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'ऑनर कीलिंग' पर रोक के लिए प्रस्तावित कानून पर मतभेद

इज्जत के नाम पर हत्या (ऑनरकीलिंग) को ‘स्पष्ट अपराध’ घोषित करने के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन के केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर विधि विशेषज्ञों की राय अलग अलग है. कुछ विशेषज्ञों ने सरकार के प्रस्ताव का पक्ष लिया है तो कुछ का कहना है कि पृथक कानून की जरूरत नहीं है.

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इज्जत के नाम पर हत्या (ऑनरकीलिंग) को ‘स्पष्ट अपराध’ घोषित करने के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन के केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर विधि विशेषज्ञों की राय अलग अलग है. कुछ विशेषज्ञों ने सरकार के प्रस्ताव का पक्ष लिया है तो कुछ का कहना है कि पृथक कानून की जरूरत नहीं है.

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विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने इस माह के शुरू में कहा था कि उनके मंत्रालय ने भारतीय दंड संहिता में संशोधन के गृह मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है. उन्होंने यह भी कहा था कि इस बारे में एक विधेयक को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा.

कुछ अग्रणी विधि विशेषज्ञों ने इस प्रस्ताव का यह कहते हुए स्वागत किया है कि इससे समुदाय, जाति या परिवार के सम्मान के नाम पर होने वाली इस सामाजिक बुराई की ओर सभी लोगों का ध्यान जाएगा. उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में इज्जत के नाम पर हत्या का सिलसिला जारी है लेकिन कई मामलों की खबर नहीं मिल पाती.

प्रस्तावित संशोधन का स्वागत करते हुए उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता पी एन लेखी ने कहा कि ग़ैरत के नाम पर हत्या जैसे अपराध सामाजिक अपराध हैं और इनकी रोकथाम के लिए कड़े कानूनों की जरूरत है.

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लेखी ने कहा कि भारतीय दंड संहिता में संशोधन के साथ साथ लोगों को शिक्षित करना भी जरूरी है क्योंकि इसकी रोकथाम के लिए केवल कानून ही पर्याप्त नहीं है. लेखी के विचारों से सहमति जताते हुए उच्चतम न्यायालय के एक अन्य अधिवक्ता शांति भूषण ने बताया कि इसे अलग से अपराध का दर्जा देने पर इसे रोकने में ज्यादा कारगर तरीके से मदद मिलेगी. बहरहाल, कुछ विधि विशेषज्ञों की राय है कि अलग कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है और वर्तमान कानूनों को प्रभावी तरीके से कार्यान्वित करने पर इस समस्या से निपटा जा सकता है.{mospagebreak}उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त जज अरूण कुमार ने बताया कि भारतीय दंड संहिता में परिवर्तन से वर्तमान प्रवृत्ति पर कोई असर नहीं होगा. उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक बनाना और वर्तमान कानूनों का प्रभावी तथा कड़ाई से कार्यान्वयन ज्यादा जरूरी है. उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा कहते हैं कि कानून बनाने का मतलब केवल हमारी प्रणाली की खामियों को छिपाना होगा. इससे हल नहीं निकलेगा.

उच्चतम न्यायालय की एक अन्य अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि कानून में संशोधन कर, उत्तर भारत के कई हिस्सों में चल रही इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकती. प्रस्तावित कानून के अनुसार, ग़ैरत के नाम पर हत्या का फरमान जारी करने वाले, ग्राम पंचायतों के सभी नेताओं को षड्यंत्रकारी समझा जाएगा. इस बारे में सभी विधि विशेषज्ञ एक जैसी राय जताते हैं. उन्हें लगता है कि वर्तमान कानून फरमान जारी करने वाले पंचायत सदस्यों को षड्यंत्रकारियों के तौर पर दंडित करने के लिए पर्याप्त हैं.

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लेखी कहते हैं कि पंचायतों में यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और वर्तमान कानून के तहत, फरमान जारी करने वालों के खिलाफ षड्यंत्रकारियों के तौर पर मुकदमा चलाया जा सकता है. लूथरा कहते हैं कि अगर पुलिस हत्या के लिए फरमान जारी करने वाली पंचायत के खिलाफ पर्याप्त सबूत मुहैया कराती है तो आपराधिक षड्यंत्र के वर्तमान कानून (आईपीसी की धारा 120 बी) और साझा इरादे से हत्या करना (आईपीसी की धारा 34 और 36) षड्यंत्रकारियों के तौर पर पंचायत सदस्यों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं.

शांति भूषण प्रस्ताव देते हैं कि इस सामाजिक बुराई पर पूरी तरह रोक के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए. उनकी राय है कि इस मुद्दे को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए तथा बच्चों को कम उम्र से ही इसके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए.

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