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निर्वासित तिब्बती सांसद मेरा इस्तीफा स्वीकार करें: दलाई लामा

पद पर बने रहने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए दलाई लामा ने तिब्बत की निर्वासित संसद से कहा कि वह तिब्बत के राजनीतिक नेता के पद से उनका इस्तीफा स्वीकार करें और आगाह किया कि ऐसा नहीं करने से अनिश्चितता की स्थिति निर्मित हो सकती है और एक बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है.

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दलाई लामा
दलाई लामा

पद पर बने रहने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए दलाई लामा ने तिब्बत की निर्वासित संसद से कहा कि वह तिब्बत के राजनीतिक नेता के पद से उनका इस्तीफा स्वीकार करें और आगाह किया कि ऐसा नहीं करने से अनिश्चितता की स्थिति निर्मित हो सकती है और एक बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है.

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नोबेल पुरस्कार सम्मानित 75 वर्षीय नेता ने एक पत्र लिखते हुए पद से हटने का औपचारिक अनुरोध किया. इससे चार दिन पहले ही उन्होंने पद से हटने के अपने फैसले की सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी ताकि लोकतांत्रिक रूप से नया नेता निर्वाचित करने का रास्ता साफ हो सके.

‘असेंबली ऑफ द तिब्बतन पीपुल्स डेप्यूटीज’ के अध्यक्ष पेनपा त्शेरिंग ने तिब्बती भाषा में लिखे दलाई लामा के पत्र को धर्मशाला में शुरू हुए बजट सत्र के पहले दिन पढ़ा. यह सत्र 25 मार्च को संपन्न होगा.

तिब्बती उद्देश्य को पूरा करने के मकसद से एक नयी लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने का रास्ता साफ करने के लिये अपना राजनीतिक प्राधिकार छोड़ने के फैसले से अवगत कराते हुए दलाई लामा ने कहा कि एक ऐसी स्थिति निर्मित हो सकती है जिसके तहत वह अपना नेतृत्व उपलब्ध नहीं करा पायेंगे. दलाई लामा ने तिब्बती राजनीतिक नेता का पद छोड़ने का फैसला किया है लेकिन वह तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता बने रहेंगे. {mospagebreak}

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दलाई लामा ने कहा, ‘अगर हम कुछ और दशक तक निर्वासन में रहे तो एक ऐसा अपरिहार्य समय आ जायेगा जब मैं नेतृत्व उपलब्ध नहीं करा सकूंगा. लिहाजा, यह जरूरी है कि हम शासन की एक काबिल व्यवस्था स्थापित करें जिसके तहत मैं भी काबिल और स्वस्थ रहूं ताकि निर्वासित तिब्बती प्रशासन दलाई लामा पर निर्भर रहने के बजाय आत्मनिर्भर बन सके.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम अब के बाद से इस तरह की व्यवस्था को लागू करा पाये तो मैं समस्याएं सुलझाने में मदद कर पाउंगा.’ दलाई लामा ने कहा कि लेकिन अगर इस तरह की व्यवस्था में विलंब हुआ और ऐसा दिन आया जब वह अचानक अनुपलब्ध हो गये तो एक बड़ी चुनौती खड़ी होने की अनिश्चितता कायम रहेगी. लिहाजा, यह सभी तिब्बतियों का कर्तव्य है कि इस तरह की स्थिति निर्मित होने से रोकने की हर कोशिश की जाये.

उन्होंने कहा कि वह सिर्फ दीर्घकाल में तिब्बती जनता की बेहतरी के लिये अपने अधिकार छोड़ने की इच्छा रखते हैं. चीनी शासन के खिलाफ विफल विद्रोह के बाद वर्ष 1959 में भारत आये दलाई लामा ने कहा, ‘यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम तब तक हमारे निर्वासित तिब्बती प्रशासन और हमारे संघर्ष को जारी रखना सुनिश्चित करायें जब तक कि तिब्बत का मुद्दा सफलतापूर्वक हल नहीं हो जाये.’ {mospagebreak}

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दलाई ने गुरुवार को यह घोषणा की थी कि वह निर्वासित तिब्बती सरकार के राजनीतिक प्रमुख के पद से हट जायेंगे और अपने ‘औपचारिक प्राधिकार’ को ‘स्वतंत्र रूप से निर्वाचित’ नेता को सौंप देंगे. दलाई लामा ने कहा, ‘मैं यहां यह बात स्वीकार करना चाहता हूं कि तिब्बत के भीतर और बाहर मौजूद मेरे कई साथी तिब्बतियों ने मुझसे आग्रहपूर्वक अनुरोध किया है कि मैं इस निर्णायक मौके पर राजनीतिक नेतृत्व देना जारी रखूं.’

तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘राजनीतिक प्राधिकार छोड़ने का मेरा इरादा जिम्मेदारी से बचने के लिये नहीं है और न ही यह इसलिये है कि मैं निरूत्साहित हो गया हूं. मैं अपने प्राधिकार को सिर्फ दीर्घकाल में तिब्बती जनता की बेहतरी के लिये छोड़ना चाहता हूं.’ बहरहाल, दलाई लामा ने तिब्बतियों को आश्वासन दिया कि वह तब तक अपनी सेवाएं देना जारी रखेंगे जब तक वह सक्षम हैं और स्वस्थ हैं. चौदहवीं ‘असेंबली ऑफ द तिब्बतन पीपुल्स डेप्यूटीज’ (एटीपीडी) 25 मार्च तक चलने वाले बजट सत्र के दौरान दलाई लामा के संदेश पर चर्चा करेगी.

निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रवक्ता थूबेन सेनफेल ने कहा कि एटीपीडी के 143 में से 137 सदस्य इस सत्र में भाग ले रहे हैं. दलाई लामा ने एटीपीडी से पृथक समितियों का गठन करने, घोषणा पत्र के प्रासंगिक अनुच्छेदों तथा अन्य नियमों को संशोधित करने सहित सभी जरूरी कदम उठाने को कहा ताकि इसी सत्र में किसी फैसले पर पहुंचा जा सके और उस पर अमल किया जा सके.

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