कैबिनेट ने विस्तृत चर्चा के बाद प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के आचरण को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का फैसला करते हुए इस विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी.
अन्ना हज़ारे पक्ष ने हालांकि इसे देश की जनता के साथ ‘क्रूर मज़ाक’ बताते हुए इसे अदालत में चुनौती देने का संकेत दिया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी अध्यक्षता में हुई बैठक में अपने पद को लोकपाल के दायरे में लाने की पेशकश रखी लेकिन काबिना के उनके साथी मंत्रियों ने उनकी पेशकश को स्वीकार नहीं किया.
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और राकांपा के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का पक्ष लिया. बहरहाल, प्रधानमंत्री पद को इस प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी निकाय के दायरे में लाने की वकालत कर चुके संप्रग के अहम सहयोगी दल द्रमुक की ओर से रसायन और उर्वरक मंत्री एम के. अलागिरि कैबिनेट की बैठक में मौजूद नहीं थे.
अप्रैल में गांधीवादी अन्ना हज़ारे के अनशन के बाद सरकार ने लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में तेजी लाते हुए संयुक्त समिति का गठन किया था. हालांकि, इस समिति की नौ बैठकों के बाद भी ठोस नतीजा नहीं निकला और प्रधानमंत्री, न्यायपालिका तथा संसद के भीतर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में रखने को लेकर केंद्र के मंत्रियों और हज़ारे पक्ष के बीच मतभेद कायम रहे.
कैबिनेट द्वारा मंजूर किये गये मसौदा विधेयक पर प्रतिक्रिया देते हुए हज़ारे पक्ष ने इसे देश की जनता के साथ ‘क्रूर मज़ाक’ करार दिया. समाज के सदस्यों ने दोहराया कि हज़ारे इस विधेयक को वापस लेने और नया मजबूत विधेयक संसद में पेश करने की मांग को लेकर 16 अगस्त से फिर अनशन करेंगे.
हज़ारे पक्ष के प्रशांत भूषण ने यह भी दावा किया कि अगर यही विधेयक पारित हुआ तो प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने से छूट देना असंवैधानिक होगा. इस रियायत को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी. भूषण ने इस संदर्भ में वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किये गये संविधान के 39वें संशोधन का जिक्र किया, जिसके तहत प्रधानमंत्री के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. उन्होंने कहा कि इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय की छह सदस्यीय पीठ ने सिरे से खारिज कर दिया था.
विधि और न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि कैबिनेट ने जिस मसौदे को मंजूर किया है, उसमें हज़ारे पक्ष के 40 में से 34 सुझावों को शामिल किया गया है. इसमें केंद्रीय मंत्रियों तथा समूह ‘ए’ और उससे ऊपरी ओहदे वाले अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का अधिकार लोकपाल को देने के प्रावधान हैं.
खुर्शीद ने कहा कि लोकपाल को स्वायत्ता देने और उच्चतम न्यायालय की तर्ज पर भारत की संचित निधि में से उसे वित्तीय मदद देने जैसे हज़ारे पक्ष के सुझावों को स्वीकार किया गया है. इस विधेयक को संसद के एक अगस्त से शुरू हो रहे मानसून सत्र में शुरुआती एक-दो दिन के भीतर ही पेश किया जायेगा.
प्रस्तावित लोकपाल में एक अध्यक्ष और आठ अन्य सदस्य होंगे. इनमें से आधे न्यायपालिका से होंगे. अध्यक्ष पद पर उच्चतम न्यायालय के किसी सेवारत या सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश या न्यायाधीश को नियुक्त किया जा सकता है.
कैबिनेट की बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी, विधि और न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी नारायण सामी ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बताया कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई भी दर्ज शिकायत सात साल तक मान्य रहेगी और इस अवधि में उनके पद से हटने पर उस मामले में लोकपाल के तहत जांच शुरू की जा सकेगी.
खुर्शीद ने कहा कि स्थायी समिति इस पर विचार करेगी कि इस अवधि को क्या सात वर्ष से अधिक किये जाने की जरूरत है. अन्ना हज़ारे पक्ष की राय के बरखिलाफ न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से अलग रखने को सही ठहराते हुए खुर्शीद ने कहा कि न्यायपालिका की स्वायत्ता और स्वतंत्रता को बनाये रखना जरूरी है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका को जवाबदेही से मुक्त किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि इसके लिये न्यायिक मानदंड और जवाबदेही विधेयक 2010 संसद में पेश हो चुका है और वह अभी संसद की स्थायी समिति के पास विचाराधीन है. अंबिका सोनी ने कहा कि लोकपाल में गैर-न्यायिक पृष्ठभूमि वाले उन्हीं सदस्यों को शामिल किया जायेगा जो पूर्ण रूप से ईमानदार और असाधारण क्षमता वाले होंगे तथा जिन्हें प्रशासन में भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी की जिम्मेदारी वाले पदों पर काम करने का कम से कम 25 वर्ष का अनुभव हो.
नारायणसामी ने कहा कि लोकपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति करेगी. इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता, कैबिनेट के एक सदस्य और उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के एक-एक सेवारत न्यायाधीश शामिल रहेंगे.
लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर केवल राष्ट्रपति को ही इस संबंध में प्रधान न्यायाधीश को मामला भेजने का अधिकार होगा. प्रधान न्यायाधीश की सिफारिशों पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति का होगा. खुर्शीद ने स्पष्ट किया कि लोकपाल की निष्पक्षता को बनाये रखने के लिये यह प्रावधान किया गया है कि इस पद पर आसीन होने के बाद वह भविष्य में कभी भी किसी दल से चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.
उन्होंने कहा कि लोकपाल की विश्वसनीयता बनाये रखने के लिये इसके सदस्यों में किसी नेता को शामिल नहीं करने का फैसला किया गया है. मसौदा विधेयक कहता है कि लोकपाल को भविष्य में अभियोजन चल सकने की संभावना वाले मामलों में आपराधिक आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 197 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत मंजूरी प्राप्त करने की जरूरत नहीं होगी. लोकपाल को भ्रष्ट नौकरशाहों की भ्रष्ट तरीकों से जुटायी गयी संपत्ति को जब्त करने के भी अधिकार होंगे.
लोकपाल केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य, समूह ‘ए’ या उसके समकक्ष के किसी अधिकारी, संसद द्वारा पारित कानून के तहत किसी निकाय, बोर्ड, निगम, प्राधिकरण, कंपनी, सोसाइटी, ट्रस्ट और स्वायत्त संस्था तथा केंद्र सरकार के आशिंक या पूर्ण वित्तीय नियंत्रण वाले किसी निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी या समूह ‘ए’ के समकक्ष अफसर के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच कर सकेगा.
लोकपाल मसौदा विधेयक के तहत प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी निकाय को सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तीय मदद प्राप्त करने वाले या जनता से दान हासिल करने वाली किसी सोसाइटी या लोगों के संगठन अथवा ट्रस्ट के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य किसी अधिकारी के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के अधिकार होंगे. मसौदा कहता है कि जनता से दान हासिल करने वाले धार्मिक उद्देश्यों वाले संगठनों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जायेगा.
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