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भ्रष्टाचार मानवाधिकारों का उल्लंघन है: सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यवस्थागत भ्रष्टाचार मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और ऐसे मामलों में अदालतें यदा-कदा ही दोषियों को दंडित कर पाती हैं.

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सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यवस्थागत भ्रष्टाचार मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और ऐसे मामलों में अदालतें यदा-कदा ही दोषियों को दंडित कर पाती हैं.

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भ्रष्टाचार एक दंडात्मक अपराध
न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान और न्यायमूर्ति फाकिर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने एक फैसले में कहा, 'भ्रष्टाचार न केवल एक दंडात्मक अपराध है, बल्कि यह मानवाधिकारों को भी कमजोर करता है, अप्रत्यक्ष रूप से उनका उल्लंघन करता है.' न्यायमूर्ति चौहान ने कहा, 'व्यवस्थागत भ्रष्टाचार अपने आप में मानवाधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि यह व्यवस्थागत आर्थिक अपराधों को जन्म देता है.'

सजा के निलंबन में सावधानी जरूरी
फैसले में चेताया गया है कि अपीली अदालतों को किसी सजा और दोष को निलम्बित करने में अपने अधिकारों का इस्तेमाल केवल विशेष परिस्थिति में ही करनी चाहिए और ऐसे अधिकारों का इस्तेमाल बहुत सावधानी और संयम के साथ करना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि विशेष परिस्थिति में भी सजा व दोष को निलम्बित करने के अधिकार का प्रयोग उसी समय किया जाना चाहिए, जब दोषी व्यक्ति न्यायालय को संतुष्ट करता हो.

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राहत देने योग्‍य कारण होना जरूरी
फैसले में कहा गया है, 'अपीली न्यायालय को याचिकाकर्ता द्वारा पेश किए गए सभी तथ्यों पर न्यायसंगत तरीके से विचार करना चाहिए और इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या मामले से जुड़े तथ्य और परिस्थितियां ऐसी हैं जो ऐसी कार्रवाई की मांग करती हैं या नहीं.' फैसले में कहा गया है कि यदि न्यायालय दोष को स्थगित करता है तो उसे हर हाल में उन कारणों को दर्ज करना चाहिए कि वह आखिर क्यों इस तरह की राहत दे रहा है.

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