कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू करने का रास्ता उस समय साफ हो गया जब राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी द्वारा गठित एक न्यायिक समिति ने उन्हें कोष की ‘बड़ी राशि’ की अनियमितता करने और इस संबंध में गलत बयान देने का दोषी पाया.
संसद के दोनों सदनों में पेश की गयी इस तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि समिति का यह मत है कि न्यायमूर्ति सेन संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के उपबंध ब से लेकर अनुच्छेद 217 (1) के तहत कदाचार के दोषी हैं.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सेन पर आरोप हैं कि उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से बतौर रिसीवर नियुक्त होने के बाद उन्हें मिली कोष की बड़ी राशि के साथ अनियमितता की और इस संबंध में गलत तथ्य पेश किये. उन पर लगे ये आरोप यथावत साबित होते हैं.
संविधान के जिस अनुच्छेद के तहत समिति ने अपना मत रखा है, वह कहता है कि कदाचार करने की बात साबित हुए बिना हाईकोर्ट के किसी भी न्यायाधीश को उनके पद से नहीं हटाया जा सकता.
समिति के सेन को दोषी पाये जाने के बाद संसद द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है. सेन को सामानों के एक खरीददार से 33,22,800 रुपये की राशि लेने, उसे बैंक के बचत खाते में रखने और हाईकोर्ट को इस संबंध में गलत तथ्य बताने का दोषी पाया गया है.
यह देश के इतिहास में ऐसा दूसरा मौका है जब संसद ने किसी न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू की है. इससे पहले न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के मामले में ऐसा हुआ था.