संकट से जूझ रही सरकारी एयरलाइंस एयर इंडिया के लिए कैग की रिपोर्ट और मुश्किलें खड़ी कर सकती है. पहले से ही पैसों की तंगी झेल रही एयर इंडिया पर कैग ने उंगली उठाते हुए कहा है कि कर्ज लेकर 111 विमान खरीदने का फैसला ही एयर इंडिया को ले डूबा. आश्चर्य की बात यह है कैग की इस रिपोर्ट में तत्कालीन उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का कहीं भी जिक्र नहीं है जबकि रिपोर्ट में नागर विमानन मंत्रालय और सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए हैं.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने देश में नागर विमानक्षेत्र के कामकाज पर अपनी ताजा रिपोर्ट में एयर इंडिया के विमान खरीद सौदे की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि कर्ज के सहारे 111 विमान खरीद सौदे का करार इस इस सरकारी एयरलाइन के लिए ‘संकट को दावत देने’ जैसा था.
गुरुवार को संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में कैग ने एयर इंडिया, नागर विमानन मंत्रालय से लेकर सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि लगता यह सौदा ‘विक्रेता प्रेरित’ था. ‘बड़ी संख्या में’ विमान खरीदने की पहल को ‘जोखिमभरा’ कदम बताते हुए रपट में कहा गया है कि इससे सरकार के कान खड़े हो जाने चाहिए थे. इन विमानों की खरीद से पिछले साल मार्च तक विमानन कंपनी पर 38,423 करोड़ रुपये की भारी ऋण देनदारी का बोझ आ गया.
रिपोर्ट में सरकारी अंकेक्षक ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के विलय को ‘गलत समय में’ किया गया विलय करार दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह संकट को दावत थी और इससे नागर विमानन मंत्रालय, सार्वजनिक निवेश बोर्ड और योजना आयोग के कान खड़े हो जाने चाहिए थे.’
कैग ने विमानन कंपनी के प्रबंधन के संबंध में सरकार को पूरी तरह से व्यवहारिक रुख अपनाने का सुझाव दिया. कैग ने जांच में पाया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में ‘अनुचित तौर पर लंबा समय’ लगा. कैग ने कहा कि शुरुआती प्रस्ताव दिसंबर, 1996 में किया गया था और इसकी समीक्षा जनवरी, 2004 तक जारी रही जब 28 विमानों की खरीद की योजना तैयार की गई और बाद में इसमें बदलाव कर 68 विमान खरीदने का निर्णय किया गया.
कैग ने कहा कि संशोधित योजना में खरीदे जाने वाले विमानों की संख्या में नाटकीय ढंग से बढ़ोतरी की गई और नवंबर, 2004 तक जो घटनाक्रम घटिए हुए उससे साफ है कि विलय से पूर्व एयर इंडिया ने अपनी पूर्व की योजना पर ‘जल्दबाजी में काम’ किया.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘बाजार की जरूरतों जिसमें तत्कालीन जरूरत और भावी जरूरत शामिल हैं और साथ ही इन अधिग्रहण के लिए जो तर्क दिए गए हैं उनकी व्यवसायिक व्यवहार्यता विमानों की संख्या में वृद्धि को लेकर किए गए अंकेक्षण की जांच में सही नहीं बैठते.’
कैग ने 68 विमानों की खरीद प्रक्रिया की ‘तेज गति’ पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां 28 विमानों की खरीद की पहली योजना पर निर्णय करने में 8 साल लग गए, पर ‘अगस्त, 2004 और दिसंबर, 2005 के बीच एयर इंडिया द्वारा दूसरी योजना तैयार कर ली गई, उसे बोर्ड ने मंजूरी दे दी, नागर विमानन मंत्रालय, योजना आयोग, व्यय विभाग, लोक निवेश बोर्ड, मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह और आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा इसकी समीक्षा कर मंजूरी दे दी गई.’
संशोधित योजना के लिए कई अनुमानों को ‘दोषपूर्ण’ पाते हुए कैग ने कहा कि बातचीत की प्रक्रिया ‘अनियमित थी और इससे प्रक्रिया की पारदर्शिता बुरी तरह प्रभावित हुई.’ कैग ने कहा कि कीमत की तुलना और व्यवसायिक सूझबूझ के संबंध में कोई बेंचमार्क तय नहीं किया गया था. इस तरह के बेंचमार्क की अनुपस्थिति में यह तय करना मुश्किल है कि किस तरह से कीमत पर पहुंचा गया.
सरकारी अंकेक्षक ने एयर इंडिया को विकास का समान अवसर उपलब्ध नहीं कराने वाले देशों के साथ द्विपक्षीय वायु यातायात पात्रता में उदारता दिखाने के लिए नागर विमानन मंत्रालय को कटघरे में खड़ा किया. कैग ने कहा, ‘इस स्थिति में एयर इंडिया सहित भारतीय विमानन कंपनियों को स्थापित अंतरराष्ट्रीय ‘दिग्गज विमानन कंपनियों’ के साथ प्रभावी तरीके से प्रतिस्पर्धा करने में नयी एवं गंभीर चुनौतियों से निपटना होगा.
कैग ने एयर इंडिया के खस्ता हाल के लिए जिम्मेदार अन्य कारकों में ‘परिचालन खामियों, कमजोर वित्तीय स्थिति, अपर्याप्त इक्विटी पूंजी और ऋण के जरिए वित्त पोषण पर अनुचित निर्भरता को गिनाया. इसके अलावा, विमान ईंधन की ऊंची कीमतें और वैश्विक मंदी से भी विमानन कंपनी बुरी तरह प्रभावित हुई. कैग ने कहा, ‘विमानन कंपनी एक संकट की स्थिति में है. वेतन भुगतान और एटीएफ की देनदारियों का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है. अगर विमानन कंपनी को जीवित रहना है, प्रबंधन और कर्मचारियों को व्यक्तिगत हितों को अलग रखना होगा और कुछ कठोर निर्णय करने होंगे.’