प्रकाश पर्व दीपावली का वर्णन दुनिया के विभिन्न धर्मों में देखने को मिलता है. इस त्योहार को मनाने के पीछे अलग-अलग कारण बताए जाते हैं लेकिन सभी मतों में अंतिम निष्कर्ष के रूप में इसे अंधकार पर प्रकाश की जीत का उत्सव बताया गया है.
दीपावली के बारे में हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि त्रेता युग में इस दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास और रावण का वध करने के बाद अयोध्या लौटे थे. इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने समूची नगरी को दीपों के प्रकाश से जगमग कर जश्न मनाया था और इस तरह तभी से दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा.
श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है कि बौद्ध और जैन धर्म में भी दीपावली का वर्णन है. बौद्धों के प्राकृत जातक में दिवाली जैसे त्योहार का जिक्र है जिसका आयोजन कार्तिक महीने में किया जाता है.
जैन लोग इसे महावीर स्वामी के निर्वाण से जोड़ते हैं. कहा जाता है कि करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात में पावा नगरी में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ.
महावीर के निर्वाण की खबर सुनते ही सुर असुर मनुष्य नाग गंधर्व आदि बड़ी संख्या में एकत्र हुए. रात अंधेरी थी इसलिए देवों ने दीपकों से प्रकाश कर उत्सव मनाया और उसी दिन कार्तिक अमावस्या को प्रात:काल उनके शिष्य इंद्रमूर्ति गौतम को ज्ञान लक्ष्मी की प्राप्ति हुई. तभी से इस दिन दीपावली मनाई जाने लगी. भारतीय उत्सवों के बारे में विशेष जानकारी रखने वाले के. के. शास्त्री के अनुसार दीपावली के बारे में एक मान्यता यह भी है कि जब राजा बलि ने देवताओं के साथ लक्ष्मी जी को भी बंधक बना लिया तब भगवान विष्णु ने वामन रूप में इसी दिन उन्हें मुक्त कराया था.
पुराणों में कहा गया है कि दीपावली लक्ष्मी के उचित उपार्जन और उचित उपयोग का संदेश लेकर आती है. दीपों का पर्व दीपावली आज अत्याधुानिक रूप ले चुका है. देश से बाहर इसकी धूम विदेशों में भी मची है.