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हादसों के मुहाने पर खड़ी है राजधानी दिल्ली

दिल्ली का ललिता पार्क हादसा राजधानी में बने गैरकानूनी निर्माणों का जीता-जागता उदाहरण है. नियमों को ताक कर पर रखकर बनाई गई ये इमारतें कभी भी बड़े खतरे को न्योता दे सकती हैं. खतरा एक दो जगहों पर नहीं है, दिल्ली में सैकड़ों ऐसी कॉलनियां हैं जो ऐसे हादसों के मुहाने पर खड़ी है.

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दिल्‍ली में हैं खतरनाक इलाके
दिल्‍ली में हैं खतरनाक इलाके

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दिल्ली का ललिता पार्क हादसा राजधानी में बने गैरकानूनी निर्माणों का जीता-जागता उदाहरण है. नियमों को ताक कर पर रखकर बनाई गई ये इमारतें कभी भी बड़े खतरे को न्योता दे सकती हैं. खतरा एक दो जगहों पर नहीं है, दिल्ली में सैकड़ों ऐसी कॉलनियां हैं जो ऐसे हादसों के मुहाने पर खड़ी है.

राजधानी में ऐसी गलियां भी खूब पनपी हैं जिनमें ऊंची कातिल इमारतों की भरमार है. हालात ऐसे हैं कि इन गलियों में किसी भी वक्त लक्ष्मीनगर जैसे हादसे दुहराए जा सकते हैं.

दिल्ली के लगभग हर इलाके में ऐसी कॉलनियां जरूर है जहां संकरी गलियों का जाल फैला है. ऐसी गलियां जिनमें एक दूसरे से चिपकर आसमान छूती इमारतें बनी हैं. आलम यह हैं की सूरज की रौशनी भी ठीक से धरती को नहीं छू पातीं.

पुरानी दिल्ली की गलियां भी कम खतरनाक नहीं. हर वक्त ये किसी जानलेवा खतरे का एहसास दिलाती हैं. यहां सौ साल से भी पुरानी इमारतों कि भरमार है जिन्हें तुरंत मरम्मत की जरूरत है. लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं.

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पुरानी दिल्ली में मकान गिरने के हादसे भी हुए हैं. कभी मरम्मत के वक्त हादसा हुआ तो कभी मरम्मत न हो पाने की वजह से. पुरानी इमारतें तो खतरनाक हैं हीं, नई इमारतों को बनाते वक्त भी नियम कानून को दरकिनार किया गया है.

दक्षिणी दिल्ली में भी हादसों का इंतजार करती कई गलियां नजर आ जाएंगी. चाहे पॉश मालवीय नगर से सटा खिड़की एक्सटेंशन हो या देवली गांव. हर जगह संकरी गलियों में हजारों परिवार हादसे के मुहाने पर जिंदगी जी रहे हैं. गलियां छोटी होती हैं लेकिन इमारतों की ऊंचाई दिन ब दिन बढ़ती चली जाती है, वह भी गैरकानूनी तरीके से.{mospagebreak}

कुछ इलाकों में नालों की व्यवस्था भी इमारतों के कमजोर होने की बड़ी वजह बनते जा रहे हैं. दिल्ली के ब्रह्मपुरी इलाके में नालों का बहता पानी इमारतों की नींव खोखली करता रहता है. ये इलाका भी कई बार इमारतों के ढहने का खामियाजा भुगत चुका है.

आकड़ों की मानें तो दिल्ली की 3 हजार कॉलोनियों में से 1639 कॉलनियां गैरकानूनी हैं. जिनमें करीब 25 लाख आबादी रहती है. दिल्ली में 32 लाख से ज्यादा इमारतें हैं. नगर निगम की मानें तो इनमें से 70 फीसदी इमारतों में कुछ न कुछ गैरकानूनी जरूर है.

उप राज्यपाल ने कहा है कि ऐसी कॉलनियों को चिन्हित किया जाए. बड़ा सवाल यह है कि कोई कदम उठाने के पहले क्यों लक्ष्मीनगर जैसे हादसें का इंतजार किया जाता है? लोगों को छत देने वाली इन इमारतों को इस तरह मौत के मलबे में बदल जाने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? आखिर कब तक कुछ लोगों की गलतियों की वजह से कीमती जिंदगियों को हम मौत के मुंह में समाते देखेंगे?

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