सब्जियों और कुछ दालों के दाम नीचे आने से गत 30 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति 0.83 प्रतिशत अंक घटकर 7.70 प्रतिशत पर आ गई, जो पिछले 18 महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति का न्यूनतम स्तर है.
थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति इससे एक सप्ताह पहले 8.53 प्रतिशत पर थी. खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी से उत्साहित सरकार ने कई खाद्य वस्तुओं की रिकार्ड पैदावार के चलते कीमतों में और नरमी आने का अनुमान जताया है.
हालांकि, सरकार ने यह चेतावनी भी दी कि गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी का रुख बना रह सकता है जिससे आने वाले दिनों में समस्याएं खड़ी होंगी.
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, ‘‘खाद्य मुद्रास्फीति में मौजूदा रुख स्वागत योग्य है और हमें आगामी सप्ताह में इसमें और नरमी आने की उम्मीद है. हालांकि, गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमतों को लेकर चिंता बनी रह सकती है.’’
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-11 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में भारत में खाद्यान्न उत्पादन 23.58 करोड़ टन के रिकार्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है. इस बार गेहूं, दालों और मक्के का सबसे अधिक उत्पादन होने का अनुमान है.
खाद्य मुद्रास्फीति के ताजा आंकडों के अनुसार समीक्षागत सप्ताह के दौरान एक साल पहले इसी सप्ताह की तुलना में दाल दलहन के दाम 9 प्रतिशत नीचे आये हैं, जबकि सब्जियों में 3.64 प्रतिशत की नरमी रही. सालाना आधार पर आलू के दाम 3.58 प्रतिशत नीचे आये हैं. हालांकि, अनाज और कुछ फलों के दाम अभी भी ऊंचे बने हुये हैं. दूध, अंडा और मछली के दाम भी ऊंचे बने हुये हैं.
रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये इसी महीने की शुरुआत में जारी वाषिर्क ऋण एवं मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो और रिवर्स रेपो दरों प्रत्येक में आधा प्रतिशत वृद्धि की है. केन्द्रीय बैंक ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के बजाय फिलहाल मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसने को प्राथमिकता दी है.
मुखर्जी ने उम्मीद जताई कि रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में बढ़ोतरी जैसे मौद्रिक नीतिगत उपायों से मुद्रास्फीति में तेजी पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी.