राजनीति, रक्षा और खेल मामलों में मजबूत पकड़ वाली शख्सियत के रूप में चर्चित सुरेश कलमाड़ी के लिये राष्ट्रमंडल खेल बतौर खेल प्रशासक उत्कर्ष बिंदु थे लेकिन यही खेल कलमाड़ी के जीवन पर ऐसा धब्बा लगा गये जिसे मिटाने में शायद उन्हें वर्षों लग जायेंगे.
खेल प्रशासक के रूप में कलमाड़ी के कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन रहा लेकिन इन खेलों में भ्रष्टाचार और अनियमिताओं के आरोपों से वह इतने बुरी तरह घिरे कि उन्हें पहली बार जीवन में हर कदम पर नीचा देखना पड़ा.
कलमाड़ी पिछले 15 साल से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं और इस दौरान उन्होंने देश में एफ्रो एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन करवाया लेकिन लगता है कि 67 वर्षीय खेल प्रशासक की कार्यशैली ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन बन गयी क्योंकि विभिन्न खेल महासंघों में काबिज उनके साथियों ने उन पर ‘तानाशाह’ होने का आरोप लगाया.
कलमाड़ी को आज राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति से बख्रास्त किया जाना खेल प्रशासक के तौर उनके कैरियर के अंत का संकेत माना जा रहा है. वह अब भी खेलों से जुड़ी संस्थाओं में कई उंचे पदों पर काबिज हैं जिनमें आईओए प्रमुख है.{mospagebreak}
कलमाड़ी 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिये नई दिल्ली की दावेदारी पेश करने वाली समिति के अध्यक्ष थे.
वर्ष 1982 से वर्ष 2004 तक चार बार राज्यसभा सदस्य और 11वीं तथा 14वीं लोकसभा के सदस्य रहे कलमाड़ी वर्ष 2001 से लगातार एशियाई एथलेटिक्स संघ (एएए) के अध्यक्ष हैं. वह वर्ष 1989 से 2006 तक भारतीय एथलेटिक्टस संघ के भी अध्यक्ष रहे जिसके बाद उन्हें इस संघ का आजीवन अध्यक्ष बना दिया गया .
कलमाड़ी की अध्यक्षता में ही वर्ष 2003 में हैदराबाद में एफ्रो एशियन गेम्स का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया. वर्ष 2008 में पुणे में हुए राष्ट्रमंडल युवा खेल भी कलमाड़ी की ही अध्यक्षता में आयोजित हुये.
एक मई 1944 को जन्मे कलमाड़ी की शिक्षा पुणे के सेंट विंसेंट हाई स्कूल और फिर फर्गुसन कालेज में हुई. वर्ष 1960 में वह खड़कवासला, पुणे में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में शामिल हुए जिसके बाद उन्होंने 1964 में एयर फोर्स फ्लाइंग कालेज, जोधपुर में प्रवेश किया. कलमाड़ी ने 1964 से 72 तक वायु सेना में अपनी सेवायें दीं और भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके सराहनीय सेवाओं के लिये आठ पदकों से नवाजा गया.