निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर 53 सीटों को चुनाव खर्च की दृष्टि से संवेनशील घोषित किया है.
आयोग की एक उच्च स्तरीय टीम ने रविवार से राज्य का दौरा भी शुरू कर दिया है ताकि चुनाव के दौरान अवैध कोष के इस्तेमाल पर रोक लगाने को लेकर इस बारे में आयकर विभाग और अन्य प्रवर्तन विभागों की तैयारियों के लिए खाका तैयार किया जा सके.
निर्वाचन आयोग की टीम के जांच महानिदेशक (आयकर) और उनकी टीम से लखनऊ में मुलाकात करने की भी उम्मीद जताई जा रही है. चुनाव में खर्च के मामले में संवेदनशील विधानसभा क्षेत्रों में आयकर विभाग के अधिकारियों की तैनाती की समीक्षा को लेकर यह कदम उठाया जा रहा है.
आयकर विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘निर्वाचन आयोग की टीम राज्य में चुनाव तैयारियों का विश्लेषण करने और धन बल के इस्तेमाल पर रोक लगाने को लेकर किये जा रहे उपायों की जांच करने के लिए प्रदेश में पहुंच रही है.’
अधिकारी ने बताया, ‘उत्तर प्रदेश में कुल 53 विधानसभा क्षेत्रों को खर्च की दृष्टि से संवेदनशील घोषित किया गया है. वर्ष 2012 में जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उनमें उत्तर प्रदेश में इस तरह के सीटों की संख्या सर्वाधिक है.’
जिन सीटों की पहचान खर्च की दृष्टि से संवेदनशील रूप में की गई है, उनमें लखनउ, मथुरा, आगरा, गौतम बुद्ध नगर, मैनपुरी, बरेली, राय बरेली, चित्रकूट, गोंडा, आजमगढ़ और गाजीपुर शामिल हैं.
निर्वाचन आयोग के नियमों के मुताबिक पिछले चुनाव के इतिहास, विधानसभा क्षेत्र के ‘प्रोफाइल’ और राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्यालय द्वारा इस तरह के सीटों की पहचान के आधार पर खर्च के दृष्टिकोण से संवेनशील सीट की पहचान की जाती है.
इस तरह के विधानसभा क्षेत्रों के लिए निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और हिमाचल प्रदेश (जहां अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं) से कहा है कि वहां दो सहायक खर्च पर्यवेक्षक, दो उड़न दस्ता पर्यवेक्षक और सांख्यिकी निगरानी टीम तथा वीडियो निगरानी टीम होगी.
निर्वाचन आयोग ने उम्मीदवारों द्वारा किये जाने वाले खर्च और उन्हें प्राप्त होने वाले कोष पर सख्त रूख अख्तियार करते हुए हाल ही में उत्तर प्रदेश के विधायक उमलेश यादव को अयोग्य ठहराया था.
हिन्दी के दो समाचार पत्रों में छपी खबर में चुनाव खर्च के बारे में गलत जानकारी देने को लेकर यह कार्रवाई की गई थी. पेड न्यूज के खिलाफ निर्वाचन आयोग की कार्रवाई का यह पहला मामला था.
आयोग ने वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले एलिट वित्तीय खुफिया यूनिट (एफआईयू) के रिकार्ड को खंगाला है, ताकि इन राज्यों में चुनाव में भाग ले रहे उम्मीदवारों की संपत्तियों और कजरें के बारे में मौजूद कोई सूचना प्राप्त हो सके.
एफआईयू को नियमित तौर पर बैंकों, बीमा कंपनियों से संदिग्ध ट्रांजिक्शन रिपोर्ट और नकद लेनदेन रिपोर्ट मिलते रहते हैं. धन शोधन रोधी कानून के नियमों के तहत ऐसा होता है.