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शांति से सुलझेगा भारत-चीन मसला: आडवाणी

भारत, चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को एकमात्र विकल्प बताते हुए पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उम्मीद जताई है कि वह दिन जल्द ही आएगा जब भारत में निर्वासन में रहे आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और अन्य तिब्बती नागरिक अपनी मातृभूमि तिब्बत जाएंगे और उसका भविष्य संवारेंगे.

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भारत, चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को एकमात्र विकल्प बताते हुए पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उम्मीद जताई है कि वह दिन जल्द ही आएगा जब भारत में निर्वासन में रहे आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और अन्य तिब्बती नागरिक अपनी मातृभूमि तिब्बत जाएंगे और उसका भविष्य संवारेंगे.

दुनिया भर में फैले तिब्बत समर्थक समूहों द्वारा हरियाणा के सूरजकुंड में पांच नवंबर से सात नवंबर तक आयोजित छठें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आडवाणी की मुलाकात दलाई लामा से हुई थी.

वरिष्ठ भाजपा नेता ने इस मुलाकात का जिक्र करते हुए अपने ब्लॉग में लिखा है ‘सम्मेलन में मैंने भारत और चीन के संबंधों का जिक्र किया जो कि 21वीं सदी में विश्व के इतिहास की दिशा के प्रमुख आधार होंगे. भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.’ उन्होंने 1962 में भारत चीन युद्ध के बारे में ब्लॉग में लिखा है ‘1962 में चीन के छल के बावजूद मोरार जी भाई देसाई की सरकार में तत्कालीन विदेश मंत्री और फिर राजग सरकार के छह साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सायास प्रयास किए.’

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आडवाणी के अनुसार, दुनिया मानती है कि चीन और भारत वर्तमान सदी में एशिया की दो उभरती महाशक्तियां हैं. वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में गृह मंत्री रहे आडवाणी ने नेटवर्क 18 के संपादक, संस्थापक और शेयर धारक राघव बहल द्वारा लिखी गई किताब ‘सुपर पॉवर : द अमैजिंग रेस बिटवीन चाइना’ज हेयर एंड इंडिया’ज टॉरटॉइज’ का जिक्र भी किया है.

उन्होंने लिखा है ‘‘तिब्बत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को चीन की कथित सांस्कृतिक क्रांति (1967-77) के नाम पर गहरी क्षति पहुंचाई गई और वहां बहुत ज्यादातियां हुई’. लेकिन इसके बावजूद तिब्बत तिब्बतियों की मातृभूमि बना रहेगा.’ पूर्व उप प्रधानमंत्री ने लिखा है ‘मैं उम्मीद और प्रार्थना करता हूं कि वह दिन जल्द आए जब, निर्वासन में रहने के लिए बाध्य दलाई लामा और अन्य तिब्बती नागरिक अपनी मातृभूमि लौट सकें और तिब्बत का भाग्य संवार सकें.’

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