पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है ईंधन की कीमतों के बेतहाशा बढ़ोतरी और रिटेल में एफडीआई का केंद्र का फैसला उन्हें मंजूर नहीं है. साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि वे केंद्र सरकार को गिराना नहीं चाहती हैं.
पहले डीजल की कीमतों में भारी इजाफा, रसोई गैस उपलब्धता में कटौती और अगले ही दिन मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में 51 फीसदी विदेशी निवेश (एफडीआई) का रास्ता खोलकर केंद्र सरकार ने आम आदमी के साथ अपनी घटक तृणमूल कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सामने भी कई चुनौतियां रखी कर दीं.
तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी का जब सब्र का बांध टूटा तो शनिवार को वह सड़कों पर उतर पड़ीं. ममता की तृणमूल कांग्रेस मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में 51 फीसदी विदेशी निवेश को 'देश के किसानों के लिए अहितकर' मानते हुए इसका लगातार विरोध करती रही है. वैश्विक खुदरा कारोबार करने वाली वालमार्ट और कैरेफोर जैसी बड़ी कम्पनियों के लिए भारत का दरवाजा खोलने का अचानक लिए गए फैसले से तृणमूल बौखला उठी हैं.
इस बीच पश्चिम बंगाल पर एक और ट्रांसपोर्ट हड़ताल का संकट मंडराने लगा है. राज्य के टैक्सी और बस ऑपरेटरों ने फैसला लिया है कि राज्य सरकार जब तक ट्रक किराया नहीं बढ़ाएगी, 17 सितम्बर से वे अपने वाहन अनिश्चितकाल तक नहीं चलाएंगे. सरकार ने उनकी मांग पर अभी कोई वादा नहीं किया है.
ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार लाने की दुहाई देते हुए एफडीआई पर फैसला लेने से एक दिन पूर्व डीजल की कीमतों में पांच रुपये प्रति लीटर का इजाफा कर दिया तथा रसोई गैस सिलेंडरों की रियायती दर पर आपूर्ति सालाना छह सिलेंडर तक सीमित कर दी.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के इन फैसलों ने जब संप्रग की दूसरी सबसे घटक तृणमूल कांग्रेस को आहत किया तो पार्टी ने शुक्रवार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देकर कांग्रेस को अपने फैसलों पर फिर से विचार करने के लिए कहा है.
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल 18 सितम्बर को पार्टी संसदीय दल की बैठक बुलाएगी, जिसमें पार्टी अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद रहेंगी. पार्टी के नेताओं ने इस बैठक में कड़ा फैसला लिए जाने का संकेत दिया है.
केंद्र से नाराज ममता ने सोशल नेटवर्किंग साइट 'फेसबुक' पर लिखा है, 'इन घटनाक्रमों पर हम अत्यंत गंभीर हैं और इन मुद्दों पर यदि फिर से विचार नहीं किया गया तो हम कड़े फैसले लेने को तैयार हैं.'
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस शायद संप्रग सरकार से अलग होने के बारे में नहीं भी सोच सकती है, क्योंकि केंद्र के पास कई विकल्प हैं.
कलकत्ता विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर समीर कुमार दास ने कहा, 'तृणमूल इस स्थिति में नहीं है कि केंद्र सरकार से अलग होकर वह कुछ हासिल कर लेगी. इसलिए ममता फैसले पर फिर से विचार करने के लिए केंद्र पर दबाव डालने का प्रयास सकती हैं या कांग्रेस को बीच का रास्ता अपनाने के लिए बाध्य सकती हैं. यानी खुदरा कारोबार में एफडीआई का दायरा सीमित करने को कह सकती हैं.'
दूसरी ओर यदि ट्रांसपोर्ट हड़ताल हुई तो समूचे पश्चिम बंगाल की सड़कों से 35,000 बसें नदारद हो जाएंगी. अकेले कोलकाता में 6,500 बसों का चक्का जाम हो सकता है. अब सबकी निगाहें ममता बनर्जी पर हैं. वह शनिवार को अपने कार्यकर्ताओं के साथ कोलकाता की सड़कों पर उतर गई हैं और ईंधन मूल्य वृद्धि का विरोध कर रही हैं.