डीम्ड विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली की समीक्षा कर रही एक सरकारी समिति ने पाया है कि कुछ संस्थान बिना अनुमति के कई तरह के दूरस्थ पाठ्यक्रम चला रहे हैं. उसने सिफारिश की है कि इस तरह के कार्यक्रमों पर रोक लगनी चाहिए और ऐसा करने वाले संस्थानों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस समिति से कहा था कि वह डीम्ड विश्वविद्यालयों के बारे में उसकी सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना पर सलाह दे.
समिति ने सलाह दी है कि जो संस्थान बिना अनुमति के पाठ्यक्रम चला रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.
नियमों के मुताबिक किसी संस्थान को दूरस्थ पाठ्यक्रम चलाने के लिए दूरस्थ शिक्षा परिषद अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से पूर्व अनुमति लेनी होती है.
बहुत से डीम्ड विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम चलाते हैं जिनमें हजारों छात्रों का दाखिला दिया जाता है . कई दूरस्थ शिक्षा पाइ्रूक्रमों के लिए इन नियामक इकाइयों से इजाजत नहीं ली गई है.
पीएन टंडन के नेतृत्व वाली टास्क फोर्स ने कहा है ‘‘यदि उचित नियामक इकाई से अनुमति लिए बिना पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं तो छात्रों को गुमराह करने और उनके हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए संबंधित डीम्ड विश्वविद्यालयों के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए.’’ टास्क फोर्स ने कहा ‘‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और दूरस्थ शिक्षा परिषद के बीच त्रिपक्षीय समझौते की शर्तों को पूरा न करने वाले दूरस्थ पद्धति के सभी पाठ्यक्रमों को तत्काल रोक दिया जाना चाहिए .’’ समिति ने खराब शिक्षा उपलब्धि के मद्देनजर 44 डीम्ड विश्वविद्यालयों को स्तर के अयोग्य पाया . इसने 44 अन्य विश्वविद्यालयों को भी खामियों वाली श्रेणी में रखा है और सिफारिश की है कि उन्हें चीजों को दुरुस्त करने के लिए तीन साल का समय दिया जाए या उनके स्तर को वापस ले लेना चाहिए .
इन 44 अयोग्य डीम्ड विश्वविद्यालयों में लगभग दो लाख विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं जो स्तर छिन जाने के खतरे का सामना कर रहे हैं . मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है.
इन डीम्ड विश्वविद्यालयों में लगभग 74 हजार 808 विद्यार्थी दूरस्थ शिक्षा पद्धति के तहत पढ़ाई कर रहे हैं.