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ओबामा के भारत दौरे से पहले संपादकों की राय

अमेरिकी राष्‍ट्रपति ओबामा के दौरे को लेकर अपने देश में हलचल तेज हो गई है. देश चाहता है कि अमेरिका भारत का सच्‍चा रणनीतिक भागीदार साबित हो, पर कई कारणों की यह आस धूमिल नजर आ रही है. इसके पीछे वजह यह है कि ओबामा जैसा बोलते हैं, उस तरीके से काम को अंजाम नहीं दे पाते. बहरहाल, जानिए इस मुद्दे पर क्‍या है संपादकों की राय...

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अमेरिकी राष्‍ट्रपति ओबामा के दौरे को लेकर अपने देश में हलचल तेज हो गई है. देश चाहता है कि अमेरिका भारत का सच्‍चा रणनीतिक भागीदार साबित हो, पर कई कारणों की यह आस धूमिल नजर आ रही है. इसके पीछे वजह यह है कि ओबामा जैसा बोलते हैं, उस तरीके से काम को अंजाम नहीं दे पाते. मुमकिन है, इसके पीछे अमेरिका की कुछ विवशताएं हों, पर ओबामा का दौरा पूरा हुए बिना आशाओं का दामन छोड़ा भी नहीं जा सकता. बहरहाल, जानिए इस मुद्दे पर क्‍या है संपादकों की राय...

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प्रभु चावला
जो बात अमेरिका के लोगों को बहुत पहले ही पता चल चुकी है, वह अब भारतीयों को भी मालूम हो जाएगी. वह यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जितना अच्छा भाषण करते हैं, उतनी कुशलता से अपने काम को अंजाम नहीं देते हैं. पिछले दिनों उन्होंने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में स्वीकार किया कि इसमें कोई अचरज की बात नहीं होगी अगर वे भारत की उम्मीदों पर भी खरे न उतर सकें. फिर भी इस सप्ताह के अंत में हम उनका भव्य स्वागत करेंगे. ओबामा भी ठीक-ठाक हावभाव दिखाने के साथ-साथ सही बातें करेगें, मगर हमेशा की तरह वे अपने वायदों को कभी पूरा नहीं करेंगे.

अजय कुमार
'हमें उम्‍मीद है... उम्‍मीद है एक नए और शांतिपूर्ण अमेरिका की...' अपनी इन बातों के साथ दो साल पहले जब राष्‍ट्रपति बराक ओबामा देश को संबोधित कर रहे थे, तो उन्‍होंने गांधी के आदर्शों और दुनिया में भारत की उभरती नई तस्‍वीर का जिक्र भी किया था. दिवाली के देर रात राष्‍ट्रपति ओबामा मुंबई पहुंच रहे हैं. क्‍या यह एक नई रोशनी की शुरुआत होगी या फिर भारत और अमेरिका के संबंधों में यथास्थिति बनी रहेगी...यह अगले तीन दिनों में साफ हो जाएगा.{mospagebreak} 

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राहुल कंवल
सत्ता की बागडोर संभालने के शुरुआती दौर में बराक ओबामा ताजा हवा के झोंके की तरह मालूम पड़ रहे थे. एक ऐसी बयार, जिसमें अमेरिका और पूरी दुनिया की दशा और दिशा को सुधार देने का माद्दा हो. उन्‍होंने जो नारा बुलंद किया, दुनियाभर में उसकी प्रतिध्‍वनि सुनाई पड़ी. लाखों लोग उनके ही स्‍वर में बोलने को तैयार हो गए-'हां, हम ऐसा कर सकते हैं.' लेकिन सरकार महज आशाओं और सुहानी हवाओं से नहीं चला करती हैं. बराक ओबामा के नेतृत्‍व के दो साल में अमेरिका और दुनिया अब यह समझने लगी है कि केवल कुशल वक्‍ता होना ही बेहतर राष्‍ट्रपति होने की गारंटी नहीं है.

भरत भूषण
अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर मीडिया में खासा हलचल देखी जा रही है. इस मौके पर सबसे अहम सवाल यह है कि ओबामा के भारत दौरे की सफलता या विफलता का निर्णय कैसे किया जाए? वैसे सरकारी-तंत्र से जुड़े बड़े रणनीतिकार भी इस दौरे को लेकर उत्‍साहित नहीं हैं. इनका दावा है कि ओबामा का दौरा कोई दूरगामी परिणाम देने वाला साबित नहीं होने जा रहा है. स्‍पष्‍ट है कि ये दौरे से कुछ खास उम्‍मीद नहीं रख रहे हैं. इसके बावजूद, ओबामा के भारत आने और लौटने तक अखबारों के पन्‍ने ओबामा के रंग में ही रंगे नजर आएंगे और 'छोटा पर्दा' भी ओबामामय नजर आएगा.

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एम. जे. अकबर
जब कोई खास मुद्दा लोगों के मस्तिष्क और मीडिया में बढ़-चढ़कर छाने लगे, तो उसकी वस्तुस्थिति की जांच करना लाजिमी हो जाता है. ऐसे में उम्मीदों और संभावना की बजाए इसे व्‍यावहारिकता की कसौटी पर जांचना जरूरी होता है. क्या ओबामा अपने शांतिकालीन मित्र भारत से अच्छे रिश्ते बनाने के लिए युद्धकालीन मित्र पाकिस्तान को छोड़ देंगे? पाकिस्तान को वाशिंगटन के बाजार से एकमात्र चीज चाहिए और वह है- हथियार. अगर उसे किसी दूसरी चीज की जरूरत है, तो वह है हार्ड कैश. जो हथियार पश्चिमी फ्रंट पर पुराने हो गए मालूम पड़ते हैं, वही हथियार पूर्वी फ्रंट पर सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जहां कश्मीर घाटी का मुददा अभी भी गरम है.

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