गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने तेलंगाना प्रदर्शनकारियों की तरह पृथक राज्य की कोई मांग करने से वस्तुत: इनकार कर दिया. इससे दार्जिलिंग का दौरा कर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कुछ राहत महसूस हो सकती है.
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जीजेएम महासचिव रोशन गिरि ने दार्जिलिंग से बताया, ‘तेलंगाना का परिप्रेक्ष्य अलग है और दार्जिलिंग का परिप्रेक्ष्य अलग है.’ उन्होंने कहा कि तेलंगाना और दार्जिलिंग के मुद्दे का आधार भले ही समान है लेकिन इन्हें अलग-अलग नजरिये से देखे जाने की जरूरत है.
उनसे पूछा गया था कि अगर केंद्र पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के लिये सहमत हो जाता है तो इस पर जीजेएम की क्या प्रतिक्रिया होगी.
इससे पहले जीजेएम जोर देता आया था कि अगर पृथक तेलंगाना राज्य का गठन हो सकता है तो पृथक गोरखालैंड राज्य का भी गठन होना चाहिये.
जीजेएम की केंद्रीय समिति के सदस्य और कलिमपोंग से विधायक हरका बहादुर छेत्री ने कहा कि हम राज्य में एक साथ रह सकते हैं.
उन्होंने यह बात दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्रों में रह रही जनता तथा उत्तरी बंगाल के सिलीगुड़ी तथा जलपाईगुड़ी जिले के मैदानी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के संदर्भ में कही.
छेत्री ने कहा, ‘ममता बनर्जी काम करने वाली महिला हैं और हमें उन पर यकीन है.’ पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार के संदर्भ में उन्होंने आरोप लगाया कि पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में रह रहे लोगों को बांटने की कोशिश की गयी थी.
मुख्यमंत्री के साथ बैठक करने के लिये पार्टी के एक दल का प्रतिनिधित्व कर चुके जीजेएम प्रमुख विमल गुरूंग ने कहा, ‘मैं इस बैठक से खुश हूं. हमने मुख्यमंत्री को हमारी शिकायतों के बारे में बताया. हम बच्चे हैं और वह हमारी मां हैं. और हम हमारी मां से मांग कर सकते हैं.’
गुरूंग की पत्नी आशा के नेतृत्व में गये गोरखा की महिला इकाई के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को बताया कि गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के न्यायाधिकार क्षेत्र में दोआर्स और तराई के गोरखा बहुल क्षेत्रों को शामिल करने की जरूरत है.
जीटीए के लिये 18 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और मुख्यमंत्री ममता की मौजूदगी में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते को हाल ही में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने अपनी मंजूरी दे दी.