बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को फिर से चुनकर दिखा दिया है कि वो अब सिर्फ विकास चाहती है. जात-पांत के नाम पर तोड़ने वालों को सबक सिखाने वाली जनता ने जेडीयू-भाजपा गठबंधन को भी संदेश दिया है कि अब वो अपने वादे पूरे करें.
नीतीश ने लोगों के दिलों में जो उम्मीद जगाई थी, उसपर जनता ने कई सपने बुन लिए हैं. अब नीतीश को तय करना है कि वो जनता के सपनों को कैसे पूरा करेंगे. राज्य की जनता ने नीतीश को मौका दिया है कि वो अपने वादे के अनुसार राज्य में रोजगार के अवसर मुहैया कराएं जिससे राज्य को पलायन जैसी बड़ी समस्या से छुटकारा मिले.
जेडीयू-भाजपा की जीत पर दोनों ही दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं का खुश होना वाजिब है, लेकिन साथ ही उनके सामने अब एक बहुत बड़ी चुनौती है कि अपने चुनावी वादों को वो पूरा करें जिसके लिए जनता ने उन्हें एक बार फिर से चुना है. राज्य में भ्रष्टाचार, बिजली की उपलब्धता, बेरोजगारी जैसी तमाम समस्याएं हैं जिनसे नीतीश को पार पाना होगा.
अभी तो नतीजे आए हैं. अब उनका विश्लेषण शुरू होगा और फिर चर्चा शुरू हो जाएगी कि आखिर नीतीश कैसे अपने विकास को एजेंडे को और आगे ले जाते हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों पर प्रस्तुत है इंडिया टुडे ग्रुप के संपादकों की राय.
प्रभु चावला: यह जनादेश वादों को नहीं काम को दिया गया है. जेडीयू और बीजेपी गठबंधन की यह जीत एकदम चौंकाने वाली नहीं है वरण विपक्षी दलों की इतनी बुरी हार की अपेक्षा नहीं की गई थी. 15 साल तक लालू प्रसाद यादव ने बिहार को बिना खाने के केवल वादों की खुराक दी. नीतीश ने बहुत वादे नहीं किए लेकिन उन्होंने काम करके दिखाया. {mospagebreak}
अजय कुमार: बिहार में विकास के संकेत बताते हैं कि 21वीं सदी में बिहार राष्ट्र की मुख्य धारा का हिस्सा हो सकता है. यह एक नया बिहार होगा जो अपने पिछड़ेपन, खंडित तथा विविध ग्रामीण पृष्ठभूमि के बावजूद विकास और बदलाव का व्यापक केंद्र बनेगा. जदयू-भाजपा गठबंधन की शानदार जीत के साथ ही उत्तरी और पश्चमी भारत में पिछले कुछ दिनों से बिहारी मानसिकता को लेकर चली आ रही अटकलों पर विराम लग गया है.
भरत भूषण: बिहार विधानसभा चुनाव, 2010 के नतीजों और रुझानों ने चार मुख्य तथ्य को रेखांकित किया है: पहली बात तो यह कि जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को मिले जनसमर्थन ने यह दिखा दिया है कि बिहार की जनता अब जाति-पांत की सोच से ऊपर उठ चुकी है. जनता ने सुशासन के पक्ष में वोट दिया है, जो कि लालू प्रसाद के 15 साल के कार्यकाल में देखने को नहीं मिला था.
राहुल कंवल: बिहार की राजनीति के लिए यह ऐतिहासिक क्षण है. बिहार में किसी भी मुख्यमंत्री, पार्टी या गठबंधन की यह अब तक की सबसे बड़ी जीत है. यह जीत लालू के 1995 की जीत या फिर कांग्रेस की दस साल पहले 1985 की जीत से भी बड़ी है. लेकिन यह जीत इस कारण से ऐतिहासिक नहीं है. यह ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार विकास के नाम एक स्पष्ट जनादेश मिला है. और यह कोई ऐसा वैसा विकास का एजेंडा नहीं है बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाला विकास है, जिसके लिए नीतीश पिछले पांच साल से काम कर रहे हैं.