शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन किए जाने के करीब आठ साल बाद सरकार ने छह से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए आज इस ऐतिहासिक कानून को लागू कर दिया.
शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने वाले 86वें संविधान संशोधन को संसद ने वर्ष 2002 में पारित किया था. इस मौलिक अधिकार को लागू कराने वाले कानून ‘बच्चों का मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार अधिनियम’ को संसद ने पिछले साल पारित किया. संविधान संशोधन विधेयक तथा नया कानून दोनों आज से लागू हो गए हैं.
नए कानून के तहत राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों के लिए अब यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी होगा कि हर बच्चा समीप के स्कूल में शिक्षा हासिल करे.
यह कानून सीधे-सीधे करीब उन एक करोड़ बच्चों के लिए फायदेमंद होगा जो इस समय स्कूल नहीं जा रहे हैं. ये बच्चे, जो बीच में स्कूल छोड़ चुके हैं या कभी किसी शिक्षण संस्थान में नहीं रहे, उन्हें स्कूलों में दाखिला दिया जाएगा.
सूचना के अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के बाद शिक्षा का अधिकार संप्रग सरकार की एक प्रमुख उपलब्धि बताया जाता है.
{mospagebreak}मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस समय छह से 14 साल आयु वर्ग के संबंधित वर्गो में करीब 22 करोड़ बच्चे हैं. हालांकि इनमें से 4.6 फीसदी (करीब 92 लाख) स्कूलों से बाहर हैं. इस कानून के लागू होने के बाद स्कूल प्रबंधन समिति या स्थानीय प्रशासन छह साल से उपर के बीच में स्कूल छोड़ने वाले या कभी स्कूल नहीं गए बच्चों की पहचान करेगा और उनकी उम्र के अनुसार उन्हें विशेष प्रशिक्षण देने के बाद कक्षाओं में भर्ती कराया जाएगा.
कानून शिक्षा हासिल करने को हर बच्चे का अधिकार बनाता है. अधिनियम सभी संबंधित सरकारों के लिए यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी करता है कि हर बच्चा मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करे.
अधिनियम में यह भी अनिवार्य प्रावधान किया गया है कि निजी शिक्षण संस्थानों को भी अपने यहां 25 फीसदी सीटें कमजोर तबके के बच्चों के लिए आरक्षित रखनी होगी.
कुछ स्कूलों ने इस कानून को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए इसे पहले ही उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे दी है. उन्होंने इसे गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है. लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि कानूनी प्रक्रिया से कानून को लागू किए जाने पर असर नहीं पड़ेगा.
वित्त आयोग ने इस अधिनियम को लागू करने के लिए राज्यों को 25 हजार करोड़ रूपये की राशि उपलब्ध करायी है.
सरकार के अनुमान के अनुसार, इस कानून को लागू करने के लिए अगले पांच साल में 1.71 लाख करोड़ रूपये की जरूरत होगी. सिब्बल ने कहा कि सरकार ने कानून को लागू करने के लिए जरूरी धन का प्रबंधन किया है.
{mospagebreak}अधिनियम के प्रावधानों में कहा गया है कि कोई भी स्कूल किसी छात्र को दाखिला देने से मना नहीं कर सकता और सभी स्कूलों के पास प्रशिक्षित अध्यापक होने चाहिए. यदि किसी स्कूल के पास प्रशिक्षित अध्यापक नहीं हैं तो उसे तीन साल के भीतर भीतर इसकी व्यवस्था करनी होगी. नए कानून के अनुसार, स्कूलों के पास पर्याप्त संख्या में टीचर, खेल का मैदान तथा ढांचागत सुविधाओं का होना जरूरी होगा. कुछ वंचित स्कूलों को अधिनियम के नियमों का पालन करने में सक्षम बनाने के लिए सरकार कोई व्यवस्था स्थापित करेगी.
सरकार ने पहले ही कुछ आदर्श नियम तैयार किए हैं तथा नए कानून को लागू करने में अपने खुद के नियम बनाने में मदद करने के लिए राज्यों को ये आदर्श कानून भेजे जा चुके हैं. केन्द्र सरकार ने केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए अलग से नियम बनाए हैं जिन्हें अगले सप्ताह विधि मंत्रालय अधिसूचित करेगा.
नए नियमों के अनुसार, स्थानीय निकाय तथा राज्य सरकारें घर घर जाकर तथा पड़ोस के स्कूलों में सर्वेक्षण करेंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चों को स्कूल भेजा गया है.
नए कानून के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग समेत सभी समुदायों के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले. लेकिन कमजोर तबके के लिए आरक्षण इस वर्ष से लागू नहीं होगा क्योंकि सत्र के लिए दाखिले पहले ही लगभग पूरे हो चुके हैं. इसे वर्ष 2011-12 से लागू किया जाएगा.