कभी उत्तर प्रदेश का 'कश्मीर' कहा जाने वाला बुंदेलखण्ड घने जंगलों से आच्छादित था. पर्वत श्रेणियों और कलकल बहती नदियों की वजह से इसकी अलग पहचान थी, लेकिन आज यह खनन माफियाओं से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
'काला सोना' (ग्रेनाइट पत्थर) हासिल करने के लिए पिछले करीब एक दशक से खनन माफिया यहां पहाड़ों को नेस्तनाबूद करने में जुटे हैं. इस क्रम में क्षेत्र का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व भी कहीं पीछे छूट गया है.
बुंदेलखण्ड की पहाड़ों व नदियों का जिक्र महोबा के आल्हा-उदल की वीर गाथा, फिरंगी सेना के छक्के छुड़ा देने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई या भगवान श्रीराम के वनवास का प्रसंग में भी मिलता है. लेकिन यहां हो रहे खनन कार्य से पहाड़ों पर बने कई देवी-देवताओं के मंदिर और रजवाड़ों के किलों के अस्तित्व भी संकट में पड़ गए हैं.
उत्तर प्रदेश के खनिज विभाग ने हाल में ही सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत दी गई एक जानकारी में कहा है, 'बुंदेलखण्ड के सभी सात जनपद- बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी व ललितपुर के पहाड़ों में 1,311 स्थानों को चालू वर्ष में खनन क्षेत्र घोषित किया है. इनमें से 1,021 क्षेत्रों में पत्थर खनन का कार्य किया जा रहा है और इससे 510 अरब रुपये सालाना राजस्व की प्राप्ति होती है.'
ये हालांकि सिर्फ सरकारी आंकड़े हैं. पत्थर व्यवसाय से जुड़े पनगरा गांव के शुभेंद्र प्रकाश यादव के अनुसार, 'दर्जनों आवंटी ऐसे हैं, जो आवंटित क्षेत्र से कई गुना अधिक क्षेत्र में खनन कार्य करा रहे हैं. कुछ चोरी-छिपे यह कर रहे हैं तो कुछ खनिज विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से.'
महोबा जनपद का जुझार पहाड़ ग्रामीण बस्ती से लगा हुआ है. इस पहाड़ में एक प्रचीनतम हिन्दू देवस्थान है और इसलिए इसे बचाने के लिए ग्रामीणों ने एक माह तक आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप खनन तो रुका, लेकिन आवंटन अब तक निरस्त नहीं हुआ.
पहाड़ों में खनन का ठेका राज्य के कई प्रभावशाली नेताओं तथा उनके सगे-सम्बंधियों को दिया गया है. बांदा में शेरपुर स्योढ़ा गांव के पहाड़ में मां विंध्यवासिनी का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यहां भी खनन की अनुमति दी गई है. यहां खनन पट्टा राज्य की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में मंत्री रह चुके नेता को आवंटित किया गया है. इसी प्रकार नरैनी के बरुआ गांव के पहाड़ में राम जानकी का पुराना मन्दिर है, जहां बसपा के ही एक विधायक के भाई को खनन पट्टा दिया गया है.
खनन कार्य जहां पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है, वहीं इसके आसपास रहने वाले लोगों पर भी गहरा असर हो रहा है. 'नदी बचाओ-तालाब बचाओ' आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार का कहना है कि पहाड़ों में किए जा रहे बेधड़क उत्खनन से जहां पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, वहीं पहाड़ों के आस-पास की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि भी बंजर होती जा रही है.
वहीं, चित्रकूट जनपद के गोंडा गांव के रामदास महराज ने बताया कि यहां बस्ती के पास के पहाड़ में छह लोगों को खनन का पट्टा दिया है. करीब दो दर्जन खदानों में दिनभर विस्फोट होते हैं, जिससे भारी पत्थर बस्ती में गिरते हैं। अब तक कई लोग इसमें घायल हो चुके हैं, जबकि तीन की मौत हो चुकी है. खदानों से उड़ने वाली धूल के कारण सैकड़ों लोग सांस की बीमारी के शिकार हो गए हैं और पहाड़ के आसपास की करीब 50 बीघे की जमीन भी बंजर हो गई.
एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर के मुताबिक, महोबा के कबरई व चित्रकूट के भरतकूप में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पत्थर के सैकड़ों क्रशर मशीनें लगी हैं, जो मानक के विपरीत कार्य करती हैं.
वहीं, बांदा के भूतत्व एवं खनिज अधिकारी कमलेश का कहना है कि पहाड़ों में पहले से चिह्न्ति क्षेत्रों में ही खनन का पट्टा दिया गया है. खनन और विस्फोट के मानक निर्धारित हैं और मानक के विपरीत और आवंटित क्षेत्र से अधिक में खनन करने के मामले की जांच कराई जाएगी.