भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्हें सुझाव दिया है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी परिषद के दायरे में लाया जाना चाहिये और निकाय को अधिक शक्तियां दी जानी चाहिये.
न्यायमूर्ति काटजू ने एक निजी चैनल के कार्यक्रम में कहा, ‘मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी प्रेस परिषद के दायरे में लाया जाना चाहिये, इसे मीडिया परिषद नाम दिया जाना चाहिये तथा इसे अधिक शक्तियां दी जानी चाहिये. ऐसी शक्तियों का चरम परिस्थितियों में इस्तेमाल होगा.’ उन्होंने कहा कि उन्हें उनका लिखा पत्र प्राप्त हो जाने और ‘उस पर विचार किये जाने’ का प्रधानमंत्री की ओर से खत मिला है.
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से भी मुलाकात की, जिन्होंने उन्हें बताया कि इस बारे में संभवत: ‘आम सहमति’ बन जायेगी.
थापर ने न्यायमूर्ति काटजू से सवाल किया था कि क्या वह प्रेस परिषद के लिये अधिक शक्तियां चाहते हैं.
इस पर प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं सरकारी विज्ञापन रोकने की शक्ति चाहता हूं. अगर कोई मीडिया काफी निंदनीय तरीके से काम करे तो मैं एक निश्चित अवधि के लिये उसके लाइसेंस को निलंबित करने और दंड लगाने का अधिकार चाहता हूं.’
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि इन सभी उपायों का इस्तेमाल चरम परिस्थितियों में ही होगा. इस सवाल पर कि क्या इन उपायों से मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में नहीं पड़ेगी, उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में हर कोई जवाबदेह है. कोई भी स्वतंत्रता निरंकुश नहीं होती. हर आजादी के साथ जायज पाबंदियां भी होती हैं. मैं जवाबदेह हूं, आप भी जवाबदेह हैं. हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं.’
उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि टीवी चैनलों पर होने वाली बहस उथली होती हैं और परिचर्चा के वक्ताओं के बीच कोई अनुशासन नहीं होता. उन्होंने कहा, ‘यह कोई चीखने-चिल्लाने की प्रतियोगिता नहीं है.’ न्यायमूर्ति काटजू ने चीजों को बदलने से संबंधित अपने विचारों के बारे में भी बताया.
उन्होंने तुलसीदास कृत रामचरित्रमानस में लिखी एक पंक्ति ‘भय बिन होय ना प्रीत’ का हवाला देते हुए कहा, ‘मीडिया में कुछ भय का भाव होना चाहिये.’ उन्होंने कहा कि मीडिया के प्रति उनके विचार अच्छे नहीं हैं. मीडिया को जनहित में काम करना चाहिये. वे जनहित में काम नहीं कर रहे हैं. कभी-कभी वे जनविरोधी तरीके से काम करते हैं.
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘भारतीय मीडिया भी अक्सर जनविरोधी भूमिका निभाता है. वह अक्सर जनता का ध्यान उन वास्तविक समस्याओं से हटा देता है जो बुनियादी रूप से आर्थिक समस्याएं होती हैं.’
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘80 फीसदी लोग अत्यधिक गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और स्वास्थ्य सेवा संबंधी समस्याओं के साथ जी रहे हैं. आप (मीडिया) इन समस्याओं से उनका ध्यान बंटा देते हैं. आप फिल्मी सितारों और फैशन परेड को इस तरह पेश करते हैं, जैसे यही जनता की समस्या हो.’उन्होंने थापर से कहा, ‘क्रिकेट जनता के लिये नशे की तरह है. रोमन शासक कहा करते थे कि अगर आप जनता को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें सर्कस दीजिये. भारत में जनता को अगर आप रोटी नहीं दे सकते तो उसे क्रिकेट दीजिये.’
प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने कहा, ‘मुंबई, दिल्ली, बेंगलूर. जहां कहीं बम विस्फोट होता है, कुछ ही घंटों के भीतर हर चैनल यह दिखाने लग जाता है कि उसे इंडियन मुजाहिदीन या जैश ए मोहम्मद या हरकत उल अंसार या अन्य किसी मुस्लिम नाम से ई-मेल या एसएमएस आया है, जिसमें जिम्मेदारी ली गयी है.’
उन्होंने कहा, ‘आप देख सकते हैं कि कोई भी शरारती व्यक्ति ई-मेल या एसएमएस भेज सकता है लेकिन उसे टीवी चैनल पर दिखाकर आप कपटपूण तरीके से यह संदेश दे रहे हैं कि सभी मुस्लिम आतंकवादी हैं और बम फेंकने वाले हैं और आप मुस्लिमों को बुरा बता रहे हैं. सभी समुदायों में 99 फीसदी लोग अच्छे होते हैं.’
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘मेरे विचार से यह लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने का मीडिया द्वारा जानबूझकर किया गया कृत्य है और यह पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है.’ उन्होंने कहा कि भारत सामंती कृषि समाज से आधुनिक औद्योगिक समाज बनने के परिवर्तनशील दौर में है. यह इतिहास का सबसे दर्दनाक और दुखदायी दौर है. जब यूरोप इस दौर से गुजर रहा था तो वहां मीडिया ने बड़ी भूमिका अदा की थी.
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘यूरोप में रोउसेयू, वाल्टेयर, थॉमस पेन, जूनियस, डीडेरॉट जैसे महान लेखकों ने मदद की. डिडेरॉट ने कहा था कि व्यक्ति तब आजाद हो जायेगा जब अंतिम धर्माचार्य की अंतड़ियों से अंतिम सम्राट का गला घोंट दिया जायेगा.’
साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा, ‘यहां मीडिया अंधविश्वास और ज्योतिष को बढ़ावा देता है. देश में 90 फीसदी लोग मानसिक रूप से पिछड़े हुए और जातिवाद, साम्प्रदायिकता तथा अंधविश्वास आदि में डूबे हुए हैं.’
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘क्या मीडिया को उनका उत्थान नहीं करना चाहिये और क्या उन्हें प्रबुद्ध भारत का हिस्सा नहीं बनाना चाहिये. या फिर मीडिया को उन्हें उनके स्तर पर ही छोड़ देना चाहिये और उनके पिछड़ेपन को बनाये रखना चाहिये.’ उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘कई टीवी चैनल ज्योतिष दिखाते हैं जो कि विशुद्ध रूप से छलावा है.
एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि वह मीडिया में कुछ लोगों का सम्मान करते हैं लेकिन उन्हें नहीं लगता कि मीडिया के लोगों को अर्थव्यवस्था के सिद्धांत, राजनीतिक विज्ञान, साहित्य या दर्शनशास्त्र का कोई ज्ञान है.
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा, ‘जनता को आधुनिक वैज्ञानिक विचारों की जरूरत है, लेकिन इसके उलट हो रहा है.’ उदाहरण बताते हुए प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने कहा, ‘एक टीवी चैनल पर लगातार दो दिन उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की तस्वीर को एक बदमाश अपराधी की तस्वीर के साथ दिखाया जाता रहा.’
उन्होंने कहा कि एक चैनल ने ईमानदार न्यायाधीश के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाते हुए खबर दिखायी. उन्होंने कहा, ‘अगर आप भ्रष्ट व्यक्ति की निंदा करते हैं तो मैं आपके साथ हूं लेकिन आप किसी ईमानदार व्यक्ति की निंदा क्यों करते हैं.’