भारत ने अमेरिका से यह स्पष्ट किया है कि ‘आतंक से लड़ने का दृढ़ रुख रखने वाले’ देश इसका सामना करने में चयनात्मक रवैया नहीं अपना सकते और इस आफत से ‘मिल-जुलकर’ एक साथ निपटना होगा.
विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ 40 मिनट तक चली द्विपक्षीय बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की. कृष्णा ने पत्रकारों को बताया कि बैठक ‘बहुत अच्छी और रचनात्मक रही’ और दोनों पक्षों ने आतंकवाद पर चर्चा करने के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय व काबुल स्थित अमेरिकी मिशन पर हाल में हुए हमलों की निंदा की.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इस बात पर जोर दिया कि आतंक के खिलाफ लड़ने का दृढ़ निश्चय कर चुके देशों के लिए यह जरूरी है कि वे इस लड़ाई में चयनात्मक रवैया अपनाए बगैर मिल-जुलकर काम करें और एक दूसरे का साथ दें.’’ कृष्णा ने यह भी कहा, ‘‘क्लिंटन हमसे सहमत हैं.’’
बैठक में हक्कानी समूह के मसले पर भी चिंता जताई गई और कृष्णा ने कहा, ‘‘जब भी आतंकवाद पर चर्चा होगी, आतंकवाद में शामिल हक्कानी समूह भी एक कारक होगा. अमेरिका की तरफ से हाल ही में आईएसआई पर हक्कानी समूह को समर्थन देने का आरोप लगाने से पाकिस्तान के मामले में अमेरिका और भारत के बीच सहमति बनने की बात पर कृष्णा ने कहा, ‘‘सवाल अमेरिका का भारत से सहमत होने और भारत का पाकिस्तान से सहमत होने का नहीं है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवाद पर अमेरिका का रुख भारत के साथ मिलने का यह मतलब नहीं है कि उन्होंने हमारा रवैया अपना लिया है या हमने उनकी तरह का रुख अख्तियार कर लिया है.’’ दोनों नेताओं ने असैन्य परमाणु संधि समेत फलस्तीन, सूडान और सीरिया के हालात पर भी चर्चा की.
नाम जाहिर न करने के अनुरोध पर एक अधिकारी ने बताया कि हिलेरी ने कृष्णा से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि भारत का परमाणु जवाबदेही शासन परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजे पर संधि की पुष्टि करे. कृष्णा ने कहा कि वह इस बैठक के नतीजों से ‘‘काफी संतुष्ट’’ हैं.
सीरिया और फलस्तीन के मामले में भारत और अमेरिका की अलग अलग राय के बारे में प्रतिक्रिया पूछने पर कृष्णा ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा था, ‘‘यह आदेश हम नहीं दे सकते कि देश अपने यहां के हालात से कैसे निपटें.’’
हाल ही में भारत ने रक्षा संबंधी कुछ अनुबंध अमेरिकी कंपनियों को नहीं दिए जिसके बाद प्रतीत होता है कि भारत . अमेरिका संबंधों में थोड़ा ठहराव आया है. इस बारे में पूछने पर कृष्णा ने कहा कि यह ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर अमेरिका का रूख उग्र हो.
उन्होंने कहा कि रक्षा संबंधी ठेके गुणवत्ता के आधार पर दिए जाते हैं और विशेषज्ञों ने गहन तुलनात्मक विश्लेषण किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि हम यदि किसी और को चुन लें तो कोई नाराज हो सकता है. इस क्षेत्र में अमेरिका लंबे समय से है और किसी खास मुद्दे को लेकर संबंधों को वह गलत तरीके से नहीं आंक सकता. कुछ बातों को हमें सामान्य तरीके से लेना होगा.’’ दक्षिण और मध्य एशिया में व्यापार और पारगमन मजबूत करने के लिए पहल के तौर पर ‘न्यू सिल्क रोड’ में सक्रिय भागीदारी के लिए हिलेरी ने भारत को शुभकामना दी.
अधिकारी ने कहा ‘‘इस्तांबूल में नवंबर के शुरू में होने वाले न्यू सिल्क रोड सम्मेलन पर मंत्रियों ने कुछ बातचीत की.’’