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मायावती की प्राथमिकता कभी नहीं रहे दलित: पुनिया

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष कांग्रेस सांसद पी. एल. पुनिया ने गुरुवार को कहा कि खुद को दलितों का मसीहा बताने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के लिये दलितों का कल्याण न तो कभी प्राथमिकता था और न ही है.

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष कांग्रेस सांसद पी. एल. पुनिया ने गुरुवार को कहा कि खुद को दलितों का मसीहा बताने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के लिये दलितों का कल्याण न तो कभी प्राथमिकता था और न ही है.

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कभी मायावती के बेहद करीबी नौकरशाह रहे पुनिया ने कहा ‘मायावती दरअसल राजनीतिक शख्स हैं, सामाजिक नहीं. दलित उनकी प्राथमिकता कभी नहीं रही और न ही आज हैं.’ उन्होंने दावा किया ‘जब मैं मुख्यमंत्री मायावती का प्रमुख सचिव था तब भी उन्होंने मुझसे दलितों के कल्याण के वास्ते योजना बनाने के लिये एक बार भी नहीं कहा. उन्होंने जनता से मुलाकात के परम्परागत कार्यक्रम बंद करवाए. यह जनता के प्रति उनके उपेक्षात्मक रवैये को दर्शाता है.’

पुनिया ने कहा कि देश में दलित उत्पीड़न की सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में हो रही हैं और इस राज्य में ऐसी वारदात की संख्या में अन्य सूबों के मुकाबले सबसे तेजी से वृद्धि भी हो रही है. उन्होंने कहा कि दलितों के लिये बनाई गई योजनाओं का उत्तर प्रदेश में क्रियान्वयन नहीं हो रहा है, क्योंकि सरकार ऐसा करना ही नहीं चाहती. {mospagebreak}

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पुनिया ने कहा कि प्रावधान के मुताबिक कुल बजट का 16 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति और आठ फीसद भाग अनुसूचित जनजाति के लिये आवंटित होना चाहिये लेकिन इस पर पूरी तरह अमल नहीं किया जाता और जो धन मिलता है उसे इन पिछड़े वर्गो के कल्याण के लिये इस्तेमाल भी नहीं किया जाता.

पुनिया ने एक सवाल के जवाब में कहा ‘दलितों के कल्याण के लिये आवंटित धन से मेडिकल कालेज और सड़कें बनाई जा रही हैं. यह गलत है. कांग्रेस शासित राज्यों में ही नहीं बल्कि हर सूबे में ऐसा हो रहा है.’ उन्होंने कहा ‘आयोग अब दलितों के लिये निर्धारित आवंटन सुनिश्चित करवाएगा और उस धन से सिर्फ दलितों के लिये ही योजनाएं तैयार कराई जाएंगी. मैंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी इस बारे में बात की है.’

पुनिया ने कहा कि स्पेशल कम्पोनेंट योजना तथा बजट में दलितों के लिये 24 प्रतिशत का पृथक आवंटन सुनिश्चित करवाना उनकी प्राथमिकता है ताकि दलितों के उत्थान के लिये आवंटित धनराशि का वास्तविक लाभ इस निचले तबके तक पहुंच सके. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार अनुसूचित जाति आयोग के साथ सहयोग कर रही है और भविष्य में चीजें बेहतर होने की उम्मीद है. {mospagebreak}

उत्तर प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ने के दावों को राज्य सरकार द्वारा गलत बताए जाने के बारे में पूछे गए सवाल पर पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा ‘प्रदेश सरकार झूठ बोल रही है. मैंने तथ्यों पर आधारित बात की है. दलित उत्पीड़न सम्बन्धी आंकड़े मेरे दावों की गवाही देते हैं.’

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उन्होंने माना कि दलितों में जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत पैदा हुई है, जिस कारण दलित उत्पीड़न की वारदात में इजाफा हुआ, लेकिन यह भी सच है कि दलित उत्पीड़न की अधिकांश रिपोर्ट तो दर्ज ही नहीं होतीं. पुनिया ने कहा, ‘सचाई यह है कि दलितों पर अत्याचार के सिर्फ 10 प्रतिशत मामले ही पुलिस रिपोर्ट के तौर पर दर्ज किये जाते हैं. उनमें से भी आधे जबरन सुलह-समझौता कराकर निपटा दिये जाते हैं. अगर दलित उत्पीड़न की हर रिपोर्ट दर्ज हो तो तस्वीर और भी बदनुमा होगी.’

उन्होंने कहा कि आयोग का यह कर्तव्य है कि वह दलितों के लिये योजनाओं के निर्माण में अपनी राय दे और अन्य जरूरी मदद भी करे. पूर्व आईएएस अधिकारी ने एक अन्य सवाल पर कहा कि सजा देना आयोग का काम नहीं है. वह सिर्फ उत्पीड़न की वारदात की जांच करके कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है. {mospagebreak}

हालांकि आयोग अब यह प्रयास करेगा कि दलित उत्पीड़न के मामलों की जांच 30 दिन के अंदर पूरी होकर आरोपपत्र दाखिल हो. पुनिया ने कहा कि दलितों के लिये गठित अदालतों में दलितों से जुड़े मामलों का प्राथमिकता से निस्तारण करने को भी तरजीह दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि दलितों के लिये गठित अदालतों में अक्सर दलितों के ही मामले लम्बित रह जाते हैं लिहाजा हम चाहते हैं कि इन न्यायालयों में सिर्फ दलितों के मामलों की ही सुनवाई हो. उन्होंने कहा कि इस वक्त देश में आयोग के 12 कार्यालय संचालित किये जा रहे हैं. जल्द ही जयपुर, भोपाल और भुवनेश्वर समेत आठ स्थानों पर आयोग के दफ्तर खोले जाएंगे.

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