केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि भारत आतंकवाद के लिहाज से ‘असुरक्षित’ बना हुआ है और नये संगठनों ने अपना सिर उठाया है, जिनका हाल के वर्षों में हुए कुछ आतंकी हमलों में हाथ होने का संदेह है.
चिदंबरम ने आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में कहा, ‘मैं आपको सावधान करता हूं कि भारत-पाकिस्तान सीमा से घुसपैठ के प्रयासों में कोई कमी नहीं आई है. इसके अलावा देश के भीतर भारी संख्या में माड्यूल सक्रिय हैं और कुछ नये संगठन भी पैदा हुए हैं जिनके हाल के वर्षों में हुए कुछ आतंकवादी हमलों में शामिल होने का संदेह है.’ उन्होंने कहा, ‘हम इन संगठनों का नाम लेने या इनकी करतूतों को उजागर करने से नहीं बच सकते चाहे वे किसी भी धर्म से संबंधित हों. मुझे प्रत्येक ऐसे गुट की निन्दा करने में कोई झिझक नहीं है जो अपने संदिग्ध धार्मिक हितों या कटटरवादी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आतंकवाद को माध्यम बनाता है.’
गृह मंत्री ने कहा, ‘इस संबंध में हमारी नीति स्पष्ट है कि प्रत्येक आतंकवादी और आतंकवादी संगठन पर कार्रवाई की जाएगी. उसे कानून के समक्ष लाया जाएगा और दंडित किया जाएगा.’ चिदंबरम ने हालांकि किसी संगठन विशेष का नाम नहीं लिया, जिनके बारे में हाल के वषो’ में आतंकी घटनाओं में शामिल होने का संदेह है.
उन्होंने कहा कि 2010 के अंत में 47 प्रमुख आतंकवादी मामलों में जांच चल रही थी और 2010 में ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को 11 नये मामले सौंपे गये हैं. पिछले साल जांच एजेंसियों ने एक बडे मामले में आरोप साबित करने में सफलता भी पायी है.
चिदंबरम ने कहा, ‘हमारे पड़ोस का वातावरण अशांत है. ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे कुछ पड़ोसी न केवल आतंकी कार्रवाइयों बल्कि अस्थिर राजनीतिक घटनाक्रम के प्रति भी असुरक्षित हैं जिसके परिणामस्वरूप किसी न किसी रूप में भारत भी प्रभावित होता है.’ उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ स्पष्ट परिणाम हैं. सीमा पार से आतंकवाद, विद्रोहियों का अप्रत्यक्ष सहयोग, शस्त्रों की तस्करी, जाली भारतीय मुद्रा, शरणार्थियों का आगमन. हमें इनमें से हर चुनौती से अंतरराष्ट्रीय और स्वदेशी कानून के तहत अपने दायित्वों की सीमा में रहते हुए और अपनी मुक्त एवं लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार निपटना है.
{mospagebreak} माओवादी हिंसा की चर्चा करते हुए चिदंबरम ने कहा, ‘वामपंथी उग्रवाद या नक्सलवाद गंभीर चुनौती बना हुआ है. अक्तूबर 2009 में सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिये गये फैसले के अनुसरण में केन्द्र ने नक्सल हिंसा प्रभावित राज्यों को अतिरिक्त बल मुहैया कराये.’ उन्होंने कहा कि नक्सलवाद की चुनौती का मुकाबला करने के लिए विकास एवं पुलिस कार्रवाई के हमारे द्विआयामी नजरिये में कोई बदलाव नहीं आया है.
उन्होंने कहा, ‘मेरा यह दृढ विश्वास है कि हमारा द्विआयामी दृष्टिकोण सफल होगा, लेकिन हमें अटल और धर्यवान बनना होगा. सरकार का बातचीत का प्रस्ताव तभी लागू होगा जब भाकपा-माओवादी हिंसा छोड दे.’ जम्मू-कश्मीर के हालात के बारे में चिदंबरम ने कहा कि पिछले चार महीनों में हमने राज्य में जो शांति का वातावरण देखा है, उसके लिए हम लोगों ने कड़ी मेहनत की है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे और वार्ताकारों की नियुक्ति के बाद उल्लेखनीय सुधार हुआ है.
चिदंबरम ने कहा कि वार्ताकार बातचीत का रूख बदलने में सक्षम रहे हैं. हमने उनको प्राप्त सुझावों के आधार पर राजनीतिक हल की रूपरेखा जिम्मेदारी सौंपी है. उन्होंने कहा, ‘मैं पुरजोर अपील करना चाहता हूं कि कुछ भी ऐसा बोला या किया न जाए, जिससे शांति भंग हो या राजनीतिक हल खोजने की प्रक्रिया ही पटरी से उतर जाए.’
उन्होंने कहा, ‘अंतिम निर्णायक हालांकि भारत की जनता है लेकिन मुझे यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि पिछले दो साल में आंतरिक सुरक्षा हालात में काफी सुधार हुआ है. यह काफी हद तक राज्य सरकारों से हमें मिले सहयोग और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के विचारों में सामंजस्य के कारण संभव हुआ है.’ गृह मंत्री ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश आतंक के खतरे से सुरक्षित नहीं लगता. 2010 में कम से कम 35 ऐसी घटनाएं हुई, जिन्हें प्रमुख आतंकवादी हमले करार दिया जा सकता है. इस वर्ष के पहले महीने में आतंकवाद की कम से कम 13 बडी घटनाएं हुईं.
{mospagebreak} चिदंबरम ने कहा, ‘आतंकवादी कार्य या इस प्रकार के कार्य के गंभीर प्रयास पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, फिलीपीन्स, तुर्की, इराक, ईरान, नाइजीरिया और अमेरिका में हुए हैं. आप पाएंगे कि अधिकांश आतंकवादी घटनाएं उन क्षेत्रों में हुई हैं जो हमारी सीमाओं से दूर नहीं है. इस प्रकार भारत में आतंकवाद का खतरा बना हुआ है.’ पुणे और वाराणसी की घटनाओं में कम क्षति को रेखांकित करते हुए चिदंबरम ने कहा कि दोनों ही मामलों में संबद्ध राज्य सरकारों को विशेष खुफिया जानकारी दी गयी थी.
उन्होंने कहा, ‘यह आशा करना वास्तविकता से परे होगा कि इन दोनों मामलों में एकत्र की गई खुफिया खबरें और अधिक विशिष्ट हो सकती थीं.’ उन्होंने कहा कि यह बात सीखनी होगी कि सतर्कता ‘कभी कभार’ का मामला नहीं है. सतर्कता चौबीसों घंटे होनी चाहिए विशेषकर तब, जब अलर्ट जारी कर दिया गया हो अन्यथा पुलिस की नेकनीयती के बावजूद चूक होगी और परिणामस्वरूप क्षति होगी.
चिदंबरम ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति में आश्चर्यजनक बदलाव हुआ है. वहां बीते वर्षों की तुलना में 2010 में हिंसा का स्तर न्यूनतम रहा. अब समय आ गया है कि हम विद्रोही गुटों के प्रति अपनी विचारधारा बदलें. यदि वे बातचीत के इच्छुक हैं तो हमें उनके नेताओं का सम्मान करना चाहिए, निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए. साथ ही उनके कार्यकर्ताओं को नई जिन्दगी शुरू करने का मौका देना चाहिए.
केन्द्र सरकार की ओर से राज्यों को पूर्ण सहयोग का वायदा करते हुए उन्होंने उनसे अपील की कि वे सुरक्षाबलों को और अधिक संसाधन मुहैया करायें. उन पर अधिक ध्यान दें और बेहतर दिशानिर्देश दें.