंभीरता से नहीं किया. वे कहते हैं, ''2005 में जब चीन में मांग बढ़ने से उछाल शुरू हुई थी, तो पर्यावरण संबंधी आकलन सिर्फ कागजों पर था. 2005-09 के दौरान मंत्रालय ने 169 अनापत्तियां इतनी हड़बड़ी में जारी की थीं कि इसकी प्रतिलिपियां तक उसके पास नहीं हैं.'' दिलचस्प है कि इनमें इजाजत संबंधी अधिकांश मामले तब के हैं, जब ए. राजा पर्यावरण मंत्री थे.
काकोडकर कहते हैं कि पर्यावरण संबंधी प्रभाव इस कदर नुक्सानदेह है कि इसकी वजह से पिछले तीन साल के दौरान कृषि उत्पाद में कमी आई है और बागवानी से होने वाली आमदनी 30 फीसदी घट गई है. गोवा के वन संसाधनों के मूल्यांकन को लेकर पर्यावरणविदों प्रणब मुखोपाध्याय और गोपाल के. काडेकोडी की ओर से एनआइओ के लिए तैयार की गई 2010 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य को निकट भविष्य में पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, ''गोवा के वन संसाधनों के क्षरण का राज्य के जल चक्र पर नाटकीय असर पड़ सकता है, जो पश्चिमी घाट में स्थित मांडोवी, जुआरी और अन्य जलस्त्रोतों के निरंतर बने रहने वाले ताजा पानी के प्रवाह पर निर्भर होता है.''
खुदाई के कारण नदियों में गाद बढ़ती जा रही है. मांडोवी के जलग्रहण क्षेत्र में 30 खदानें हैं तो जुआरी के जलग्रहण क्षेत्र में 21 हैं. एनआइओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल मांडोवी में 70,000 टन लौह अयस्क के कण जमा हो जाते हैं, जिससे उसका पानी उपयोग के लिहाज से खतरनाक हो जाता है. खनन ने यहां की खेती को भी चौपट कर दिया है. शिवसरेम के किसान 55 वर्षीय विठु थानु दाइकर कहते हैं कि खदानों का अवशिष्ट जमा होने की वजह से उनके खेत की उर्वरता नष्ट हो गई है और उन्हें गुजर-बसर के लिए दूसरों के खेतों में काम करना पड़ता है.
कामत की अध्यक्षता में गोवा 2021 की योजना के लिए बनी समिति ने खदानों के मानचित्र तैयार करने की जरूरत पर जोर दिया है. समिति में जाने-माने वास्तुविद् चार्ल्स कोरिया और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के चेयरमैन ब्रेएन सोअर्स के अलावा आठ अन्य सदस्य हैं. समिति की रिपोर्ट कहती है, ''खुदाई ने इस इलाके में पर्यावरण और लोगों दोनों को ही प्रत्यक्ष और परोक्ष तरीके से भारी नुक्सान पहुंचाया है, जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
ऐसा हवा, पानी और वन की गुणवत्ता के साथ ही स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार और जीवन यापन की परिस्थितियों को प्रभावित करने की वजह से हुआ.'' इसमें बस्तियों, नदी तटों और वन्यजीव उद्यानों के 200 मीटर के पास स्थित खदानों को बंद करने की सिफारिश की गई है. यह बात सेलाउलिम और अंजुनेम जैसे जलाशयों से दो किमी की कम दूरी पर स्थित खदानों पर भी लागू होती है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम.बी. शाह की अगुआई में प्रदेश की खदानों के अध्ययन के लिए एक आयोग बनाया है. खदानों की बंद होने की आशंका को देखते हुए खदान मालिकों ने धमकी दी है कि यदि उत्खनन को रोका गया तो राज्य की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. एक खदान मालिक का कहना था, ''ऐसा होने से 15,000 ट्रक ड्राइवरों के अलावा खदानों में छोटा-मोटा काम करने वाले दो लाख ग्रामीणों के हाथ से रोजगार छिन जाएगा.''
कोई भी राजनैतिक दल नहीं चाहता कि खदानें बंद हो जाएं. शाह आयोग के सामने सबसे पहले पहुंचने वालों में कामत और राणे भी थे, जिन्होंने सितंबर के दूसरे हफ्ते में आयोग से आग्रह किया कि वह वैध तरीके से चल रही खदानों को बख्श दे. यहां तक कि पर्रीकर भी पूरी तरह प्रतिबंध के पक्ष में नहीं हैं. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि और पांच साल तक उत्खनन को चलने दिया गया तो आधा गोवा रेगिस्तान बन जाएगा.