सर्वोच्च न्यायालय ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका सोमवार को खारिज करते हुए कहा कि सीएजी की तुलना मुनीम जी से नहीं की जानी चाहिए.
याचिका में दलील दी गई थी कि सीएजी को सरकार के नीतिगत फैसले की जांच करने और अनुमानित नुकसान का आकलन करने का अधिकार नहीं है. यह कहते हुए कि सीएजी की तुलना मुनीम जी से नहीं की जानी चाहिए, न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा और न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे की पीठ ने कहा कि सीएजी को केंद्र सरकार के खातों या लेखा बही का अंकेक्षक नहीं समझा जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, 'आपको मामले की तह में जाना होगा.'
अदालत ने कहा कि सीएजी एक कंपनी के अंकेक्षक से अधिक है और सरकार के नीतिगत फैसले की प्रभावोत्पादकता पर टिप्पणी कर सकती है.
याचिकाकर्ता अर्थशास्त्री अरविंद गुप्ता ने दलील दी थी कि सीएजी ने नागरिक उड्डयन, बिजली क्षेत्र तथा कोयला ब्लॉक के आवंटन पर अपनी रिपोर्ट में लाखों करोड़ों रुपये के नुकसान के आकलन के क्रम में सरकार की नीति पर जो टिप्पणी की है, उसका उसे अधिकार नहीं है.
अदालत ने कहा कि सीएजी का दायरा अधिकार क्षेत्र के नाम पर सीमित नहीं किया जा सकता. इसे सरकारी निर्णयों की कुशलता तथा प्रभावोत्पादकता की जांच करने का भी अधिकार है.
याचिका खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि सीएजी अपने संवैधानिक एवं वैधानिक अधिकार का उल्लंघन करती है तो संसद अंकेक्षण रिपोर्ट देखते समय इस बारे में कह सकती है.
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि सीएजी की रिपोर्ट की जांच करते समय संसद इसे स्वीकार कर सकती है, या खारिज कर सकती है या आंशिक रूप से स्वीकार कर सकती है.