किसी महिला को अश्लील एसएमएस, एमएमएस, या ईमेल भेजने पर आपको तीन साल की जेल हो सकती है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में महिलाओं को अश्लील ढंग से पेश करने से रोकने वाले कानून में संशोधन का प्रस्ताव मंजूर किया गया. इसमें प्रस्ताव है कि ऐसी हरकतों में लिप्त लोगों के दोषी पाये जाने पर सात साल तक की कैद के साथ उन पर भारी जुर्माना लगाया जाए.
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सरकारी बयान के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इलेक्ट्रानिक जरिये से भेजी जाने वाली सामग्री को कवर करने के लिए कानून के दायरे को व्यापक बनाने के उद्देश्य से संशोधन किये गये हैं. ये संशोधन इसलिए भी आवश्यक थे क्योंकि मौजूदा कानून केवल प्रिंट मीडिया को ही कवर करता है.
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संशोधन के तहत महिलाओं को अश्लीन ढंग से पेश करने या उन्हें अश्लील मल्टीमीडिया मैसेज या ईमेल भेजने की हरकतों में लिप्त पाये जाने वाले व्यक्ति के पहली दफा दोषी पाये जाने पर जुर्माने की राशि 2000 रुपये से बढाकर कम से कम 50 हजार रुपये की गयी है जबकि ये राशि अधिकतम एक लाख रुपये होगी. साथ ही तीन साल की सजा का प्रावधान होगा.
यदि कोई व्यक्ति दूसरी बार यही हरकत करता पाया जाता है तो उसे सात साल की कैद और एक लाख रुपये से पांच लाख रूपये का जुर्माना देना पड सकता है. बयान में कहा गया कि इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के अधिकारी को तलाशी एवं जब्ती का अधिकार नहीं होगा.
इन संशोधनों के जरिए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाएगा कि महिलाओं को अश्लील ढंग से नहीं पेश किया जाए और इंटरनेट, मल्टीमीडिया मैसेज जैसे संचार के नये तौर तरीकों को भी कानून के दायरे में लाया जाए जो इलेक्ट्रानिक मीडिया के दायरे से कहीं आगे की चीजें हैं.
महिलाओं को अश्लील ढंग से पेश करने को रोकने से जुडे 1986 में बने कानून में महिलाओं को अश्लील ढंग से पेश करने को लेकर विभिन्न निषेधात्मक प्रावधान हैं. इस कानून का उद्देश्य विज्ञापनों, प्रकाशन, लेखन और पेंटिंग या अन्य किसी जरिये से महिलाओं को अश्लील ढंग से पेश करने पर रोक लगाना था.
बयान में कहा गया कि फिलहाल यह कानून केवल प्रिंट मीडिया को कवर करता है. पिछले कई वर्षों में प्रौद्योगिकीय क्रान्ति के चलते इंटरनेट, मल्टीमीडिया मैसेज, ईमेल, केबल टीवी आदि नये नये संचार माध्यम आ गये हैं, इसीलिए कानून के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता महसूस की गयी.
बयान के मुताबिक दिन प्रतिदिन के जीवन में उन्नत प्रौद्योगिकी और संचार के नये साधनों के बढते उपयोग के कारण महिलाओं का उत्पीडन रोकने के लिहाज से कानून में संशोधन करना आवश्यक था. विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले वकीलों और समाज के लोगों सहित सभी संबद्ध पक्षों से इस पर व्यापक सलाह मशविरा किया जाएगा.