अमेरिकी की रेटिंग घटने के साथ ही सरकारों तथा रेटिंग एजेंसियों के बीच नया विवाद शुरू हो गया है और ऐसी रेटिंग एजेंसियों की साख और सत्यनिष्ठा पर ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं.
भारत तो करीब दो साल से ही इन एजेंसियों द्वारा रेटिंग घटाने में इस्तेमाल किए जाने वाले तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है लेकिन अब यह विरोध और मुखर हो गया है. अमेरिका तथा कई यूरोपीय देशों ने इस मामले में विरोध जताया है.
अमेरिका ने जहां इस मामले में एसएंडपी पर हमला बोला है वहीं प्रमुख निवेशक वारेन बफे ने कहा है कि रेटिंग में इस तरह की कमी का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा अगर वे एस एण्ड पी की जगह होते तो अमेरिका की वित्तीय साख को 3ए की जगह 4ए की कोटि में रखते.
वैसे यह भी रोचक है कि बफे की मूडीज में बहुलांश हिस्सेदारी है जो एसएंडपी की प्रतिद्वंद्वी रेटिंग एजेंसी है और जिसने अमेरिकी की रेटिंग एएए कायम रखी है.
अमेरिका ने कहा है कि रेटिंग एजेंसी ने गलत विश्लेषण कर अपनी विश्वसनीयता तथा साख को खतरे में डाल दिया है.
उल्लेखनीय है कि रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग ‘एएए’ से कम कर एएप्लस कर दी है. इससे ऐसी आशंका है कि इससे निवेशकों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था के प्रति विश्वास कम होगा. ‘एएए’ रेटिंग सबसे उंची रेटिंग है और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को यह रेटिंग तब से मिली हुई थी जब से एजेंसियों ने देश के सरकारी कर्ज को रेटिंग देनी शुरू की थी.
रेटिंग कम किये जाने के संबंध में अमेरिकी वित्त विभाग ने अपनी वेबसाइट पर जारी विस्तृत बयान में एस एंड पी की विश्वसनीयता तथा साख पर सवाल उठाये हैं तथा इसे गुमराह करने वाला बताया है. फ्रांस ने अमेरिका के रख का समर्थन किया है.
यूरोपीय यूनियन ने मार्च में यूनान की रेटिंग घटाने के एसएंडपी के फैसले पर भी सवाल उठाया. बहरहाल, रेटिंग एजेंसी ने मीडिया के साथ बातचीत में अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि अमेरिकी प्रशासन की आलोचना उम्मीद के अनुरूप है. किसी भी देश या कंपनी की रेटिंग कम होने पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया जतायी जाती है.
उल्लेखनीय है कि भारत में वित्त मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) ने 2009 में ही एसएंडपी द्वारा भारत की दीर्घकालीन क्रेडिट रेटिंग परिदृश्य में कमी पर सवालिया निशान लगाया था.