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भूमि अधिग्रहण विधेयक को मंत्रिमंडल की मंजूरी

सरकार ने भूमि अधिग्रहण मामले में जमीन के मालिकों को अधिक मुआवजा देने के साथ पेंशन और दूसरे लाभ दिये जाने के प्रावधानों वाले बहुप्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक को हरी झंडी दे दी.

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सरकार ने भूमि अधिग्रहण मामले में जमीन के मालिकों को अधिक मुआवजा देने के साथ पेंशन और दूसरे लाभ दिये जाने के प्रावधानों वाले बहुप्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक को हरी झंडी दे दी.

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी गई और अब इसे बुधवार को संसद में पेश किया जायेगा. देश में भूमि अधिग्रहण के विरोध में हुए कई आंदोलनों के बाद सरकार ने नया विधेयक तैयार किया है.

‘भूमि अधिग्रहण, राहत और पुनर्वास विधेयक 2011’ में समझा जाता है कि अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि के मालिक को जमीन के बाजार मूल्य से चार गुना अधिक मुआवजा दिये जाने का प्रावधान है. उद्योगों के लिये भूमि अधिग्रहण के मामले में भी सरकार केवल 20 प्रतिशत भूमि के अधिग्रहण में ही उद्योगों की मदद करेगी. इससे पहले उद्योगों को परियोजना के लिये 80 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण स्वयं करना होगा.

समझा जाता है कि विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि के मालिक को एक साल तक 3,000 रुपये प्रतिमाह का भत्ता और अगले 20 साल तक 2,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन का भुगतान किया जायेगा. विधेयक में परिवार के एक सदस्य को रोजगार दिये जाने का भी प्रावधान है. मंत्रिमंडल की करीब डेढ़ घंटे चली बैठक में विधेयक पर बारीकी से विचार विमर्श किया गया.

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ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने विधेयक पर अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों का समर्थन हासिल करने के लिये वरिष्ठ मंत्रियों से मुलाकात की. वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, कृषि मंत्री शरद पवार, रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी, गृह मंत्री पी. चिदंबरम सहित कई अन्य वरिष्ठ मंत्रियों से उन्होंने विधेयक पर समर्थन के लिये मुलाकात की.

हालांकि, समझा जाता है कि मंत्रिमंडल में शामिल पूर्व मुख्यमंत्रियों विलासराव देखमुख, वीरभद्र सिंह और वीरप्पा मोइली ने विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर सख्त रुख दिखाया. विधेयक में उन लोगों को रोजी रोटी के लिये भी मुआवजा दिये जाने का प्रस्ताव किया गया है जो भूमि के मालिक तो नहीं हैं लेकिन जीवनयापन के लिये उस भूमि से होने वाली पैदावार पर निर्भर थे.

समझा जाता है कि विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि भूमि अधिग्रहण के लिये जो भी सार्वजनिक वजह बताई जायेगी उसे एक बार बताने के बाद बदला नहीं जायेगा. विधेयक को मंत्रिमंडल की बैठक में इस बारे में निर्णय होने के बाद मंजूरी दी गई कि राज्य अपना खुद का भूमि अधिग्रहण कानून बनाने के लिये मुक्त होंगे.

विधेयक में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा दिये गये कई सुझावों को भी शामिल किया गया है. विधेयक में भूमि अधिग्रहण के साथ साथ पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना जैसे प्रावधानों को एक साथ रखा जाना परिषद का ही महत्वपूर्ण सुझाव था.

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परिषद ने भूमि अधिग्रहण के लिये उसके रजिस्टर्ड मूल्य से छह गुना अधिक मूल्य का मुआवजा दिये जाने का सुझाव दिया था. विधेयक को ऐसे समय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है जब देशभर में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों ने भारी विवाद किया.

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