दीपावली से दो दिन पहले पड़ने वाला धन तेरस का त्योहार सिर्फ महालक्ष्मी से सुख समृद्धि और धन वर्षा की कामना करने का दिन नहीं है बल्कि यह देव वैद्य धनवंतरि और लक्ष्मी जी के खजांची माने जाने वाले कुबेर को भी याद करने का दिन है.
दिवाली से पहले कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाई जाने वाली ‘धन तेरस’ को ‘धनवंतरि त्रयोदशी’ भी कहा जाता है और इस दिन सोने चांदी की कोई चीज या नए बर्तन खरीदने को अत्यंत शुभ माना जाता है.
भारतीय दर्शन से जुड़े आचार्य वीके शास्त्री का कहना है कि धन तेरस के दिन लोग आम तौर पर सोने चांदी की वस्तु या नए बर्तन खरीदकर और लक्ष्मी जी की पूजा करके ही इतिश्री समझ लेते हैं लेकिन देव वैद्य धनवंतरि और लक्ष्मी जी के खजांची कुबेर को भूल जाते हैं.
उनका मानना है कि इस दिन लक्ष्मी जी के साथ इन दोनों की भी पूजा की जानी चाहिए क्योंकि कुबेर जहां धन का जोड़-घटाव रखने वाले हैं वहीं धनवंतरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य हैं.
शास्त्री के अनुसार व्यक्ति के पास धन संपदा होने के साथ ही निरोगी काया होना भी सबसे जरूरी है. यदि धनवान व्यक्ति रोगी होगा तो उसका सारा धन बीमारियों पर खर्च हो जाएगा. इसलिए तन मन को स्वस्थ रखने के लिए धनतेरस के दिन धनवंतरि से कामना की जानी चाहिए.
आचार्य गोविन्द वत्स का कहना है कि धनतेरस पर कुबेर के बिना लक्ष्मी जी की पूजा अधूरी रहती है. कुबेर ही सारा हिसाब किताब रखते हैं. उन्होंने कहा कि धन संपदा के लिए कुबेर के महत्व के चलते ही भारतीय रिजर्व बैंक में लक्ष्मी जी के साथ कुबेर की प्रतिमा लगाई गई है.
धनतेरस के दिन सिर्फ नयी वस्तुओं की खरीदारी ही नहीं की जाती बल्कि दीप भी जलाए जाते हैं. इसके पीछे कई तरह की किंवदंतियां और जनश्रुतियां हैं.
इस दिन प्रवेश द्वार पर जलाए जाने वाले दीपकों के बारे में मान्यता है कि इनकी वजह से घर में अकाल मौत का भय खत्म हो जाता है और परिवार की लौ हमेशा जलती रहती है.
वत्स का कहना है कि धन तेरस के दिन आर्युवेदिक औषधियों के जनक धनवंतरि को नहीं भूलना चाहिए . वेद पुराणों में धनवंतरि को ब्रह्मांड का पहला सर्जन बताया गया है.