बंबई उच्च न्यायालय ने एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त संजीव दयाल को आड़े हाथ लिया जब उनके कार्यकाल में बलात्कार के एक मामले की जांच करने और प्राथमिकी दर्ज करने के बजाय पुलिस ने कथित तौर पर ‘समझौते’ की कोशिश की.
न्यायमूर्ति बीएच मर्लापल्ले और न्यमूर्ति यूडी साल्वी की खंडपीठ सामाजिक कार्यकर्ता अमिनुद्दीन सईद की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एक सहायक पुलिस आयुक्त पर कार्रवाई करने की मांग की गई जिसने बलात्कार के एक मामले को ‘सलटाने’ के बदले कथित तौर पर रूपये मांगे.
अदालत के निर्देश के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त दयाल ने हलफनामे में कहा कि भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो ने उन्हें सूचित किया कि अधिकारी खडे ने खुद के लिए कोई घूस नहीं मांगे बल्कि वह पीड़ित की ओर से वकालत कर रहे थे.
पीठ ने कहा कि यह बलात्कार का मामला था और पुलिस का काम जांच और आरोपी को गिरफ्तार करने का था ना कि पीड़ित की ओर से समझौता करने का.
उन्होंने कहा, ‘मुआवजे का सवाल ही कहां पैदा होता? ऐसा हलफनामा कैसे दायर किया जा सकता है? छोटे स्तर के अधिकार से हम इसकी उम्मीद कर सकते हैं लेकिन पुलिस आयुक्त एक जिम्मेदार अधिकारी होता है.’