उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2008 में सामने आये ‘वोट के बदले नोट’ मामले में ‘लचर’ जांच के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई और पूछा कि मामले में शामिल लोगों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गयी.
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा की पीठ ने कहा, ‘दिल्ली पुलिस द्वारा की गई जांच से हम बिलकुल भी खुश नहीं हैं. इस तरह की गंभीर प्रकृति के अपराध के मामले में जांच करने का यह कोई तरीका नहीं है.’ पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मामले में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है.
पीठ ने कहा, ‘लोकसभा सचिव द्वारा की गई शिकायत पर लचर रुख के साथ जांच की गई है.’ पीठ ने जुलाई 2008 में संप्रग सरकार के विश्वास मत से संबंधित इस मामले में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर पुलिस को तीखी फटकार लगाई थी और दाखिल स्थिति रिपोर्ट पर पूरी तरह असंतोष व्यक्त किया.
उन्होंने कहा, ‘दो साल में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. हम सचमुच चिंतित हैं. जांच तेजी से बढ़नी चाहिए और इसे इसके तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाना चाहिए.’ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हरेन रावल ने अदालत को भरोसा दिलाया कि दो महीने में जांच होगी.
न्यायालय पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें सरकार को मामले में शामिल राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है. मामला सुनवाई के लिए आते ही पीठ ने दिल्ली पुलिस द्वारा सौंपी गई स्थिति रिपोर्ट की विषय वस्तु पर हैरानी जताई. जिसमें केवल कुछ सांसदों के बयान हैं.
पीठ ने पुलिस से कहा, ‘यह जांच नहीं है. आप अदालत को कुछ लोगों के बयानों के आधार पर एक कहानी सुना रहे हो. आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके.’ न्यायालय ने पुलिस से पूछा कि अब तक हिरासत में लेकर कोई पूछताछ क्यों नहीं की गई.
पीठ ने पुलिस से कहा कि दो सप्ताह के भीतर कार्रवाई की उचित रिपोर्ट जमा की जाए. रावल ने यह कहकर अदालत को मनाने का प्रयास किया कि फारेंसिक रिपोर्ट मिलने में देरी के चलते जांच में समय लग रहा है. उन्होंने न्यायाधीशों को भरोसा दिलाया कि इसे दो महीने के भीतर पूरा कर लिया जाएगा.
लिंगदोह ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 2008 में संप्रग सरकार के विश्वास मत के दौरान भाजपा के तीन सांसदों द्वारा नोटों की गड्डियां संसद में लहराए जाने की घटना को देखकर समूचा देश आवाक रह गया था, लेकिन अब तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. याचिका में कहा गया कि यह घटना 22 जुलाई 2008 की है लेकिन न तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने कोई प्राथमिकी दर्ज की और न ही संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष ने अब तक कोई वास्तविक कदम उठाया है.
तीन भाजपा सांसदों अशोक अरगल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा ने लोकसभा में एक करोड़ रुपये की गड्डियां पेश कर आरोप लगाया था कि विश्वास मत के दौरान सरकार के पक्ष में उनका समर्थन पाने के लिए उन्हें यह राशि संप्रग सरकार के नेताओं ने दी थी.
लिंगदोह ने अपनी याचिका में अदालत से सरकार को यह निर्देश देने का आग्रह किया है कि आरोपों की जांच त्वरित गति से कराए जाने के लिए एक स्वतंत्र विशेष जांच समिति (एसआईटी) का गठन किया जाए. भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार के मुद्दे पर वाम दलों ने संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.