क्या दिल्ली में कभी बर्फबारी देखी है? क्या मुंबई वालों को स्वेटर या गर्म कपड़ों में घूमते देखा है? ये दोनों ही नजारे बेहद दुर्लभ हैं. लेकिन, मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो इस बार दिसंबर में ये दुर्लभ नजारा देखने को मिल सकता है. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार दिसंबर और जनवरी में समूचे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ेगी. यही नहीं अपेक्षाकृत गर्म रहने वाले मुंबई का तापमान भी गिर जाएगा.
सोचिये कैसी होगी वो रात जब दिल्ली के इंडिया गेट और मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया पर लोग एक साथ आग सेकते नजर आएंगे. मौसम के दो विपरीत मिजाज वाला शहर इस बार दिसंबर-जनवरी में एक-सा नजर आ सकता है. अब तक शायद ही कभी मुंबई वालों को स्वेटर कोट पहनने की जरुरत होती है. लेकिन मौसम विभाग की मानें तो इस बार ऐसा ही होने वाला है.
नवंबर का दूसरा हफ्ता खत्म होने से पहले दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में बारिश ने मौसम के बदलते मिजाज का ट्रेलर दिखा दिया है. बारिश के साथ ही उत्तर भारत के तमाम शहरों में ठंड की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. लेकिन, मौसम विभाग की मानें तो खतरा यह नहीं कि ठंड जल्दी गिर गई है बल्कि खतरा इस बात से है कि अगले कुछ दिनों में मौसम का मिज़ाज तेज़ी से ठंडा होने वाला है.{mospagebreak}राजधानी दिल्ली में वैसे भी सर्दी खूब कंपकपाती है, लेकिन इस बार ठंड पिछले सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा पड़ने वाली है. यकीन मानिए कि गर्मी और मानसून की तरह ही दिल्ली के लोग इस बार की सर्दी भी याद रखेंगे. वैज्ञानिकों का दावा है कि सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरे उत्तर भारत में मौसम का मिज़ाज बिगड़ने वाला है. अगले कुछ दिनों में हवाएं ठिठुरन लेकर आने वाली है और जब पारा लुढ़कना शुरू होगा तो इतनी तेजी से नीचे जाएगा कि पूरा उत्तर भारत थर्रा उठेगा.
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार ठंड पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ सकती है. इस बार उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में पारा शून्य से नीचे जा सकता है. जिन इलाकों में कड़कड़ाती ठंड में पारा तीन से चार डिग्री के आसपास होता था उन इलाकों में भी तापामन शून्य से नीचे लुढ़क सकता है. वहीं जिन इलाकों ने अब तक बर्फबारी नहीं देखी वे इलाके भी बर्फीली फुहार देख सकते हैं.
लेकिन, सवाल उठता है कि दिसंबर और जनवरी में भयंकर सर्दी के पीछे आखिर वजह क्या है? इसकी एक बड़ी वजह है प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में ला-नीना और सुपर ला-नीना का मजबूत होना. {mospagebreak}'अलनीनो' के उलट 'ला नीना' ऐसी मौसमी परिस्थिति है, जो प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग से समुद्र के सतह पर पानी के तापमान कम होने की वजह से बनती है. अल-नीनो प्रभाव से मौसम जहां गर्म होता है, वहीं ला-लीना मौसम को ठंडा कर देता है. ला-नीना के असर से मौसम सामान्य से तीन से पांच डिग्री तक गिर सकता है. ला-नीना की वजह से जहां ठंड वाले इलाकों में और ठंड बढ़ेगी वहीं जो इलाके गर्म हैं, वहां का तापमान भी नाटकीय रूप से गिर जाएगा.
सम विज्ञानियों के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर पूर्व ब्राजील,भारत समेत दक्षिण एशिया पर इसका खासा असर होगा. लेकिन, ला-नीना अगर बच भी जाएं तो सुपर ला-नीना से कैसे बचेंगे. मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो एक सुपर ला नीना विकसित हो रहा है. सुपर ला-नीना धरती का तापमान तेजी से गिर सकता है. इसके असर से ठंड इतनी तेज होगी कि हड्डियां कांप जाएंगी.
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक 1955-56 में सुपर ला नीना की वजह से दुनिया में भयंकर ठंड पड़ी थी. तब औसत तापमान 1 डिग्री फारेनहाइट तक गिर गया था. 2007 में भी ऐसा ही हुआ था.
अब तीन साल बाद फिर एक बार ला-नीना और सुपर ला-नीना सिर उठा रहा है. चिंता की बात तो यह है कि टोक्यो के शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका असर 2012 के शुरुआती महीनों तक रहेगा. यानी इस बार की सर्दी अगर आप निकाले भी लेंगे तो अगली सर्दी के लिए फिर तैयार रहना होगा.