कोयला खान आवंटन में गड़बड़ी को लेकर विपक्ष के निशाने पर आये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पलटवार की तैयारी कर ली है जिसमें कहा जा सकता है कि निजी कंपनियों को 1.85 लाख करोड़ रुपये के लाभ का आंकड़ा ‘भ्रामक’ है.
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने संसद में विपक्ष के आरोपों की काट के लिए छह बिंदुओं वाला जवाब तैयार किया है पर दोनों सदनों की कार्यवाही में व्यवधान के कारण वे जवाब नहीं दे सके हैं.
मनमोहन का इस बात पर जोर है कि कोयला ब्लॉक आवंटन किसी कंपनी के साथ पक्षपात किये बिना पूरी तरह उपयुक्त और पारदर्शी तरीके से किया गया. विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर हंगामा कर रही हैं और पिछले दो दिन से संसद की कार्यवाही नहीं चल पा रही है.
सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा तैयार जवाब का ज्यादा जोर इस बात पर है कि छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, ओडिशा और झारखंड राज्यों की सभी गैर-संप्रग सरकारों ने वर्ष 2005 में नीलामी प्रक्रिया के बारे में केन्द्र द्वारा विधेयक लाने का विरोध किया था.
जवाब में उन्होंने कोयला ब्लॉक आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया शुरु करने में देरी के लिये इन राज्यों की सरकारों द्वारा किये गये विरोध को जिम्मेदार ठहराया. उनके अनुसार, ‘विभिन्न पक्षों, राज्यों और मंत्रालयों के प्रस्ताव के खिलाफ होने के बावजूद कोई भी नया तरीका अमल में लाने से पहले संबंधित कानून में बदलाव और आम सहमति बनाने की जरुरत होती है.’ बहरहाल, बोली के जरिये नीलामी का कानून अब तैयार कर लिया गया है.
कोयला ब्लॉक आवंटन में देरी का भी कैग ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है, ‘जो भी मुद्दे उठाये गये हैं वह सभी का संतोषप्रद जवाब दे सकते हैं.’
कैग की रिपोर्ट का प्रतिवाद करते हुये प्रधानमंत्री का कहना है कि इसमें उन्हें ‘गलतियां’ लगती हैं. कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005 से 2009 के बीच कोयला खान आवंटन में विभिन्न खामियों के चलते निजी क्षेत्र की कंपनियों को 1.85 लाख करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाया गया.
प्रधानमंत्री का कहना है कि कैग ने इस आंकड़े की गणना 57 खानों के आवंटन के आधार पर की है, जबकि इसमें से 31 कोयला खानें 2006 से पहले की हैं. इसके अलावा नुकसान की राशि के अनुमान को भी उन्होंने भ्रामक बताया. उन्होंने कहा कि कैग ने नुकसान का अनुमान कोल इंडिया के मूल्य के हिसाब से लगाया है, जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियों के लागत के बारे में अलग मानदंड होते हैं.
मनमोहन ने सरकार के नीतिगत निर्णय पर कैग के सवाल उठाने पर भी आपत्ति जताई है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कानून मंत्रालय की इस राय का जिक्र किया है जिसमें मंत्रालय ने कहा है कि इसके लिये वैकल्पिक अथवा विधान में परिवर्तन हो या फिर प्रतिस्पर्धी बोली शुरु करने के लिये प्रशासनिक निर्देश के विकल्प को चुना जाना चाहिये. यह मंत्रालय का नीतिगत निर्णय था.
सूत्रों के अनुसार बोली के जरिये नीलामी करने संबंधी कानून बनाने में देरी के आरोप पर प्रधानमंत्री का कहना है कि इसमें लगने वाली प्रक्रिया की वजह से ही नहीं बल्कि सहमति बनाते हुये किसी निर्णय पर पहुंचने में होने वाले विचार विमर्श के चलते सामान्य कानून बनाने में भी काफी समय लग जाता है.
इस संबंध में सरकार का कहना है कि कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव वर्ष 2001 से ही लंबित पड़ा था. उस समय भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सत्ता में था. इन बातों पर जोर देने के पीछे सरकार का मकसद विधेयक को संसद में रखने से पहले होने वाले ‘विचार विमर्श की गंभीरता’ और ‘संवेदनशील मुद्दों पर आम सहमति बनाने’ में लगने वाले समय से है.
प्रधानमंत्री का जोर इस बात पर भी है कि निजी इस्तेमाल हेतु कोयला ब्लॉक की नीलामी के लिये प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया शुरु करने के वास्ते दिशानिर्देश और संबंधित प्रक्रिया तैयार करनी होती है. समुचित विचार विमर्श के बाद इस साल 2 फरवरी को नियम अधिसूचित कर दिये गये.
मनमोहन का जवाब कैग की इस दलील के भी खिलाफ होगा कि कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिये कोल इंडिया के आरक्षित ब्लॉक उन्हें निजी इस्तेमाल के लिये आवंटित करने की कोयला मंत्रालय की योजना के वांछित परिणाम नहीं मिले. सरकार का कहना है कि देश में कोयले का उत्पादन वर्ष 2004.05 से लेकर 2009.10 के बीच सात प्रतिशत बढा है.