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जी-20 शिखर सम्मेलन: भारत ने संरक्षणवाद के प्रति चेताया

अमेरिका और चीन के मध्य जी-20 शिखर सम्मेलन में मुद्रा की विनिमय दर को लेकर जारी विवाद के बीच भारत ने किसी प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन के प्रति आगाह करते हुए कहा कि किसी भी तरह के संरक्षणवाद को पनपने से रोकना होगा.

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अमेरिका और चीन के मध्य जी-20 शिखर सम्मेलन में मुद्रा की विनिमय दर को लेकर जारी विवाद के बीच भारत ने किसी प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन के प्रति आगाह करते हुए कहा कि किसी भी तरह के संरक्षणवाद को पनपने से रोकना होगा.

इसके साथ ही भारत ने चालू खाते के अधिशेष की सीमा तय करने के प्रस्ताव का भी विरोध किया है. अमेरिका ने इसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार प्रतिशत पर तय करने का प्रस्ताव दिया है. भारत ने कहा है कि अलग-अलग देशों के लिए स्थायी चालू खाते के अधिशेष के समझौते पर पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि विभिन्न देशों के ढांचे में अंतर है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र को संबोधित करते हुए इन मुद्दों पर भारत की राय रखी. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली म्यांग बाक की अध्यक्षता में शिखर सम्मेलन का पूर्ण सत्र आज सुबह शुरू हुआ. अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा, चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और जर्मनी की चांसलर एजेंला मर्केल सहित दुनिया के कई शीर्ष नेता जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं.

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अमेरिका द्वारा चीन पर अपनी मुद्रा युआन के नए सिरे से मूल्यांकन के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच विवाद जारी है. इसके साथ ही अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था में 600 अरब डालर डाले हैं, जिससे डालर का मूल्य कम होगा. इन मसलों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘सबसे पहले हमें हर कीमत पर प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन से बचना होगा और किसी तरह के संरक्षणवाद को पनपने से रोकना होगा.’{mospagebreak}

चालू खाते के अधिशेष की सीमा चार प्रतिशत पर तय करने के अमेरिकी प्रयासों पर प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस तरह के समझौते पर पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि अलग-अलग देशों में ढांचागत अंतर है. साथ ही कई तरह की अनिश्चितताएं हैं, और विभिन्न देशों को कई तरह के लक्ष्यों के लिए संतुलन कायम करना होता है.’ सिंह ने कहा कि इस सब दिक्कतों के बावजूद जी-20 को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए कार्य करने योग्य तंत्र का विकास करने के अपने प्रयासों पर डटे रहना होगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ व्यापक सिद्धान्तों पर उल्लेखनीय सहमति है. सिंह ने कहा कि ऐसे विकसित देश जिनका घाटा काफी अधिक है, उन्हें वित्तीय एकीकरण की नीतियों को अपनाना चाहिए. साथ ही उन्हें इसके लिए अपनी परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे मध्यम अवधि में रिण की स्थिरता सुनिश्चित हो सके.

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘इसका मतलब है कि वित्तीय करेक्शन हर जगह जरूरी नहीं है, बल्कि ढांचागत सुधार सभी जगह अनिवार्य हैं. इससे घाटे वाले देशों की क्षमता तथा प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, वहीं अधिशेष वाले देशों में घरेलू मांग का विस्तार होगा. इस पुन: संतुलन में कुछ समय लगेगा, पर इसकी शुरुआत होनी चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘जब हम विकासशील देशों में अनापशनाप पूंजी प्रवाह को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं इसके साथ ही यह भी सही है कि इन देशों में दीर्घावधि में पूंजी प्रवाह का समर्थन किया जाना चाहिए. इससे इन देशों में विशेषकर बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के वर्षों में उप सहारा अफ्रीका सहित कई उभरते बाजारों के प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. उन्होंने कहा कि अब ये देश उस पूंजी को खपा सकते हैं, जो निवेश में विस्तार के लिए आई है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में ऐसी मांग बढ़ेगी, जो बेहद जरूरी है. बहुपक्षीय विकास बैंकों को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. उन्होंने कहा, ‘कई उभरते बाजार भी आज इस स्थिति में हैं कि वे निजी निवेश को आकषिर्त कर सकें. इसमें बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश भी शामिल है.’{mospagebreak}

जी-20 के नेताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अधिशेष बचत को विकासशील देशों में निवेश करने से न केवल तत्काल मांग के असंतुलन को खत्म किया जा सकेगा, बल्कि इससे विकास के क्षेत्र में जो असंतुलन हैं, उन्‍हें भी दूर किया जा सकेगा. ‘दूसरे शष्‍दों में कहें तो हम इस क्षेत्र के असंतुलन का इस्तेमाल दूसरे क्षेत्र के असंतुलन को दूर करने में कर सकते हैं.’

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि औद्योगीकृत देशों में बेरोजगारी की उंची दर की वजह से संरक्षणवादी धारणा एक बार फिर से पनपने का जोखिम पैदा हो गया है. ‘खासकर ऐसी स्थिति में जब अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए परंपरागत मौद्रिक और वित्तीय ‘हथियार’ अब काम नहीं कर पा रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘औद्योगीकृत देशों की संभावनाओं को लेकर जारी अनिश्चितता से निवेश का माहौल प्रभावित हो रहा है और इससे उभरते बाजारों में वृद्धि की संभावनाओं को झटका लग रहा है. इससे ऐसा लगता है कि हमें अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत स्थायित्व तथा संतुलित विकास की राह पर लाने के लिए काफी काम करने की जरूरत है.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि जी-20 देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुन: संतुलन की राह पर लाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं और इस बात को सभी जानते हैं. ‘प्रमुख औद्योगीकृत देशों का चालू खाते का घाटा काफी ज्यादा हो चुका है और इसे उचित स्तर पर लाना बेहद जरूरी है.’ उन्‍होंने कहा, ‘यदि इसके विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को रोकना है, तो इसे दूसरे देशों में चालू खाते के अधिशेष के जरिये पूरा करने की जरूरत है. इस तरह के पुन: संतुलन के लिए हमारे देशों के बीच उचित सहयोग वाली नीतियां होनी चाहिए.’{mospagebreak}

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले साल अमेरिका के पिट्सबर्ग में तीसरे जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान परस्पर आकलन प्रक्रिया (एमएपी) को अपनाया गया था. इस तरह के सहयोग को हासिल करने के लिए यह एक विशेष पहल थी. उन्‍होंने कहा, ‘यदि हम इन क्षेत्रों में आपसी सहयोग के लिए दूसरे चरण की एमएपी प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो इससे जी-20 बाजारों को एक मजबूत संकेत देने में सफल रहेगा.’ सिंह ने कहा कि जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों को इन विचारों को और आगे बढ़ाने को कहा जाना चाहिए. इसके लिए वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सहयोग ले सकते हैं.

प्रधानमंत्री ने कोरिया द्वारा जी-20 के एजेंडा में विकास को स्वीकृत विषय के रूप में शामिल करने की पहल की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘जी-20 संकट के समय अस्तित्व में आया था और इसे संकट प्रबंधन और वैश्विक पुन: संतुलन के लघु अवधि के एजेंडा के रूप में फिर से शामिल किया गया है. हालांकि, हमारे सामने सबसे बड़ा असंतुलन विकास में असंतुलन है और जी-20 के एजेंडा में विकास को शामिल कर इसे पाटने का प्रयास किया गया है.’

सिंह ने कहा कि विकासशील देशों ने संकट से पहले और बाद के वषरें में अच्छा प्रदर्शन किया है. उन्होंने कहा, ‘हालांकि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वैश्विक आर्थिक माहौल विशेषकर व्यापार और निवेश के प्रवाह के लिए माहौल बेहतर बना रहे.’

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि जी-20 देशों के समक्ष सोल विकास सहमति के साथ बहु वर्षीय कार्ययोजना है, जो एक समयसीमा के साथ विस्तृत एजेंडा उपलब्ध कराती है. आने वाले महीनों में इसे सभी उपयुक्त मंचों से उठाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाने पर सहमति है.{mospagebreak}

प्रधानमंत्री ने कहा कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश के लिए निजी, अर्धसरकारी तथा सार्वजनिक संसाधनां को जुटाने के उपाय सुझाने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाना चाहिए और इन क्षेत्रों में एमबीडी नीति की समीक्षा की जानी चाहिए. सिंह ने कहा कि ज्यादातर उभरते बाजारों के विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बुनियादी ढांचे की है और हमें ढांचागत विकास की विशाल लागत को पूरा करने के लिए नवीन तरीके ढूंढने होंगे. उन्होंने कहा कि इसे एमबीडी एजेंडा में मुख्य रूप से स्थान दिया जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा कि कार्ययोग्य श्रमबल के कौशल का विकास भी बेहद जरूरी है और भारत सरकार कौशल विकास को उच्च प्राथमिकता दे रही है. सिंह ने कहा कि सोल शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में सुधार के वादे को भी पूरा कर रहा है. ‘हमारे बीच छह प्रतिशत कोटा उभरते बाजारों को स्थानांतरित करने पर सहमति बनी है और साथ ही यूरोपीय प्रतिनिधित्व को कम करने के लिए आईएमएफ के बोर्ड में भी बदलाव होगा.’

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इस दिशा में और कदमों की जरूरत है और भारत कोटा फार्मूले पर 2013 तक व्यापक रूप से समीक्षा के निर्णय का स्वागत करता है. इससे उभरते बाजारां के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व का भी पता चलता है. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कोटे की अगली समीक्षा 2014 तक पूरी होगी और उसमें इसका असर पूर्ण रूप से दिखाई देगा.’ सिंह ने कहा कि जी-20 के देशों के यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोहा दौर की व्यापार वार्ताएं संतोषजनक परिणाम पर पहुंचें. उन्होंने कहा, ‘संकट की वजह से संरक्षणवाद एक बार फिर से पनपने लगा है. हालांकि, अभी तक संरक्षणवादी कदम काफी सीमित रहे हैं. संरक्षणवाद पनप न पाए, इसके लिए व्यापार वार्ताओं को तेज करना होगा. मुझे भरोसा है कि जी-20 इस दिशा में अपना पूरा प्रयास करेगा.’

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