भ्रष्टाचार के खिलाफ योगगुरु बाबा रामदेव के अनशन ने भले ही उत्तराखंड में हलचल मचा दी हो, पर ऐसे अनशन प्रदेश के लिए नए नहीं हैं.
संभवत: महात्मा गांधी से प्रेरणा पाकर प्रदेश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार अनशन किए हैं. इनमें से सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाले अनशन का रिकॉर्ड 84 दिनों का है.
पूरे देश में कई बार आंदोलन चला चुके सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश जोशी के मुताबिक, ‘‘उत्तराखंड सामाजिक कार्यकर्ताओं की ‘कर्मभूमि’ है.’’ 1940 के दशक में टिहरी में लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले गांधीवादी दिवंगत श्रीदेव सुमन ने अपनी कैद के दौरान 84 दिनों तक अनशन रखा था. अनशन के 84वें दिन उनका निधन हो गया था.
लोगों ने आरोप लगाया था कि उनकी जेल के भीतर कथित तौर पर हत्या करके उनके शव को नदी में फेंक दिया गया.
पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के नेता सुंदर लाल बहुगुणा ने 74 दिनों का अनशन रखा था. उन्होंने यह अनशन 1990 के दशक में टिहरी पनबिजली परियोजना के विरोध में किया था.
बहुगुणा का यह अनशन अब तक याद किया जाता है. उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.
आईआईटी के सेवानिवृत प्राध्यापक और सामाजिक कार्यकर्ता जी डी अग्रवाल ने 2008 में पाला मानेरी और भैरोंघाटी पनबिजली परियोजनाओं के खिलाफ अनिश्चितकालीन अनशन किया, जिसके बाद प्रदेश सरकार को दोनों परियोजनाओं को रोकना पड़ा . अपने आंदोलन के दौरान अग्रवाल ने 18 दिन तक अनशन किया.
दो महीने पहले कांग्रेस के टिहरी से विधायक किशोर उपाध्याय ने अपनी मांगों को लेकर 14 दिनों का अनशन किया था. उनकी मांगे विकास के कई मुद्दों से जुड़ी थीं.
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने पिछले महीने हरिद्वार में अनशन किया था. उमा ने यह अनशन गंगा नदी पर चल रही सभी पनबिजली परियोजनाओं की समीक्षा की मांग पर किया था.
प्रदेश में बाबा उत्तराखंडी ने 2004 में भूख हड़ताल की थी. उनका इस हड़ताल के 39वें दिन निधन हो गया था. बाबा उत्तराखंडी गैरसण को प्रदेश की राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे.