बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के भटहा गांव निवासी महावीर सहनी एक नाव का निर्माण कराने में लगे हैं. वह विवाह के लग्न के पूर्व इस नाव को पूरी तरह बनवा लेना चाहते हैं, क्योंकि अपनी पुत्री का विवाह जहां उन्होंने तय किया है वहां से दहेज में कुछ और नहीं बल्कि एक अदद नाव की मांग की गई है.
देश और दुनिया के लिए भले ही यह आश्चर्य का विषय हो और मामला अनोखा लगे लेकिन बिहार के कोसी क्षेत्र में बसे ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां लोग अपनी बेटियों का विवाह तय करने से पहले ही नाव के लिए आवश्यक तैयारी कर लेते हैं. दरअसल, उन्हें मालूम होता है कि लड़के वाले नाव की मांग अवश्य करेंगे. यह स्थिति लड़कों वालों के लिए भी फिट बैठती है. इस क्षेत्र में लड़के वाले भी दहेज में एक नाव की मांग अवश्य करते हैं.
पूर्वी चम्पारण जिले के मुख्यालय मोतिहारी से कुछ ही दूरी पर स्थित है भटहा गांव, जहां निशादों की दो हजार आबादी निवास करती है. यह बस्ती तीन तरफ से टेढ़ी-मेढ़ी धनौती नदी से घिरी हुई है. गांव में शादी-ब्याह का मौका हो या इलाज की जल्दी, सिर्फ नाव ही है जो पार लगाने का सबसे बड़ा सहारा है. घर से निकले नहीं कि नाव की सवारी प्रारंभ हो जाती है.
गांव के ही सुभाष कुमार चौधरी बताते हैं कि गांव में 300 से ज्यादा लोग अपनी बेटियों के विवाह में नाव दे चुके हैं या लड़कों के विवाह के लिए दहेज में नाव मांग चुके हैं. आपको यह जानकर कुछ आश्चर्य हो सकता है कि कोसी क्षेत्र में कई ऐसे प्रभावित गांव हैं जहां नाव से ही लड़के अपनी बारात लड़कियों के द्वार तक लाते हैं और विवाह के उपरांत अपने जीवनसाथी को इसी नाव पर बिठाकर अपने घर ले जाते हैं.
ग्रामीण कहते हैं बाढ़ से महीनों प्रभावित रहने वाले ऐसे गांवों के लोगों के लिए दूसरा कोई चारा नहीं. सहरसा जिले में कई गांव ऐसे हैं जो कोसी के बीच में पड़ते हैं या उसके बिल्कुल पास हैं. इस इलाके में कोसी प्रतिवर्ष तबाही मचाती है. इस कारण यहां के लड़के पक्ष के लोग अब फ्रिज, टीवी और वाहनों के बजाय नाव की मांग करते हैं.
इन नावों का उपयोग जहां वे अपने लिए तो करते ही हैं उनका व्यवसायिक उपयोग भी करते हैं. इन नावों को वे किराये पर दे देते हैं, जिससे उनकी अच्छी आमदनी भी हो जाती है.
सहरसा निवासी सुशील शर्मा बताते हैं कि वह अपनी बेटी के विवाह के लिए भी नाव का निर्माण करा रहे हैं. वह कहते हैं कि आप पुत्री का विवाह कहीं कर लें परंतु उसे मायके लौटने के लिए तो इन नावों का ही सहारा लेना पड़ेगा. वह बताते हैं कि नाव अब यहां के लोगों के लिए प्रतिष्ठा की विषय वस्तु बन गई है. एक नाव का निर्माण कराने में 10 हजार से लेकर दो लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं. जैसा नाव आप बनवायेंगे वैसा खर्च आपको करना पड़ेगा.
वह बड़े स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि महंगी नाव देखकर उसके मालिक का हैसियत का अंदाजा लगाया जाता है. यही कारण है कि लोग 'स्टेटस सिंबल' के लिए महंगे नाव रखने लगे हैं. लड़की का विवाह तय होते ही नाव निर्माताओं को नाव बनाने के ऑर्डर दे दिए जाते हैं क्योंकि एक नाव बनाने में एक से दो महीने का वक्त लग जाता है.
बाढ़ विशेषज्ञ और सुपौल जिले के कर्णपुर निवासी भगवान पाठक कहते हैं कि दहेज में नाव देने और मांगने का यह नया प्रचलन प्रारम्भ हुआ है, जो काफी प्रचलित है. वह कहते हैं कि ऐसा प्रचलन बिहार के करीब 13 से 14 बाढ़ प्रभावित जिलों में हैं, जहां का लड़का कितने भी ऊंचे पद पर हो परंतु उसके अभिभावक उसके दहेज में नाव की मांग जरूर करेंगे.