कुछ यूरोपीय देशों में ऋण संकट के बीच ही पटरी पर आती अर्थव्यवस्था के साथ जी-20 के सदस्य देशों ने सोमवार को सतत आर्थिक विस्तार के प्रोत्साहन कदमों और सरकारी वित्तीय अव्यवस्था से निपटने के लिए राजकोषीय घाटे को कम करने के बीच संतुलन का आह्वान किया.
समूह के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के बाद यहां एक घोषणापत्र में देशों ने बैंक कर पर सदस्य राष्ट्रों के अलग अलग रुखों पर समझौता करते हुए इस पर कर लगाने या नहीं लगाने का फैसला इन देशों पर ही छोड़ दिया, जो कि भारत का भी रुख है.
अंतरराष्ट्रीय मुक्त व्यापार को जारी रखने और संरक्षणवादी कदमों से बचने के मामले में जी-20 को धनवान देशों के समूह जी-8 से बेहतर प्रतिनिधि समूह माना जाता है. घोषणा के अनुसार, ‘‘विकास लौट रहा है, वहीं बहाली असमान और कमजोर है, कई देशों में बेरोजगारी अस्वीकार्य स्तर पर बनी हुई है और इस संकट का सामाजिक असर अब भी व्यापक तौर पर महसूस किया जा रहा है. अर्थव्यवस्था को उबारने में मजबूती ही इसकी कुंजी है.’’ इसके मुताबिक उबरती अर्थव्यवस्था के बरकरार रहने के लिए मौजूदा प्रोत्साहन योजनाओं पर काम करने की जरूरत है, वहीं मजबूत निजी मांगों के लिए माहौल बनाने की जरूरत है.{mospagebreak}
उसी समय घोषणापत्र यह भी कहता है, ‘‘हालिया घटनाक्रम जनता के लिए टिकाऊ कोष के महत्व को और हमारे देश के लिए वित्तीय स्थायित्व लाने की विश्वसनीय, उचित तरीके से चरणबद्ध और विकासोन्मुखी योजनाओं को अमल में लाने की जरूरत को उजागर करते हैं, जो कि राष्ट्रीय परिस्थितियों के हिसाब से तय हों.’’
घोषणापत्र के अनुसार अग्रणी अर्थव्यवस्था वाले देशों ने ऐसी वित्तीय योजनाओं की प्रतिबद्धता जतायी है, जो कि 2013 तक घाटे को आधा कर देंगी और 2016 तक सरकारी कर्ज को स्थिर या कम कर देंगी.
जिस समय भारत सहित कुछ देश वैश्विक बैंक कर का विरोध कर रहे हैं, उसी समय घोषणापत्र कहता है, ‘‘हमने अनेक किस्म की नीतियों को पहचाना है. कुछ देश वित्तीय कर लगा रहे हैं. अन्य देश अलग तरीके अपना रहे हैं.’’ घोषणापत्र के अनुसार वित्तीय क्षेत्र को मंदी के वक्त सरकारों को निष्पक्ष और व्यापक योगदान देना चाहिए. भारत का रुख वित्तीय क्षेत्रों की लागत में मितव्ययी नियम भी शामिल करने का रहा है.{mospagebreak}वक्तव्य कहता है, ‘‘जी-20 की सर्वोच्च प्राथमिकता अर्थव्यवस्था बहाली को सुरक्षित और मजबूत करने के साथ मजबूत, टिकाऊ एवं संतुलित विकास के लिए आधार रखना और जोखिमों के विरुद्ध हमारी वित्तीय प्रणालियों को प्रभावी करना है.’’ व्यापार में वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण इस कदर गिरावट के बीच जी-20 राष्ट्रों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर पाबंदियां लगाने या बढ़ाने से दूर रहने की अपनी प्रतिबद्धता को 2013 तक के लिए फिर से बढ़ा दिया है.