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कैग ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन में गड़बड़ी का माना

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2008 में मोबाइल सेवा कंपनियों को लाइसेंस और 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटनों के मामले में अनिल अंबानी समूह और अन्य औद्योगिक घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा की तीखी आलोचना की है.

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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2008 में मोबाइल सेवा कंपनियों को लाइसेंस और 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटनों के मामले में अनिल अंबानी समूह और अन्य औद्योगिक घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा की तीखी आलोचना की है.

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सरकारी आडिटर ने इस मामले पर तैयार रपट में कहा है कि राजा ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में प्रधानमंत्री की सलाह की अनदेखी और सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आय का नुकसान कराया.

कैग की इस रिपोर्ट को मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में रखा गया. रिपोर्ट के अनुसार, राजा की 2जी स्पेक्ट्रम नीति से कई अन्य औद्योगिक घरानों यूनिटेक, डाटाकॉम (अब वीडियोकान), एस-टेल, स्वान और लूप टेलीकाम को अनुचित फायदा हुआ. इन कंपनियों को जनवरी, 2008 में लाइसेंस दिए गए थे. {mospagebreak}

कैग ने कहा है कि यूनिफाइड एक्सेस सर्विस लाइसेंस (यूएएसएल) के आवंटन की पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूर्णतया अभाव था और यह पूरी प्रक्रिया मनमाने, अनुचित और सभी को समान अवसर मुहैया कराए बिना पूरी की गई. इसमें वित्तीय पात्रता, नियमों और प्रक्रियाओं की पूरी तरह अवहेलना की गई.

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उस समय मौजूद आपरेटरों को 6.2 मेगाहर्ट्ज की अनुबंध की सीमा से अधिक के स्पेक्ट्रम आवंटन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि सुनील मित्तल की अगुवाई को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिला. भारती को 13 सर्किलों में 32.4 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम दिया गया. इसके बाद वोडाफोन एस्सार को 19.6 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया.

कैग का अनुमान है कि नए लाइसेंस जारी करने पर सरकार को 1.40 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है, जबकि मौजूदा आपरेटरों को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटन से 36,993 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ. {mospagebreak}

संसद में रखी गई 77 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियों की सही हैसियत का सही आकलन नहीं किया गया और यहां तक कि दूरसंचार नियामक ट्राई की सिफारिशों को भी सही भावना से नहीं अपनाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2007-08 में 122 कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन तथा 35 दोहरी प्रौद्योगिकी वाली सेवाएं परिचालित करने के लाइसेंस जारी करने की के जो मनमाने तरीके अपनाए गए उससे सरकार को अनुमानित 1,76,645 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ.

आडिटर ने यह अनुमान हाल में सरकार द्वारा की गई 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के मूल्य के आधार पर लगाया है. 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को 67,000 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल हुआ है. सरकारी आडिटर ने कहा है कि ऐसे में इस बात की जरूरत है कि रिपोर्ट में जिन गड़बड़ियों का उल्लेख किया गया है, उनके लिए जवाबदेही तय की जाए. {mospagebreak}

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खामियों और अनियमितताओं का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए पारदर्शी और उचित प्रक्रिया चाहते थे. वहीं वित्त मंत्रालय का सुझाव था कि स्पेक्ट्रम का मूल्य मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) के साथ विचार-विमर्श के बाद तय किए जाएं.

कैग ने कहा कि सभी चिंताओं और सुझावों को नजरअंदाज करते हुए दूरसंचार विभाग (डॉट) ने 2008 में 2जी स्पेक्ट्रम के लिए 122 नए लाइसेंस 2001 के मूल्य पर जारी कर दिए और इसमें सभी नियमों और प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉट ने लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों की हैसियत का भी सही आकलन नहीं किया और इस वजह से 122 लाइसेंसों में 85 लाइसेंस ऐसे आवेदकों को जारी कर दिए गए, जो इसके पात्र नहीं थे. आवेदन के समय ये कंपनियां चुकता पूंजी की अनिवार्यता को पूरा नहीं करती थीं. {mospagebreak}

सरकारी आडिटर के अनुसार, इन 85 लाइसेंस में से 45 लाइसेंस ऐसी कंपनियों को जारी किए गए जो मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन (एमओए) के मुख्य उद्देश्यों को ही पूरा नहीं करती थीं. कैग ने रिलायंस टेलीकम्युनिकेशंस और टाटा टेलीसर्विसेज जैसी प्रमुख दूरसंचार कंपनियों को दिए गए दोहरी प्रौद्योगिकी लाइसेंस की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि दोहरी प्रौद्योगिकी के लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता तथा ईमानदारी’ का अभाव था और इसी तरह के अन्य आपरेटरों को समान अवसर नहीं उपलब्ध कराए गए. ये आपरेटर सिर्फ नीति की औपचारिक घोषणा के बाद ही दोहरी प्रौद्योगिकी के लिए आवेदन कर सकते थे.

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