लोग चीनी के दाने-दाने को मोहताज हैं, दाम आसमान छू रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों? सरकार कहती है कि देश में चीनी की किल्लत है क्योंकि मॉनसून ने धोखा दे दिया. लेकिन क्या ये सच है? नहीं ये सच नहीं है. ये एक कहानी है जिसके जरिये लोगों को बरगलाया जा रहा है. चीनी की महंगाई का असली सच चौकानेवाला है.
अबतक यही कहा गया है कि मॉनसून बेहतर नहीं हुआ. देश में गन्ने की पैदावार कम हुई और इसलिए चीनी के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. लेकिन ये आधा सच है. बल्कि यूं कहा जाए कि ये आधा झूठ है. मॉनसून ने धोखा दिया. देश में गन्ने की पैदावार भी थोड़ी कम हुई ये हकीकत का एक पहलू है लेकिन इसकी असली वजह जानकर हैरत होगी.
आज तक ने खोज निकाला है चीनी की महंगाई के असली गुनहगारों को जिसके कारण चाय की चुस्की फीकीं हो गई है, मिठाईयों का स्वाद कड़वा हो गया है. उन सबका चेहरा होगा बेनकाब.
गुजरात के कांडला बंदरगाह के गोदामों में जहां तक नजर जाती है, चीनी की बोरियां रखी हुई हैं. पूरा गोदाम चीनी से अटा पड़ा है. ये वो चीनी है जो विदेशों से मंगाई गई है औऱ जो सीधे बाजार में उतारी जा सकती हैं. या यूं समझिए कि ये वो चीनी है जो कमर तोड़ महंगाई से परेशान लोगों को राहत पहुंचा सकती हैं. लेकिन करीब 6 महीने से ये चीनी गोदामों में पड़ी हुई है.
कांडला बंदरगाह पर चीनी की बोरियों से भरे ऐसे एक दो गोदामों नहीं. यहां कई किलोमीटर के दायरे में 100 से ज्यादा गोदाम हैं और जिनमें सीधे इस्तेमाल की जा सकने वाली सफेद चीनी की बोरियां या रॉ़ शुगर का स्टॉक जमा है. आजतक की टीम ने जितने गोदामों का जायजा लिया उनमें से 8 में सफेद चीनी की बोरियों का अंबार मिला औऱ करीब 20 से 22 गोदामों में रॉ शुगर का अंबार यानी ऐसी चीनी जिसे मिल में रिफाइन करके इस्तेमाल के लायक बनाया जा सकता है.
सवाल उठता है कि देश में जब चीनी के दाम आसमान पर हैं तो गोदामों में इतनी चीनी क्यों रोककर रखी गयी है? ये लाखों टन चीनी बाजार में उतारकर लोगों को राहत क्यों नहीं दी जा रही? सवाल के जबाव में छुपा है चीनी की कड़वाहट का असली खेल. लोग चीनी की महंगाई से परेशान हैं, लेकिन गुजरात के कांडला बंदरगाह के गोदामों में करीब 11 लाख टन चीनी पिछले कई महीनों से यूं ही पड़ी हैं.
जानकार बताते हैं कि ये चीनी बाज़ार में और कीमतें बढ़ाकर मुनाफा कमाने के लिए रोककर रखी गई है. ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि यही चीनी अगर वक्त पर बाजारों में उतार दी गई होती तो ना तो चीनी की कीमत में इस कदर आग लगती औऱ ना ही देश के मजबूर आम लोगों की जेबें इस कदर कटतीं.