प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसरो की व्यवसायिक शाखा एन्ट्रिक्स और एक निजी कंपनी के बीच दुर्लभ एस बैंड स्पेक्ट्रम को लेकर हुये विवादास्पद समझौते के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा के लिये एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया.
योजना आयोग के सदस्य बी के चतुर्वेदी की अध्यक्षता में दो सदस्यीय समिति का गठन किया गया है जो एन्ट्रिक्स और देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच हुए समझौते के तकनीकी, व्यवसायिक, प्रक्रियागत एवं वित्तीय पहलुओं की समीक्षा करेगी.
यह समिति एन्ट्रिक्स, इसरो और अंतरिक्ष विभाग द्वारा अपनायी गई प्रक्रिया और स्वीकृति प्रक्रिया का अध्ययन करेगी और इसमें सुधार तथा परिवर्तन का सुझाव देगी.
समिति से कहा गया है कि वह एक महीने के अंदर अपनी सिफारिशें प्रधानमंत्री को सौंप दे. सिंह अंतरिक्ष विभाग के प्रभारी मंत्री हैं. अंतरिक्ष मामलों के प्रख्यात विशेषज्ञ और अंतरिक्ष आयोग के सदस्य रोडम नरसिंहा इस समिति के दूसरे सदस्य हैं.
इस मुद्दे पर संक्षिप्त चर्चा के बाद प्रधानमंत्री ने कैबिनेट को बताया कि उन्होंने इस विषय पर एक समिति का गठन कर दिया है जो एक महीने के अंदर रिपोर्ट देगी.
यह पूछे जाने पर कि जब समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे तब चतुर्वेदी कैबिनेट सचिव थे, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि वह इस विषय पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि वह जानते होंगे कि कैसे और क्यों यह (समझौता) हुआ.
दूसरी ओर, चतुर्वेदी ने भी उन बातों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया है कि वह इस मामले में निष्पक्ष रिपोर्ट देने की स्थिति में नहीं होंगे क्योंकि जब यह समझौता हुआ था, उस समय वह कैबिनेट सचिव थे.
{mospagebreak} मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरिक्ष विभाग ने एस बैंड स्पेक्ट्रम को 70 मेगाहर्टज को देवास मल्टीमीडिया को एक हजार करोड़ में आवंटित किया. जबकि इसकी वास्तविक कीमत करीब दो लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस आरोप का खंडन किया और कहा कि इस दिशा में कोई फैसला नहीं लिया गया है. इसलिये नुकसान का आरोप आधारहीन है. एन्ट्रिक्स के साथ एस बैंड स्पेक्ट्रम का विवादास्पद समझौता कर चर्चा में आई देवास मल्टीमीडिया ने कहा कि उसके पास व्यवसाय के लिये सरकार से सभी ‘उचित स्वीकृति’ मिली हुई है.
देवास के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रामचंद्रन विश्वनाथन ने कहा कि उसका अभी एन्ट्रिक्स कारपोरेशन के साथ कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है और वह अभी भी इसरो से इस समझौते के अनुपालन का इंतजार कर रहे हैं.
उन्होंने अपने एक वक्तव्य में कहा, ‘समझौते के सम्मान में देवास ने पिछले छह वर्षों में अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी की हैं और वह अब इसरो से इस समझौते के अनुपालन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसमें समझौते के हिसाब से दो साल की देरी हो चुकी है.’ उन्होंने कहा कि सरकार से सभी जरूरी सहमति और स्वीकृति मिलने के बाद देवास इस परियोजना पर आगे बढ़ी है. अंतरिक्ष आयोग और केंद्रीय कैबिनेट तथा एंट्रिक्स ने फरवरी 2006 में इसकी पुष्टि की थी.
रामनाथन ने कहा कि देवास ने व्यवसाय करने के लिये सरकार से सभी स्वीकृति हासिल की है.
उन्होंने कहा, ‘देवास में सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफआईपीबी की स्वीकृति के बाद हुआ. इसमें सरकार के सभी नियमों का अनुपालन किया गया है.’