scorecardresearch
 

आखिर क्‍यों नही रुक रही है महंगाई?

आज देश के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये महंगाई रुक क्यों नहीं रही है. आखिर क्यों सरकार की हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है. आखिर क्यों आम आदमी झुलसने को मजबूर है. तैयार रहिए नई महंगाई के लिए, तैयार रहिए जेब कटाई के लिए, तैयार रहिए जरूरतें घटाने के लिए, तैयार रहिए खुशियां लुटाने के लिए.

Advertisement
X

आज देश के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये महंगाई रुक क्यों नहीं रही है. आखिर क्यों सरकार की हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है. आखिर क्यों आम आदमी झुलसने को मजबूर है. तैयार रहिए नई महंगाई के लिए, तैयार रहिए जेब कटाई के लिए, तैयार रहिए जरूरतें घटाने के लिए, तैयार रहिए खुशियां लुटाने के लिए.

Advertisement

वैसे तो अब ये जिंदगी की आदत सी बन गई है. लेकिन, दिल में हर बार टीस तो उठती ही है जब जिंदगी की कुछ जरूरतों में नई कटौती हो जाती है. महंगाई की नई किश्त लादने की तैयारी चल रही है. सरकार इन्हीं कोशिशों में लगी हुई है कि कैसे महंगाई के नए झटके दिए जाएं. एक के बाद एक नई दलीलें दी जा रही हैं ताकि आपके कंधे पर लदने वाली महंगाई की नई किश्त को सही ठहराया जा सके.

केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री हरीश रावत ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि अब सब्सिडी को खत्म कर दिया जाए. रावत कहते हैं कि देश में हर कोई सब्सिडी का फायदा ले रहा है. मैं समझता हूं कि देश में बहुत सारे लोगों को सब्सिडी की जरूरत नहीं है. हमें तेल कंपनियों को बचाना होगा.

Advertisement

अब देश के मंत्री ऐसे हैं, तो फिर कहना ही क्या. इन्हें तेल की कंपनियों की चिंता है, लेकिन आम लोगों की नहीं. जब देश में नीतियां तेल कंपनियों को ध्यान में रखकर ही बननी हैं फिर तो आम लोग अपनी भलाई खुद ही सोच लें. बात तेल कंपनियों की शुरू हुई है तो उनकी दलील भी सुन ही लीजिए.

कंपनियां रो रही हैं नुकसान का रोना, वो कहती हैं कि पेट्रोल की बिक्री पर उन्हें 5 रुपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है. डीजल पर नुकसान का आंकड़ा 19 रुपए से ज्यादा का है. केरोसिन के प्रति लीटर की बिक्री पर नुकसान 34 रुपए से ज्यादा का बताया जा रहा है और रसोई गैस में हर सिलेंडर पर नुकसान 350 रुपए का हो रहा है.

जाहिर है तेल कंपनियों और सरकार के पास आंसू बहाने का पूरा बहाना है. और जब मंत्री जी आंसू पोंछने के लिए खुद खड़े हैं तो फिर आंसू भी ज्यादा निकलने लगते हैं. हां, मंत्री जी को आंसू अगर नहीं दिखता है, तो वो है आम लोगों का. हर तरफ से महंगाई की मार है और आम लोग उसे झलने को मजबूर.

आम लोगों का दर्द सरकार और तेल कंपनियों के लिए कचरे से ज्यादा और कुछ नहीं. देश के विकास के नाम पर आम जनता की जेब काटने का सिलसिला जारी है. सवाल बस ये है कि जो लोग अपनी जरूरतें काटकर देश और तेल कंपनियों की तिजोरी भर रहे हैं, उनपर इस देश के तथाकथित विकास का असर क्यों नहीं दिखता है.

Advertisement

सवाल ये भी है कि माना तेल की तिजोरी भरना जरूरी है, लोगों की सब्जी की थैलियां क्यों खाली हो रही हैं. मंत्री जी का जवाब सुनेंगे तो लगेगा जैसे किसी ने जले पर नमक डाल दिया है. मंत्री जी, आपने तो ये कहकर अपना पल्ला छुड़ा लिया कि कुछ महंगाई मौसमी है.

मंत्री जी, आपको कैसे बताएं कि भूख मौसम देखकर नहीं लगती. आपको कैसे बताएं कि अमीरों और गरीबों के ठिकाने अलग हो सकते हैं. उनकी लाइफस्टाइल भी अलग हो सकती है. लेकिन, वही सब्जियां दोनों के घरों के पकती हैं. अब आप अगर खुद को गरीबों की सरकार कहते हैं, तो जरा ये बता दीजिएगा कि महंगाई के मौसम में गरीब खाएं तो भला क्या.

Advertisement
Advertisement